धौलपुर में 48 वर्षीय शिक्षिका मोनीदेवी को पुलिस ने फर्जी 10वीं और 12वीं प्रमाणपत्रों के जरिए 20 साल से सरकारी नौकरी करने के आरोप में गिरफ्तार किया। परिवार की शिकायत और मेरठ बोर्ड की जांच में घोटाला उजागर हुआ।
धौलपुर: राजस्थान के धौलपुर जिले में शिक्षा विभाग को शर्मसार करने वाला बड़ा मामला सामने आया है। यहाँ 48 वर्षीय शिक्षिका मोनीदेवी को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जो बीते दो दशकों से फर्जी 10वीं और 12वीं की अंकतालिकाओं के आधार पर नौकरी कर रही थीं। विधवा कोटे से 2005 में तृतीय श्रेणी शिक्षक पद पर नियुक्त मोनीदेवी ने वर्षों तक लाखों रुपये वेतन उठाया, लेकिन सत्यापन के दौरान उनकी पोल खुल गई।
फर्जी कागज़ों से 20 साल तक नौकरी
मोनीदेवी का मामला इसलिए चौंकाने वाला है क्योंकि उन्होंने 2005 में ही फर्जी दस्तावेजों के जरिए नियुक्ति हासिल कर ली थी और तब से लगातार बच्चों को पढ़ा रही थीं। इस दौरान विभाग ने कभी भी उनके प्रमाणपत्रों की गहराई से जांच नहीं की। परिणामस्वरूप, 20 साल तक वेतन उठाने के बाद भी वे बेखौफ सरकारी नौकरी करती रहीं।
जांच में सामने आया है कि मोनीदेवी के पति की मृत्यु 2001 में हो गई थी। इसके बाद उन्होंने विधवा कोटे से नौकरी पाने का प्रयास किया। इसी सिलसिले में उन्होंने आगरा के एक इंटर कॉलेज से कक्षा 10वीं और 12वीं की फर्जी अंकतालिकाएँ तैयार करवाईं। इन्हीं दस्तावेजों को आधार बनाकर उन्होंने तृतीय श्रेणी शिक्षक पद हासिल किया और लंबे समय तक सरकारी तंत्र को गुमराह करती रहीं।
परिवार की शिकायत से सामने आया फर्जीवाड़ा
मोनीदेवी के फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ उनके अपने परिवार से ही हुआ। परिजनों में से एक महिला ने कई साल पहले विभाग को शिकायत दी थी कि शिक्षिका ने नकली प्रमाणपत्रों से नौकरी पाई है। हालांकि, उस समय विभाग ने शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया और मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
जब विभाग ने कार्रवाई नहीं की तो शिकायतकर्ता ने खुद यूपी माध्यमिक शिक्षा परिषद, मेरठ से दस्तावेजों का सत्यापन कराया। वहाँ से यह साफ हो गया कि जिन रोल नंबर और प्रमाणपत्रों के आधार पर मोनीदेवी ने नौकरी पाई, वे किसी भी रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं हैं। इस रिपोर्ट को लेकर महिला सीधे जिला कलेक्टर के पास पहुँची और ठोस सबूत सौंपे। इसी के बाद पुलिस जांच सक्रिय हुई।
आगरा से हुई गिरफ्तारी
सत्यापन रिपोर्ट के आधार पर शिक्षा विभाग ने राजाखेड़ा थाने में मामला दर्ज कराया। थाना प्रभारी रामकिशन यादव ने बताया कि मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी की ओर से 24 फरवरी को रिपोर्ट दी गई थी। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि शिक्षिका ने फर्जी दस्तावेजों से नौकरी हासिल की है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने तफ्तीश शुरू की और आखिरकार सोमवार को आगरा के ताजगंज क्षेत्र से मोनीदेवी को गिरफ्तार कर लिया गया। अब उनसे पूछताछ की जा रही है कि फर्जी दस्तावेज तैयार करने में और कौन लोग शामिल थे और वेतन की भारी-भरकम राशि किस तरह निकाली गई।
शिक्षा विभाग पर उठे सवाल
इस घटना ने शिक्षा विभाग और सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक महिला कैसे 20 वर्षों तक बिना पकड़े नौकरी करती रही, यह प्रशासन की बड़ी चूक मानी जा रही है। यदि परिवार ने सत्यापन की पहल न की होती, तो शायद यह फर्जीवाड़ा और लंबे समय तक चलता रहता।
विशेषज्ञों का मानना है कि विभाग को नियुक्ति के समय ही दस्तावेजों की सख्ती से जांच करनी चाहिए थी। लेकिन लापरवाही के कारण न सिर्फ सरकारी खजाने को नुकसान हुआ, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता भी प्रभावित हुई। फिलहाल मोनीदेवी जेल की सलाखों के पीछे हैं और विभागीय स्तर पर उनकी सेवा समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।