लोकसभा में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा है कि आठवें वेतन आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की औपचारिक नियुक्ति अभी बाकी है। सरकार ने इस साल की शुरुआत में आयोग बनाने का फैसला लिया था, लेकिन नोटिफिकेशन टैबल नहीं किया गया। टीआर बालू और आनंद भदोरिया जैसे सांसदों ने इस देरी पर सवाल उठाए थे।
मंत्री ने जवाब देते हुए बताया कि अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति से पहले गृह, रक्षा जैसे संबंधित सभी मंत्रालयों से फीडबैक मांगा जा रहा है। उनके अनुसार, आयोग की सिफारिश के बाद ही नया वेतनमान लागू होगा, नतीजतन नियुक्ति में देरी है।
केंद्र के मंत्रालयों से ली जा रही जानकारी
फाइनेंस मिनिस्ट्री ने साफ किया कि वेतन आयोग गठित करने की प्रक्रिया अभी प्रारंभिक चरण में है। प्रधानमंत्री के निर्देश पर वित्त मंत्रालय ने गृह, रक्षा, स्वास्थ्य, श्रम और अन्य संबंधित विभागों से 'इनपुट' इकट्ठा किए हैं। इन इनपुट्स में वेतनमान, भत्तों की संरचना, मुद्रास्फीति के आंकड़े और सरकारी कर्मचारियों की वित्तीय स्थिति शामिल हैं।
इन आंकड़ों के आधार पर ही प्रस्ताव तैयार किया जाएगा, जिसके बाद आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस (ToR) तय होंगे। लेकिन चर्चा का विषय है कि इनपुट्स का बेसब्री से इंतजार क्यों हो रहा है, जबकि गठन का ऐलान जनवरी में हो चुका था।
टर्म्स ऑफ रेफरेंस को लेकर भी अफरातफरी
एक अन्य मुद्दा टर्म्स ऑफ रेफरेंस को लेकर है। आठवें वेतन आयोग का काम और दायरा तय करने के लिए ToR को अंतिम रूप देना जरूरी है। लेकिन अभी तक इसपर कोई औपचारिक निर्णय या नोटिफिकेशन नहीं आया है। इससे कर्मचारियों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि आखिर आयोग की कार्य प्रक्रिया क्या होगी, किस अवधि को आधार बनाया जाएगा और किस तरह की रिपोर्ट जानी जाएगी।
सांसदों की लंबी सूची और आग्रह
सांसद टीआर बालू, आनंद भदोरिया समेत कई सांसद आठवें वेतन आयोग को लेकर सरकार को लगातार पत्र लिख रहे हैं। उन्होंने पूछा है: हम क्यों तक सूचना की प्रतीक्षा में हैं? अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति कब होगी? ToR कब तय होंगे? और परिणामों की समय सीमा क्या होगी?
उनका कहना है कि ऐसे टॉपिक को टालना न सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए चिंता का कारण बनता है, बल्कि आम जनता के विश्वास को भी प्रभावित करता है।
पिछले आयोगों से तुलना
पिछले सातवें वेतन आयोग की ही बात अगर देखें, तो उसे जनवरी 2014 में गठित किया गया था और मार्च 2015 तक रिपोर्ट तैयार हो गई थी। यानी करीब 14 महीने में प्रक्रिया पूरी हुई थी।
लेकिन इस बार जनवरी 2025 में गठन की घोषणा के छह महीने निकल चुके हैं और अध्यक्ष-पैनल आज तक नहीं बने। इससे अंदाजा लग रहा है कि प्रक्रिया दूसरे आयोगों की तुलना में कहीं मंद गति से चल रही है।
सरकारी कर्मचारियों की उम्मीदें बनी हुईं
सरकारी कर्मचारी वर्ग लंबे समय से वेतन आयोग के गठन की प्रतीक्षा कर रहा है। कई वर्ग जैसे रक्षा, पुलिस, विज्ञान-तकनीकी विभाग, स्वास्थ्य आदि ने अपने वेतन-भत्तों को लेकर भारी उम्मीदें पाल रखी हैं।
खास तौर पर राष्ट्रपति, पीएम, राज्यपाल, मंत्री, अधिकारी-कर्मचारी वर्ग सहित विभिन्न पदों के भत्तों में समंजस्य बनाने की दिशा में भी आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
आर्थिक कारण और मौजूदा चुनौतियां
अर्थ विशेषज्ञों की राय है कि सरकार की आर्थिक स्थिति भी इन देरी के पीछे एक वजह हो सकती है। पेट्रोल-डीजल, बिजली-सब्सिडी, स्वास्थ्य और रक्षा पर खर्च बढ़ा है। ऐसे में वेतन बढ़ोतरी पर सोच-समझ कर निर्णय लेना जरूरी है।
मुद्रास्फीति, वैश्विक आर्थिक मंदी, वित्तीय घाटा जैसे कारक भी प्रस्तावों की त्वरित स्वीकृति को जटिल बना रहे हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र भी जोड़ना चाहता आयोग
तीन साल पहले शिक्षा और स्वास्थ्य को भी सातवें आयोग में शामिल करने की सिफारिश की गई थी, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया। इस बार आठवें आयोग को इन क्षेत्रों को भी शामिल करने की मांग कुछ विधायकों ने उठाई है।
अगर ये सुझाव मान्य होते हैं, तो आयोग के काम और समय-सीमान्कन दोनों पर असर पड़ेगा।