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Bihar Election 2025: बेगूसराय सीट पर कांटे की टक्कर! बीजेपी, कांग्रेस और जन सुराज में होगा त्रिकोणीय मुकाबला

Bihar Election 2025: बेगूसराय सीट पर कांटे की टक्कर! बीजेपी, कांग्रेस और जन सुराज में होगा त्रिकोणीय मुकाबला

बेगूसराय विधानसभा सीट इस बार बिहार चुनाव की सबसे दिलचस्प और चर्चित सीटों में से एक बन गई है। यहां मुकाबला पूरी तरह त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है, जिसमें भाजपा के कुंदन कुमार, कांग्रेस की अमिता भूषण, और जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार सहनी आमने-सामने हैं।

बेगूसराय: बिहार की राजनीति में बेगूसराय विधानसभा सीट को हमेशा से भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। लेकिन इस बार समीकरण कुछ अलग नजर आ रहे हैं। जहां भाजपा अपने पुराने जनाधार को बरकरार रखने में जुटी है, वहीं कांग्रेस और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने मुकाबले को दिलचस्प और त्रिकोणीय बना दिया है।

2025 के आगामी विधानसभा चुनाव में यहां से भाजपा के मौजूदा विधायक कुंदन कुमार, कांग्रेस की अमिता भूषण और जन सुराज के सुरेंद्र कुमार सहनी मैदान में हैं। तीनों ही उम्मीदवार अपने-अपने स्तर पर मतदाताओं को साधने में जुटे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनाव बेगूसराय में अब तक का सबसे कड़ा मुकाबला साबित हो सकता है।

बेगूसराय में बदलते राजनीतिक समीकरण

बेगूसराय न केवल बिहार की औद्योगिक राजधानी मानी जाती है, बल्कि यह लंबे समय से राजनीतिक रूप से भी एक हॉटस्पॉट रहा है। यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच दशकों से सीधा मुकाबला होता आया है, लेकिन इस बार जन सुराज पार्टी ने समीकरणों में बड़ा बदलाव ला दिया है। जन सुराज के उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार सहनी का फोकस युवाओं, स्वतंत्र मतदाताओं और ग्रामीण वर्ग पर है। प्रशांत किशोर के "जन संवाद" मॉडल के तहत पार्टी ने गांव-गांव में संपर्क अभियान चलाया है। इससे परंपरागत दोध्रुवीय मुकाबला अब त्रिकोणीय हो गया है।

मुख्य उम्मीदवारों की स्थिति

  • कुंदन कुमार (भाजपा) – मौजूदा विधायक और भाजपा के मजबूत संगठनात्मक समर्थन के दम पर चुनावी मैदान में हैं। 2020 में उन्होंने महज 4,554 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। इस बार पार्टी मोदी सरकार के विकास एजेंडे और केंद्र की योजनाओं पर जनता का भरोसा कायम रखने की कोशिश में है।
  • अमिता भूषण (कांग्रेस) – दो बार की उम्मीदवार और पूर्व विधायक अमिता भूषण कांग्रेस की तरफ से एक मजबूत चेहरा हैं। वे बेगूसराय की स्थानीय राजनीति में लंबे समय से सक्रिय हैं और महिला मतदाताओं व शहरी वर्ग में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है।
  • सुरेंद्र कुमार सहनी (जन सुराज) – प्रशांत किशोर के रणनीतिक मार्गदर्शन में मैदान में उतरे हैं। वे खुद को "नई राजनीति का चेहरा" बताते हैं और पारदर्शिता व विकास आधारित राजनीति पर जोर दे रहे हैं।

पिछले चुनावों के आंकड़े बताते हैं मुकाबले की तीव्रता

2020 के विधानसभा चुनावों में कुंदन कुमार (भाजपा) ने 74,217 वोट (39.66%) पाकर जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस की अमिता भूषण को 69,663 वोट (37.23%) मिले थे। महज कुछ हजार वोटों का यह अंतर बेगूसराय को बिहार की सबसे रोमांचक सीटों में शामिल करता है। वहीं, 2015 में कांग्रेस ने वापसी की थी, जब अमिता भूषण ने भाजपा के सुरेंद्र मेहता को 83,521 वोट (49.21%) बनाम 66,990 वोट (39.47%) से हराया था। यह दर्शाता है कि बेगूसराय की जनता लगातार बदलाव के मूड में रहती है।

1972 में मुंगेर से अलग होकर बने बेगूसराय जिले का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है। जिले का नाम “बेगम” और “सराय” से बना है, जो स्थानीय कथा के अनुसार भागलपुर की बेगम के गंगा तट यात्रा से जुड़ा है। यहां की आबादी में 89% हिंदू और 10.5% मुस्लिम समुदाय शामिल हैं। 77% ग्रामीण मतदाता चुनावी परिणाम तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 15.6% हैं, जो कई बूथों पर जीत का गणित बदल सकते हैं।

2020 के आंकड़ों के अनुसार, बेगूसराय में 3.36 लाख पंजीकृत मतदाता थे — जिनमें 1.79 लाख पुरुष, 1.57 लाख महिलाएं और 8 तृतीय-लिंगी मतदाता शामिल थे। यह संतुलित जनसंख्या वितरण इसे एक राजनीतिक रूप से प्रतिस्पर्धी क्षेत्र बनाता है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने बेगूसराय समेत आसपास के सात विधानसभा क्षेत्रों में से छह में बढ़त हासिल की थी। गिरिराज सिंह की लोकप्रियता ने पार्टी को मजबूत आधार दिया। हालांकि, विधानसभा स्तर पर स्थानीय असंतोष और त्रिकोणीय मुकाबले के चलते भाजपा के लिए यह चुनाव उतना आसान नहीं होगा।

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