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भोलेनाथ और शनिदेव की मूर्तियां एक साथ क्यों नहीं रखी जातीं, जानिए इसका रहस्य

भोलेनाथ और शनिदेव की मूर्तियां एक साथ क्यों नहीं रखी जातीं, जानिए इसका रहस्य

धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव और शनिदेव की मूर्तियां एक ही मंदिर में स्थापित नहीं की जातीं। शिव की ऊर्जा शांत और करुणामयी है, जबकि शनि की ऊर्जा दंडात्मक और गंभीर मानी जाती है। दोनों की पूजा विधि, स्वभाव और ग्रहों के प्रतीकात्मक प्रभाव भी विपरीत हैं, जिससे ऊर्जा असंतुलन की संभावना बताई जाती है।

lord Shiva and Shanidev Puja Rules: हिंदू धर्म में भगवान शिव और शनिदेव दोनों की पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है, लेकिन अधिकतर मंदिरों में दोनों देवताओं की मूर्तियां एक साथ नहीं रखी जातीं। धर्मशास्त्रों के अनुसार, शिव संहार और करुणा के देवता हैं, जबकि शनिदेव न्याय और कर्मफल के प्रतीक हैं। दोनों की ऊर्जा, पूजा विधि और ज्योतिषीय प्रभाव भिन्न हैं शिव का संबंध चंद्र से और शनिदेव का शनि ग्रह से है। इन विरोधी ऊर्जाओं के कारण माना जाता है कि दोनों की स्थापना एक ही वेदी पर करने से ऊर्जा संतुलन बिगड़ सकता है और पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता।

भगवान शिव और शनिदेव का अलग स्वभाव

भगवान शिव को संहार और कल्याण दोनों के देवता कहा गया है। वे अत्यंत दयालु, सरल और शीघ्र प्रसन्न होने वाले माने जाते हैं। जो भी भक्त सच्चे मन से उनकी आराधना करता है, वे उस पर तुरंत कृपा बरसाते हैं। दूसरी ओर शनिदेव को कर्मों के अनुसार न्याय देने वाला देवता कहा गया है। वे किसी को पक्षपात के आधार पर नहीं, बल्कि उसके कर्मों के आधार पर फल देते हैं। यही कारण है कि जहां शिव करुणा के प्रतीक हैं, वहीं शनिदेव अनुशासन और कर्मफल के प्रतीक माने जाते हैं। इन दोनों के स्वभाव में यही मूल अंतर माना गया है, जिसके चलते उनकी मूर्तियां साथ नहीं रखी जातीं।

ऊर्जा और पूजा विधि का अंतर

शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव की ऊर्जा शांत, ठंडी और करुणामयी मानी जाती है। वे चंद्र तत्व से जुड़े हैं जो मन की शांति और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं शनिदेव की ऊर्जा गंभीर, कठोर और दंडात्मक कही गई है। शनिदेव शनि ग्रह से संबंधित हैं जो अनुशासन, न्याय और तपस्या का प्रतीक है।


इसके अलावा दोनों की पूजा विधि में भी काफी अंतर है। भगवान शिव की पूजा जल, बेलपत्र, भस्म और दूध से की जाती है जबकि शनिदेव की पूजा तिल, तेल, काले वस्त्र और लोहे से की जाती है। यही कारण है कि दोनों की आराधना एक साथ करने से पूजा की ऊर्जा में असंतुलन आने की संभावना मानी जाती है।

ज्योतिषीय दृष्टि से विरोधी ग्रह

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान शिव का संबंध चंद्र ग्रह से और शनिदेव का संबंध शनि ग्रह से है। चंद्र और शनि दोनों एक-दूसरे के विपरीत प्रभाव वाले ग्रह माने जाते हैं। जहां चंद्र मन की कोमलता, भावनाओं और शांति का प्रतीक है, वहीं शनि कठोरता, न्याय और अनुशासन का प्रतीक है। इसीलिए कहा गया है कि अगर दोनों देवताओं की मूर्तियां एक ही स्थान पर स्थापित की जाएं तो ग्रहों की ऊर्जाएं टकरा सकती हैं, जिससे पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता।

भक्ति का अलग स्वरूप

भक्तों की भावना और साधना का उद्देश्य भी दोनों देवताओं के प्रति अलग होता है। भगवान शिव के भक्त उनसे जल्दी प्रसन्न होने की अपेक्षा रखते हैं, जबकि शनिदेव के भक्त कर्मों के अनुसार न्याय और फल प्राप्त करने की भावना रखते हैं। यही कारण है कि धार्मिक परंपरा में दोनों की पूजा अलग-अलग की जाती है ताकि भक्ति की दिशा और साधना का उद्देश्य स्पष्ट रहे।

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