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छठ पूजा 2025: सूर्यपुत्र कर्ण से जुड़ी रोचक कथा और पर्व का महत्व

छठ पूजा 2025: सूर्यपुत्र कर्ण से जुड़ी रोचक कथा और पर्व का महत्व

छठ पूजा 2025 के दूसरे दिन खरना का आयोजन किया जा रहा है, जो सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। इस पर्व से जुड़ी सबसे रोचक कथा महाभारत के सूर्यपुत्र कर्ण से जुड़ी है। कर्ण ने सूर्य अर्घ्य और छठी मैया की स्तुति के माध्यम से बिहार और पूर्वांचल में छठ पूजा की परंपरा स्थायी रूप से स्थापित की।

छठ पूजा: लोक आस्था और भक्ति का महापर्व छठ पूजा 2025 अपने दूसरे दिन खरना के साथ मनाया जा रहा है, जिसमें व्रती पूरे दिन व्रत रखते हुए शाम को प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पूर्वांचल में मनाया जाता है। महाभारत के सूर्यपुत्र कर्ण से जुड़ी कथा इस पर्व को ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है। श्रद्धालु सूर्य को अर्घ्य देते और छठी मैया की स्तुति करते हुए कर्ण की भक्ति से प्रेरणा लेते हैं।

कर्ण और छठ पूजा की कथा

कथा के अनुसार, कर्ण सूर्यदेव के पुत्र थे। माता कुंती ने सूर्य मंत्र के जाप से कर्ण को जन्म दिया था, लेकिन समाज की चिंता से उन्होंने कर्ण को नदी में बहा दिया। कर्ण में सूर्यदेव का आशीर्वाद और दिव्यता थी। उनका पूर्वजन्म भी सूर्य देव के प्रति समर्पित था। बताया जाता है कि कर्ण का पूर्वजन्म एक असुर के रूप में हुआ था, जिसका नाम दंभोद्भवा था।

दंभोद्भवा को सूर्य देव ने 1000 कवच और दिव्य कुंडल प्रदान किए थे, जो उनकी रक्षा करते थे। इस वरदान से वह खुद को अजर अमर समझने लगा और अत्याचार करने लगा। इसके बाद नारायण और नर ने बारी-बारी से तपस्या करके उसके 999 कवच तोड़ दिए। जब उसके पास केवल एक कवच बचा, तो वह सूर्यलोक में छिप गया। सूर्य देव ने उसकी भक्ति और तपस्या को देखकर उसे वरदान दिया कि वह अगले जन्म में उनका पुत्र होगा। यही असुर अगली जन्म में कर्ण के रूप में धरती पर आए।

कर्ण जब बड़े हुए, तो उनकी मित्रता दुर्योधन से हुई, जिसने उन्हें अंगदेश का राज्य प्रदान किया। अंगदेश वर्तमान बिहार के भागलपुर और मुंगेर के आसपास स्थित था। यही वह स्थान था, जहां कर्ण ने पहली बार छठ पूजा देखी और सूर्यदेव के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त की।

कर्ण ने क्यों की छठ पूजा

कर्ण सूर्यपुत्र थे, इसलिए उन्होंने छठ पूजा की परंपरा को गंभीरता से अपनाया। वे रोज सुबह सूर्य नमस्कार करते और सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे। इसके साथ ही, कर्ण छठी मैया की स्तुति भी किया करते थे। इस प्रकार, महाभारत काल में बिहार और पूर्वांचल में छठ पूजा की परंपरा स्थायी रूप से स्थापित हुई और कर्ण के माध्यम से यह पर्व लोगों तक पहुंचा।

कर्ण की भक्ति केवल पूजा तक सीमित नहीं थी। उन्होंने अपने राज्य और जीवन में धर्म और न्याय के आदर्शों का पालन किया। सूर्य के प्रति उनकी आस्था और नियमित सूर्य अर्घ्य देने की परंपरा ने छठ पूजा के महत्व को और बढ़ाया। आज भी श्रद्धालु सूर्य को अर्घ्य देते समय कर्ण की भक्ति और त्याग की कहानी याद करते हैं।

छठ पूजा का महत्व और परंपरा

छठ पूजा चार दिन तक चलने वाला पर्व है। पहले दिन व्रती व्रत की संकल्पना करते हैं और उपवास शुरू करते हैं। दूसरे दिन खरना होता है, जिसमें व्रती हल्का भोजन ग्रहण करते हैं। तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करके व्रत संपन्न होता है। इस दौरान व्रती पूरे नियमों का पालन करते हैं और पूरी श्रद्धा के साथ सूर्य और छठी मैया की पूजा करते हैं।

छठ पूजा का मुख्य संदेश है सूर्य देव और प्रकृति के प्रति सम्मान, संयम और भक्ति। यह पर्व परिवार और समाज में एकता, अनुशासन और श्रद्धा की भावना को बढ़ावा देता है। भक्त उपवास रखते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और छठी मैया की स्तुति करते हैं। पर्व के दौरान नदी, तालाब और घाटों पर विशेष पूजा होती है।

छठ पूजा में कहानियों का महत्व

छठ पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है। इसके पीछे कई कथाएं और लोककथाएं जुड़ी हुई हैं। इनमें से कर्ण से जुड़ी कथा सबसे रोचक मानी जाती है। कर्ण की भक्ति और सूर्य देव के प्रति उनका समर्पण इस पर्व की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है। इससे यह भी पता चलता है कि छठ पूजा केवल बिहार या पूर्वांचल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं।

कर्ण की कहानी यह सिखाती है कि भक्ति और तपस्या के मार्ग पर चलकर व्यक्ति अपनी दिव्यता और श्रेष्ठता को पहचान सकता है। सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों को भी मजबूत करती है।

छठ पूजा 2025 का दूसरा दिन यानी खरना श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सूर्यपुत्र कर्ण से जुड़ी कथा इस महापर्व की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को और बढ़ाती है। कर्ण की भक्ति, त्याग और धर्मप्रियता आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। छठ पूजा केवल उपवास और अर्घ्य का पर्व नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, संयम और सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक भी है।

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