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धड़क 2 पर सिद्धांत-तृप्ति का बड़ा खुलासा, कहा- फिल्म में उठेगा जातिवाद का मुद्दा, समाज को देगी बड़ा संदेश

धड़क 2 पर सिद्धांत-तृप्ति का बड़ा खुलासा, कहा- फिल्म में उठेगा जातिवाद का मुद्दा, समाज को देगी बड़ा संदेश

फिल्म ‘धड़क 2’ में सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी जातिवाद पर आधारित कहानी लाएंगे। दोनों का मानना है कि ऐसी फिल्में समाज को सोचने पर मजबूर करती हैं और लोगों को जागरूक बनाती हैं।

Dhadak 2: बॉलीवुड में जल्द आने वाली फिल्म ‘धड़क 2’ एक बार फिर से सामाजिक भेदभाव और जातिवाद जैसे गंभीर विषय पर फोकस करेगी। आठ साल पहले आई फिल्म ‘धड़क’ (जो मराठी फिल्म ‘सैराट’ की रीमेक थी) ने इंटरकास्ट लव स्टोरी को लेकर चर्चा बटोरी थी। अब इस सीक्वल में सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। दोनों कलाकारों ने हाल ही में एक इंटरव्यू में फिल्म की थीम और अपने अनुभवों पर खुलकर बात की।

'जड़ों से जुड़ी है कहानी' – सिद्धांत चतुर्वेदी

सिद्धांत का मानना है कि हिंदी सिनेमा को अब फिर से गांवों और छोटे शहरों की कहानियों की ओर लौटना चाहिए। उन्होंने कहा— 'हमारा देश गांवों का है। हर गांव की अपनी संस्कृति और भाषा है। दक्षिण भारतीय सिनेमा ने ‘कांतारा’ जैसी फिल्मों के जरिए इसे दिखाया है। हिंदी फिल्मों में ऐसे विषयों की कमी थी। ‘धड़क 2’ जैसी कहानियां इस अंतर को पूरा कर सकती हैं।' सिद्धांत के मुताबिक, इस फिल्म में उन्हें एक ऐसा किरदार निभाने का मौका मिला है जो सिर्फ एक रोमांटिक कहानी नहीं बल्कि समाज की सच्चाई को भी सामने लाता है।

तृप्ति डिमरी: 'फिल्में जागरूकता का सबसे बड़ा जरिया'

तृप्ति डिमरी ने कहा— 'जातिवाद पर फिल्म बनना जरूरी है क्योंकि बहुत से लोगों को यह पता ही नहीं कि आज भी कई जगह इस तरह का भेदभाव होता है। मेरी किरदार की एक डायलॉग लाइन है—‘मुझे लगा था ये सब सालों पहले खत्म हो गया।’ यही सोच आज भी कई लोगों की है। अगर हमारी फिल्म किसी को सोचने पर मजबूर करे और समाज में बदलाव लाए, तो वही हमारी सबसे बड़ी जीत होगी।'

फिल्म इंडस्ट्री में बने रहने की असली चुनौती

जब दोनों कलाकारों से पूछा गया कि इस इंडस्ट्री में सबसे कठिन क्या है, तो तृप्ति ने कहा— 'सबसे मुश्किल है खुद को बदलने से बचाना। कैमरे और लोगों की भीड़ आपको जल्दी ही यह महसूस कराती है कि यही जिंदगी है। लेकिन असल जिंदगी उससे बाहर है। लोकप्रियता में खो जाना आसान है, पर असली चुनौती है अपनी जड़ों को याद रखना।'

सिद्धांत ने कहा— 'हर फिल्म के साथ खुद को नया करना ही सबसे बड़ा टास्क है। अगर आप एक ही तरह की भूमिकाएं करते रहेंगे तो मार्केट वही तय कर देगा। मुझे लगता है हमें हमेशा खुद को खोजते रहना चाहिए।'

जातिवाद और भेदभाव से जुड़े निजी अनुभव

तृप्ति ने माना कि उन्होंने अपने आस-पास जातिगत हिंसा को सीधे तौर पर नहीं देखा, लेकिन बचपन में सुनी कुछ घटनाएं आज भी याद हैं। 'पड़ोस में किसी की शादी थी, पर लोग नहीं गए क्योंकि अंतरजातीय विवाह था। कुछ साल बाद वही परिवार सब मान गया। लेकिन हर कहानी का अंत इतना आसान नहीं होता।'

सिद्धांत ने अपने जीवन का एक अनुभव साझा किया— 'मैं बलिया से हूं। जब मुंबई आया तो अंग्रेजी नहीं आती थी। कई बार हीनभावना होती थी कि मैं कैसे आगे बढ़ूंगा। फिर समझ आया कि भाषा या कपड़े आपको परिभाषित नहीं करते। समाज में हर कोई किसी न किसी भेदभाव से गुजरता है। हमारी फिल्म का मैसेज भी यही है—डरो मत, लड़ो।'

क्या ‘धड़क 2’ फिर दोहराएगी ‘सैराट’ जैसा प्रभाव?

पहली ‘धड़क’ ने भले ही बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिज़नेस किया, लेकिन आलोचकों ने उसे ‘सैराट’ जितना दमदार नहीं माना। अब ‘धड़क 2’ के निर्माताओं के सामने चुनौती है कि वे कहानी को और गहराई के साथ पेश करें। फिल्म की टीम का कहना है कि इस बार यह सिर्फ एक लव स्टोरी नहीं, बल्कि सामाजिक असमानताओं पर सीधी टिप्पणी होगी।

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