देव दिवाली 2025 पर काशी के गंगा घाटों पर श्रद्धालु दीपदान और पूजा-अर्चना के लिए एकत्र होंगे। इस दिन कार्तिक पूर्णिमा पर भगवानों का स्वागत किया जाता है और घाटों पर लाखों दीपक जलाए जाते हैं। यह पर्व धार्मिक आस्था, आध्यात्मिक शांति और सामाजिक एकता का प्रतीक है, जिसे 4 और 5 नवंबर को मनाया जाएगा।
Dev Diwali: इस वर्ष देव दिवाली 4 और 5 नवंबर को काशी के गंगा घाटों पर मनाई जाएगी, जहां श्रद्धालु दीपदान और पूजा-अर्चना के लिए जुटेंगे। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होता है और भगवान शिव, विष्णु और अन्य देवी-देवताओं का स्वागत करने का विशेष महत्व रखता है। घाटों पर दीप जलाकर और संध्याकाल में आरती कर श्रद्धालु अपने जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं।
अद्भुत दृश्य और धार्मिक महत्व
देव दिवाली, जिसे देव दीपावली या त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है और इसे भगवान शिव और विष्णु की पूजा का पर्व माना जाता है। काशी के गंगा घाटों पर श्रद्धालु इस दिन स्नान कर पूजा करते हैं और संध्याकाल में दीप दान और आरती करते हैं। ऐसा मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता, ऋषि-मुनि और भक्त त्रिपुरासुर के वध की कथा को स्मरण करते हुए घाटों पर उतरते हैं और दीपों से दिव्यता फैलाते हैं।
शुभ मुहूर्त और पूजा समय
पंचांग के अनुसार देव दिवाली 2025 इस वर्ष 4 नवंबर की देर रात 10:36 बजे शुरू होगी और 5 नवंबर की शाम 06:48 बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी। पूजा और आरती का समय संध्याकाल 05:15 बजे से 07:50 बजे तक निर्धारित किया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष भद्रावास और शिववास जैसे मंगलकारी योग भी बन रहे हैं, जो पूजा और दीपदान के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
पूजा विधि और श्रद्धालुओं की परंपरा
श्रद्धालु इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान कर पूजा प्रारंभ करते हैं। घर और घाटों पर दीप जलाने का महत्व विशेष है। घर में दीपक प्रज्वलित करने से सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक शांति बढ़ती है। काशी के घाटों पर लाखों दीपक जलाकर भक्त भगवान शिव, विष्णु और अन्य देवी-देवताओं का स्वागत करते हैं। इस दिन की पूजा में मुख्यत: दीप, फूल, मिठाई, और अन्य पारंपरिक प्रसाद शामिल होते हैं।
पौराणिक कथा और देव दिवाली का इतिहास
पुराणों के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने देवताओं और ऋषियों को परेशान कर रखा था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया और देवताओं की रक्षा की। तभी से इस दिन को देव दिवाली कहा जाने लगा। माना जाता है कि इस दिन देवी-देवता घाटों पर उतरते हैं और दीपों से आलोकित वातावरण में भक्तों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
काशी के घाटों पर दीपों की रोशनी
देव दिवाली के अवसर पर काशी के सभी प्रमुख घाटों जैसे दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट और काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास हजारों दीपक जलाए जाते हैं। यह दृश्य भक्तों के लिए अत्यंत मनोहारी और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। घाटों पर दीपों की यह छटा श्रद्धालुओं को भक्ति भाव से ओत-प्रोत कर देती है।
आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
देव दिवाली केवल धार्मिक अनुष्ठान का पर्व नहीं है, बल्कि यह भाईचारे, सामाजिक मेलजोल और आध्यात्मिक जागरूकता का भी प्रतीक है। लोग इस दिन अपने परिवार के साथ घाटों पर दीप जलाने और पूजा करने आते हैं। यह पर्व मानव जीवन में भक्ति, शांति और आशीर्वाद का संदेश देता है।
संकलन और तैयारी
श्रद्धालु देव दिवाली से पहले घर और घाटों की सफाई करते हैं और पूजा सामग्री तैयार करते हैं। दीपक, फूल, मिठाई, जल, दूध और अन्य पारंपरिक सामान पूजा के लिए अनिवार्य माने जाते हैं। काशी में भक्तों की भारी भीड़ जुटती है, इसलिए सुरक्षा और सुविधा की विशेष तैयारी भी की जाती है।
देव दिवाली 2025 का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह आध्यात्मिक शांति और सामाजिक एकता का भी संदेश देता है। श्रद्धालु इस अवसर पर घाटों पर दीप जलाकर और पूजा-अर्चना कर अपने जीवन में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा ला सकते हैं। काशी की घाटों पर भव्य दीपोत्सव देखने का अनुभव भक्तों के लिए अविस्मरणीय होता है।