भारत के प्राचीन इतिहास में जिन सम्राटों ने अपने साहस, दूरदृष्टि और रणनीतिक क्षमता से एक अखंड भारत की नींव रखी, उनमें चंद्रगुप्त मौर्य का नाम शीर्ष पर आता है। वह न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक युग निर्माता भी थे, जिन्होंने मौर्य वंश की स्थापना कर भारतीय राजनीति, शासन और धर्म को एक नई दिशा दी।
गोपालक से सम्राट बनने तक का संघर्ष
चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि बचपन में वह गाय-भैंस चराते थे यानी एक गोपालक थे। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा था, लेकिन वह बहुत समझदार, बहादुर और आत्मविश्वासी थे। उनकी यही खासियत चाणक्य को पसंद आई और उन्होंने चंद्रगुप्त की मदद करने का फैसला किया। चाणक्य एक महान विद्वान थे जो तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे। वह चंद्रगुप्त को अपने साथ तक्षशिला ले गए और उसे राजनीति, युद्ध की कला, और प्रशासन चलाने की पूरी शिक्षा दी। यही शिक्षा आगे चलकर चंद्रगुप्त को एक महान सम्राट बनने में मददगार साबित हुई।
चाणक्य और चंद्रगुप्त की ऐतिहासिक जोड़ी
चाणक्य एक बुद्धिमान और दूरदर्शी गुरु थे। जब उन्होंने देखा कि राजा धनानंद प्रजा पर अत्याचार कर रहा है, तो उन्होंने एक नए और न्यायपूर्ण शासन की योजना बनाई। इस काम के लिए उन्हें ऐसा योग्य व्यक्ति चाहिए था जो उनके विचारों को सच्चाई में बदल सके। उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को चुना, जो युवा तो था, लेकिन उसमें राजा बनने की हर योग्यता थी। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजनीति, युद्ध और शासन की पूरी शिक्षा दी। दोनों ने मिलकर नंद वंश को खत्म किया और मौर्य वंश की शुरुआत की। यह जोड़ी इतिहास की सबसे सफल जोड़ी मानी जाती है, क्योंकि इनके प्रयासों से भारत को एक मजबूत और संगठित साम्राज्य मिला।
सिकंदर के बाद भारत में संघर्ष
सिकंदर की मौत के बाद उसके सैनिक और अधिकारी भारत के कुछ हिस्सों पर राज करने लगे। उन्होंने पंजाब और सिंध जैसे इलाकों में अपनी सत्ता कायम की थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने इन विदेशी शासकों को भारत से हटाने का निश्चय किया। उन्होंने साहस और योजना से इन यूनानी शासकों से लड़ाई की। चंद्रगुप्त ने अपनी सेना को तैयार किया और एक-एक कर इन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। यूनानी इतिहासकार जस्टिन और प्लूटार्क ने भी लिखा है कि चंद्रगुप्त ने यवनों को हराकर भारत से बाहर निकाल दिया था। यह उनकी पहली बड़ी जीतों में से एक थी, जिसने उन्हें एक शक्तिशाली राजा बना दिया।
मौर्य साम्राज्य की स्थापना
चंद्रगुप्त मौर्य और यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर के बीच 305 ईसा पूर्व में एक महत्वपूर्ण युद्ध हुआ। इस युद्ध में चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को हराया और एक समझौता किया। इस समझौते में चंद्रगुप्त को कई पश्चिमी क्षेत्र मिले, जैसे एराकोसिया और पारोपनिसदाए। इस ऐतिहासिक संधि के अनुसार चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 युद्ध हाथी दिए और बदले में उसकी बेटी हेलेना से विवाह किया। यह संबंध सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि दो सभ्यताओं के मेल का प्रतीक भी था। यूनानी इतिहासकारों ने भी इस घटना का उल्लेख किया है।
सेल्यूकस निकेटर से ऐतिहासिक संधि
305 ई.पू. में यूनानी सम्राट सेल्यूकस निकेटर ने भारत पर आक्रमण किया। चंद्रगुप्त ने न केवल उसे पराजित किया, बल्कि संधि में एराकोसिया, पारोपनिसदाए, एरिया और जेड्रोसिया जैसे क्षेत्र प्राप्त किए। इस संधि की पुष्टि यूनानी इतिहासकारों जैसे कि स्ट्रैबो और प्लिनी ने की है। बदले में चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 युद्ध हाथी दिए और उसकी पुत्री हेलेना से विवाह किया।
दक्षिण भारत तक साम्राज्य विस्तार
चंद्रगुप्त मौर्य ने केवल उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं रहकर अपनी सेना के साथ दक्षिण भारत की ओर भी युद्ध अभियान चलाए। तमिल साहित्य और प्राचीन अभिलेखों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि उनकी सेना ने पोदियिल पहाड़ियों तक अपनी विजय फैलाई थी। इससे पता चलता है कि चंद्रगुप्त ने दक्षिण भारत में भी अपना प्रभाव जमाने का प्रयास किया। उनके इस अभियान में दक्षिण के कई इलाकों को मौर्य साम्राज्य में शामिल किया गया। इससे यह साफ़ होता है कि उन्होंने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को एकसाथ लाने का सपना देखा था। उनकी सेना में युद्ध-कौशल रखने वाले कई योद्धा शामिल थे, जो इस विशाल साम्राज्य को मजबूत करने में मददगार साबित हुए।
धर्म परिवर्तन और संन्यास जीवन
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अंतिम समय में सांसारिक जीवन को त्याग कर अध्यात्म की ओर रुख किया। वे जैन धर्म के आचार्य भद्रबाहु के शिष्य बन गए और उनके साथ श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) गए। वहां उन्होंने कठिन तपस्या की और अपने जीवन का अंत संथारा, यानी उपवास के माध्यम से किया। उनका यह कदम इतिहास में बहुत ही खास माना जाता है क्योंकि एक शक्तिशाली सम्राट ने स्वेच्छा से राजसी जीवन छोड़कर संयम और साधना को अपनाया। जैन परंपरा में उन्हें मुनि प्रभाचंद्र के नाम से जाना जाता है। चंद्रगुप्त की यह आत्म-त्याग की कहानी आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
सैन्य शक्ति और प्रशासन
चंद्रगुप्त मौर्य की सेना प्राचीन भारत की सबसे बड़ी और ताकतवर सेनाओं में से एक मानी जाती है। यूनानी इतिहासकारों के अनुसार उनकी सेना में लगभग 6 लाख पैदल सैनिक, 30 हजार घुड़सवार, 9 हजार युद्धक हाथी और 8 हजार युद्ध रथ शामिल थे। यह विशाल सेना उनके साम्राज्य की सुरक्षा और विस्तार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इसके साथ ही चंद्रगुप्त ने अपने राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था को भी बहुत व्यवस्थित और अनुशासित बनाया। उनके प्रधानमंत्री चाणक्य द्वारा लिखित 'अर्थशास्त्र' में प्रशासन और सेना के संचालन के नियम स्पष्ट रूप से बताए गए हैं। इस सुव्यवस्थित शासन प्रणाली की वजह से मौर्य साम्राज्य लंबे समय तक मजबूत बना रहा।
चंद्रगुप्त मौर्य केवल एक सम्राट नहीं थे, बल्कि एक युग प्रवर्तक थे। उन्होंने भारत को राजनीतिक एकता दी, एक शक्तिशाली सैन्य और प्रशासनिक तंत्र स्थापित किया और अपने जीवन के अंत में अध्यात्म का मार्ग चुनकर यह दिखाया कि सच्चा नेतृत्व सेवा, त्याग और धर्म से जुड़ा होता है।