विनायक चतुर्थी का पर्व हर महीने शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है जिन्हें विघ्नहर्ता, शुभता के प्रतीक और मंगलकर्ता के रूप में पूजा जाता है। आषाढ़ मास की विनायक चतुर्थी इस वर्ष 28 जून 2025 को पड़ रही है। इस दिन विशेष रूप से व्रत रखने और गणपति की पूजा करने का बड़ा महत्व बताया गया है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि के अधिपति स्वयं श्री गणेश हैं। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में समृद्धि आती है। इस चतुर्थी पर पूजा के दौरान एक विशेष पौराणिक कथा का पाठ किया जाता है, जिसके बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है। यह कथा एक बालक की तपस्या, श्राप और गणपति की कृपा से जुड़े प्रसंग को उजागर करती है।
विनायक चतुर्थी से जुड़ी कथा की शुरुआत
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के तट पर विश्राम कर रहे थे। समय बिताने के लिए दोनों ने चौपड़ खेलने का निर्णय लिया। लेकिन खेल के दौरान यह तय नहीं हो पा रहा था कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा। इस उलझन को सुलझाने के लिए भगवान शिव ने मिट्टी का एक पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर उसे निर्णायक बना दिया।
शिव-पार्वती के खेल के दौरान माता पार्वती जीत गईं, लेकिन वह पुतला जिसने खेल का निर्णय सुनाना था, उसने महादेव को विजेता घोषित कर दिया। इस पर देवी पार्वती बहुत क्रोधित हो गईं और क्रोध में आकर उस पुतले को विकलांग होने का श्राप दे दिया।
श्राप और तपस्या का दौर
पार्वती के श्राप से पीड़ित होकर वह बालक रोने लगा और मां पार्वती से क्षमा याचना करने लगा। उसने बताया कि उसने गलती से फैसला सुनाया था, लेकिन देवी पार्वती ने कहा कि श्राप को वापस नहीं लिया जा सकता। हालांकि माता ने उसे एक उपाय भी बताया कि भविष्य में जब नाग कन्याएं भगवान गणेश की पूजा के लिए आएंगी, तब वह उनसे व्रत की विधि जानकर विधिपूर्वक व्रत करे, जिससे वह श्राप से मुक्ति पा सकेगा।
इसके बाद कई वर्षों तक वह बालक उस श्राप से पीड़ित रहा। लेकिन एक दिन जैसा कि माता पार्वती ने बताया था, नाग कन्याएं वहां आईं और भगवान गणेश की पूजा करने लगीं। बालक ने उनसे विनम्रता से भगवान गणेश के व्रत की विधि सीखी और सच्चे मन से व्रत रखा।
गणपति की कृपा से मिली मुक्ति
गणपति की उपासना और व्रत से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान गणेश उस बालक के सामने प्रकट हुए। उन्होंने उससे वर मांगने को कहा। बालक ने उनसे यह वरदान मांगा कि वह कैलाश पर्वत तक पैदल चल सके, क्योंकि श्राप के कारण वह विकलांग हो गया था। भगवान गणेश ने उसे वरदान दिया और कहा कि अब वह स्वस्थ होकर चल सकता है।
बालक तुरंत स्वस्थ हो गया और फिर वह कैलाश पर्वत की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर उसने महादेव को अपनी पूरी कथा सुनाई। उसने बताया कि गणपति की कृपा से उसे मुक्ति मिली और यह व्रत कितना प्रभावशाली है।
भगवान शिव ने भी किया व्रत
बालक की बातों से प्रभावित होकर भगवान शिव ने भी गणपति के इस व्रत का पालन करने का निश्चय किया। उन्होंने 21 दिनों तक निरंतर भगवान गणेश के लिए व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती का क्रोध शांत हो गया और दोनों के बीच फिर से सामंजस्य स्थापित हुआ।
चतुर्थी पर क्यों होती है कथा का पाठ
कहा जाता है कि इस कथा का पाठ करने से व्रती को न केवल व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है, बल्कि जीवन की जटिल परिस्थितियों में भी मार्गदर्शन मिलता है। विनायक चतुर्थी पर व्रत रखकर अगर यह कथा पूरी श्रद्धा से सुनी या पढ़ी जाए तो भक्त के जीवन से विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।
गणेश जी, जिन्हें संकटमोचन और बुद्धि के दाता के रूप में पूजा जाता है, इस कथा के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि सच्ची आस्था और श्रद्धा से किया गया व्रत किसी भी प्रकार की परेशानी से मुक्ति दिला सकता है।
विनायक चतुर्थी का महत्व
विनायक चतुर्थी सिर्फ एक पर्व नहीं है, यह हर महीने आने वाला ऐसा दिन होता है जब व्यक्ति अपने भीतर की नकारात्मकताओं से मुक्त होकर सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त कर सकता है। गणेश जी के पूजन से पहले इस कथा का पाठ करना आवश्यक माना गया है, जिससे पूजा का उद्देश्य पूर्ण होता है।
इस पौराणिक कथा में श्रद्धा, तपस्या और भगवान की कृपा की शक्ति को गहराई से दर्शाया गया है। यही कारण है कि यह कथा आज भी हर विनायक चतुर्थी पर भक्तों द्वारा पूरे भाव से पढ़ी जाती है और पूजा को पूर्णता प्रदान करती है।