जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले ने पूरे देश को गहरे सदमे में डाल दिया है। इस हमले में 27 निर्दोष लोगों की जान गई, जिससे देशभर में गुस्से और शोक की लहर दौड़ गई है। आम जनता से लेकर राजनीतिक नेतृत्व तक, कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहा है।
Pahalgam Terrorist attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला न सिर्फ एक बड़ा मानवीय नुकसान था, बल्कि सुरक्षा और खुफिया व्यवस्था के लिए भी एक गंभीर चेतावनी बनकर सामने आया। इस हमले में 27 निर्दोष नागरिकों की मौत और दर्जनों के घायल होने से पूरा देश दहल उठा। मगर इस बार पारंपरिक जांच से अलग हटकर सुरक्षा एजेंसियों ने तकनीक का ऐसा हथियार अपनाया जिसने पाकिस्तान के कनेक्शन को दुनिया के सामने ला खड़ा किया और यह हथियार था 'डिजिटल फुटप्रिंट'।
अब सवाल उठता है कि यह डिजिटल फुटप्रिंट आखिर होता क्या है? और इसका आतंकवाद जैसे गंभीर अपराधों में क्या रोल हो सकता है?
क्या होता है डिजिटल फुटप्रिंट?
डिजिटल फुटप्रिंट (Digital Footprint) का मतलब है, हमारी ऑनलाइन गतिविधियों के पीछे छूटे हुए डिजिटल निशान। ये निशान कुछ वैसा ही होते हैं जैसे किसी रेत पर आपके कदमों के निशान। जब भी आप इंटरनेट पर कुछ सर्च करते हैं, कोई वेबसाइट खोलते हैं, ऐप का इस्तेमाल करते हैं, किसी पोस्ट को लाइक या शेयर करते हैं, ये सभी क्रियाएं आपके डिजिटल फुटप्रिंट का हिस्सा बन जाती हैं।
ये फुटप्रिंट दो प्रकार के होते हैं
- एक्टिव डिजिटल फुटप्रिंट – जो आप खुद छोड़ते हैं, जैसे कि सोशल मीडिया पोस्ट, कमेंट्स या ईमेल।
- पैसिव डिजिटल फुटप्रिंट – जो आपके बिना जानकारी के ट्रैक होते हैं, जैसे कि आपने कब-कौन सी वेबसाइट देखी, कहां-क्लिक किया या आपके आईपी एड्रेस की लोकेशन।
कैसे खुला पहलगाम हमले का राज?
जब 20 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हमला हुआ, तो शुरुआत में यही माना गया कि यह एक फिजिकल आतंकी ऑपरेशन था। लेकिन जैसे ही सुरक्षा एजेंसियों ने घटनास्थल से बरामद मोबाइल फोन, लैपटॉप और संचार उपकरणों की फॉरेंसिक जांच शुरू की, कई डिजिटल सुराग सामने आने लगे। इन डिवाइसेज़ से मिलने वाली जानकारी को डीकोड किया गया और डेटा एनालिटिक्स टूल्स की मदद से आतंकियों की ऑनलाइन गतिविधियों का नक्शा तैयार किया गया।
यह सामने आया कि हमले में शामिल आतंकवादी एनक्रिप्टेड ऐप्स के जरिए पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद, बहावलपुर और कराची में स्थित कुछ 'स्लीपर सेल्स' और 'सेफ हाउस' से लगातार संपर्क में थे। यह वही इलाके हैं जो पहले भी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों के तौर पर चिन्हित किए जा चुके हैं।
एजेंसियों ने कैसे ट्रैक किया डिजिटल लिंक?
भारत की साइबर खुफिया इकाइयों ने निम्नलिखित तरीकों से हमलावरों की ऑनलाइन मौजूदगी को ट्रैक किया:
- आईपी एड्रेस एनालिसिस: संदिग्ध डिवाइसेज से लॉग इन किए गए ऐप्स और वेबसाइट्स की जानकारी जुटाकर उनकी लोकेशन को ट्रेस किया गया।
- मेटाडेटा ट्रेसिंग: फोटोज, वीडियोज और फाइलों के मेटाडेटा से यह पता लगाया गया कि ये कहां से अपलोड किए गए थे।
- एन्क्रिप्टेड चैट की डिक्रिप्शन: कुछ चैट्स को डिक्रिप्ट कर सुरक्षा एजेंसियों ने यह जान लिया कि इन आतंकियों को ऑपरेशन की डायरेक्ट कमांड पाकिस्तान से मिल रही थी।
- क्लाउड स्टोरेज एक्सेस: कई संदिग्धों के गूगल ड्राइव और अन्य क्लाउड सर्विसेस पर डेटा मौजूद था, जो हमले की प्लानिंग से जुड़ा हुआ पाया गया।
क्यों अहम है डिजिटल फुटप्रिंट्स की पकड़?
आज की दुनिया में युद्ध सिर्फ बॉर्डर पर नहीं, बल्कि डेटा की दुनिया में भी लड़ा जाता है। आतंकवाद अब सिर्फ एक बंदूक या बम तक सीमित नहीं है, यह एक साइबर-संचालित नेटवर्किंग सिस्टम बन चुका है। डिजिटल फुटप्रिंट्स की मदद से सुरक्षा एजेंसियां:
- आतंकियों के नेटवर्क मैप बना सकती हैं,
- उनके फंडिंग स्रोत तक पहुंच सकती हैं,
- उनके रियल-टाइम लोकेशन ट्रैक कर सकती हैं,
और यहां तक कि भविष्य के हमलों को भी रोक सकती हैं।
आम लोग भी छोड़ते हैं डिजिटल फुटप्रिंट्स
यह बात सिर्फ आतंकियों पर लागू नहीं होती। आम नागरिक भी जब इंटरनेट का इस्तेमाल करता है, तो वह अनजाने में अपनी ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करवा देता है। यही कारण है कि जब आप एक बार किसी वेबसाइट पर शूज देखते हैं, तो अगली बार हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आपको वही शूज का ऐड दिखने लगता है। इसलिए डिजिटल सावधानी रखना बेहद जरूरी है, ताकि आपकी निजी जानकारी या डिजिटल मौजूदगी गलत हाथों में न जाए।
डिजिटल सबूतों पर आधारित आधुनिक जांच: एक गेमचेंजर
पहलगाम हमले के बाद डिजिटल फुटप्रिंट्स के माध्यम से पाकिस्तान के साथ आतंकियों की सांठगांठ उजागर होना इस बात का संकेत है कि भारत की सुरक्षा एजेंसियां अब सिर्फ परंपरागत तरीकों पर निर्भर नहीं हैं। अब साइबर इंटेलिजेंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स और डिजिटल फॉरेंसिक जैसे अत्याधुनिक संसाधन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक निर्णायक हथियार बन चुके हैं।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद डिजिटल फुटप्रिंट्स ने पाकिस्तान से जुड़े एक और षड्यंत्र का पर्दाफाश किया है। यह साबित करता है कि अब आतंक के खिलाफ जंग केवल गोलियों से नहीं, बल्कि डिजिटल साक्ष्यों और तकनीकी चतुराई से भी लड़ी जा रही है।