वाराणसी, 2024 — जैसे जैसे दीपावली करीब आ रही है, वाराणसी के बाजारों में मिट्टी के दीयों की रोशनी पहले से ज़्यादा जगमगा उठी है। लोकल कुम्हारों में दिख रही है नई उम्मीद, नई चमक।
मांग में उछाल, हाथों को ताकत
इस साल 30% से 50% तक की बढ़ोतरी की उम्मीद जताई जा रही है।
पहले जहां एक घंटे में ~400 दीये बनते थे, अब 800 तक बनना आम हो गया है।
बड़े दीयों की कीमत ₹60 प्रति सौ, मध्यम ₹50 तथा छोटे ₹40 तक जा रही है।
डिजाइन और सौंदर्य का तड़का
परंपरागत दीये अब डिज़ाइनर स्टाइल में भी पेश हो रहे हैं — रंग, आकृति और सजावट के नए प्रयोग बढ़े हैं।
बाजारों में दीयों के बीच रोमांच और कलात्मकता के उलझे स्वर सुनाई दे रहे हैं।
कुम्हारों की जमीनी कहानी
पहले ₹60,000 की सीमित कमाई आज ₹1,20,000 तक पहुंचने की राह पर है।
इलाके जैसे चोलापुर, बड़ागांव, हरहुआ आदि केन्द्र बन रहे हैं — जहाँ उत्पादन बढ़ा है।
मगर यह बढ़ोतरी केवल सिलसिला नहीं — चुनौतियाँ भी साथ हैं:
कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी
गुणवत्ता नियंत्रण और टूटफूट की समस्या
पर्यावरण और लोकल भावना
मिट्टी के दीये — बायोडिग्रेडेबल, सस्ते और स्थानीय संस्कृति से जुड़े — इस दिशा में एक सशक्त विकल्प बनते दिख रहे हैं।
लोकल वोकल की यह लहरी, उन कुम्हारों की उम्मीदों को भी उजागर करती है, जो अनदेखी में निहित प्रतिभा लिए बैठे थे।