राजस्थान की भजनलाल सरकार निकाय और पंचायती राज चुनावों में दो से अधिक संतान वाले प्रत्याशियों को राहत देने की तैयारी में है। 30 साल पुराने नियम में संशोधन से हजारों जनप्रतिनिधियों को फायदा मिल सकता है।
जयपुर: राजस्थान में भजनलाल शर्मा सरकार निकाय और पंचायती राज चुनावों से जुड़ा एक बड़ा फैसला लेने की तैयारी में है। राज्य सरकार 30 साल पुराने उस नियम को खत्म करने पर विचार कर रही है, जिसमें दो से अधिक संतान होने पर व्यक्ति को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाता था। यदि यह फैसला लागू होता है, तो हजारों जनप्रतिनिधियों को राहत मिलेगी और ग्रामीण राजनीति का चेहरा बदल सकता है।
जनसंख्या नियंत्रण के लिए बनी विवादित नीति
राजस्थान में वर्ष 1994 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत की भाजपा सरकार ने “दो संतान नीति” को लागू किया था। इसके तहत जिन व्यक्तियों की दो से अधिक संतानें थीं, उन्हें पंचायत और निकाय चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया था। उद्देश्य था जनसंख्या नियंत्रण को बढ़ावा देना और जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों का चयन सुनिश्चित करना।
हालांकि, समय के साथ यह प्रावधान विवादों में घिर गया। ग्रामीण और पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधियों ने बार-बार यह तर्क दिया कि यह नीति सामाजिक वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है। कई बार इस कानून के चलते निर्वाचित प्रतिनिधियों को पद से हटाया गया, जिससे स्थानीय प्रशासनिक कार्यों में अस्थिरता भी देखने को मिली।
राज्य सरकार दो संतान नीति में संशोधन को तैयार
भजनलाल शर्मा सरकार ने अब इस पुराने प्रावधान पर पुनर्विचार शुरू कर दिया है। नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने हाल ही में संकेत दिए कि राज्य सरकार दो से अधिक संतान वालों पर लगी रोक को हटाने की दिशा में कदम बढ़ा सकती है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री से इस विषय पर चर्चा हो चुकी है और अब विधिक राय ली जा रही है ताकि नियम में संशोधन का रास्ता साफ किया जा सके।
कई विधायकों और स्थानीय प्रतिनिधियों ने भी सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि यह नीति बदलनी चाहिए। उनका कहना है कि जब सरकारी कर्मचारियों के लिए यह प्रतिबंध हटाया जा चुका है, तो जनप्रतिनिधियों पर इसे लागू रखना अनुचित है।
नियम से बढ़ी थी जनप्रतिनिधियों की मुश्किलें

इस कानून में यह भी प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति चुनाव जीतने के बाद तीसरी संतान का पिता बनता है, तो उसे पद से हटा दिया जाएगा। कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं जहां सक्षम और लोकप्रिय जनप्रतिनिधियों को सिर्फ तीसरी संतान होने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया।
राज्य के कई हिस्सों में इस नियम के चलते राजनीतिक अस्थिरता और व्यक्तिगत फर्जीवाड़े भी देखने को मिले। कई उम्मीदवारों ने अपने बच्चों की संख्या छिपाने के लिए झूठे शपथ पत्र तक दाखिल किए, जिससे चुनाव आयोग के लिए सत्यापन कठिन हो गया।
फर्जीवाड़े और सामाजिक वास्तविकता से जुड़ी नई चुनौती
दो संतान नीति के चलते कुछ प्रत्याशियों ने अपने बच्चों को परिवार के अन्य सदस्यों के नाम पर “गोद” दिखाकर नियम से बचने की कोशिश की। इस तरह के मामलों से यह स्पष्ट हो गया कि कानून अपने उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा है।
अब सरकार का मानना है कि जनसंख्या नियंत्रण के अन्य प्रभावी उपायों के चलते यह प्रावधान अप्रासंगिक हो चुका है। अगर बदलाव लागू होता है, तो राज्य के हजारों नेताओं और संभावित प्रत्याशियों को चुनावी राजनीति में नई उम्मीद की किरण मिलेगी।













