दुर्गा पूजा 2025 इस वर्ष 28 सितंबर से 2 अक्टूबर तक पांच दिनों तक मनाई जाएगी। षष्ठी से दशमी तक प्रतिदिन विशेष पूजा, भोग, आरती और मंत्रों के माध्यम से मां दुर्गा की स्तुति होगी। इस उत्सव में सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व के अनुष्ठान शामिल हैं, जो भक्तों को मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं।
Durga Puja 2025: इस वर्ष दुर्गा पूजा 28 सितंबर 2025 से शुरू होकर 2 अक्टूबर 2025 तक पांच दिनों तक मनाई जाएगी। पर्व की शुरुआत षष्ठी तिथि से होती है और इसका समापन दशमी तिथि पर होता है। पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, असम और ओडिशा सहित देश के कई हिस्सों में यह उत्सव भक्तों और परिवारों के साथ मनाया जाएगा। प्रत्येक दिन विशेष पूजा, भोग, मंत्र और आरती के अनुष्ठान संपन्न होंगे, जिनका उद्देश्य मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करना और समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना है।
पश्चिम बंगाल और भारतभर में दुर्गा पूजा की धूम
दुर्गा पूजा, शारदीय नवरात्रि का प्रमुख पर्व, इस वर्ष 28 सितंबर 2025 से शुरू होकर 2 अक्टूबर 2025 तक पांच दिनों तक मनाया जाएगा। शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से शुरू होकर 1 अक्टूबर तक चलेगी, लेकिन दुर्गा पूजा षष्ठी तिथि से दशमी तक विशेष रूप से आयोजित होती है। इस पांच दिवसीय उत्सव में विभिन्न तिथियों पर अलग-अलग पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं, जो धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
षष्ठी तिथि (28 सितंबर 2025)
दुर्गा पूजा का आरंभ षष्ठी तिथि से होता है। इस दिन कल्पारम्भ, अकाल बोधन, आमंत्रण और अधिवास जैसे अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं। कल्पारम्भ पूजा में मां दुर्गा के आगमन का स्वागत किया जाता है और कलश स्थापना की जाती है। भक्त इस दिन विशेष रूप से मां को बुलाने के लिए निमंत्रण देते हैं और पूजा स्थल को सजाते हैं। इस दिन की पूजा से घर और समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी प्रकार के कष्ट दूर होने की मान्यता है।
सप्तमी तिथि (29 सितंबर 2025)
सप्तमी तिथि को कोलाबौ पूजा आयोजित की जाती है। इस दिन मां दुर्गा के विशेष रूपों की पूजा होती है और भक्ति भाव से आरती और भोग अर्पित किया जाता है। इस तिथि का मुख्य महत्व समाज में सामूहिक भक्ति और सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देना है। भक्तजन इस दिन मंदिरों और पंडालों में पहुंचकर मां के चरणों में फूल, अक्षत और दीप अर्पित करते हैं।
महा अष्टमी (30 सितंबर 2025)
अष्टमी तिथि को भोग-आरती और संधि पूजा का आयोजन होता है। इस दिन विशेष रूप से मां दुर्गा को भोग चढ़ाया जाता है और संधि पूजा के माध्यम से शक्ति और ऊर्जा का संचार किया जाता है। यह तिथि नौरात्रि के दौरान सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इसमें मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा होती है और भक्त उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। भोग में विशेष रूप से हलवा, खीर, फल और गुड़ का भोग अर्पित किया जाता है।
महा नवमी (1 अक्टूबर 2025)
महा नवमी तिथि पर नवमी होम और दुर्गा बलिदान का आयोजन होता है। इस दिन मां दुर्गा के चरणों में विशेष पूजन और हवन किए जाते हैं। नवमी होम के माध्यम से घर और समाज में सुख-शांति और समृद्धि की कामना की जाती है। यह दिन देवी की शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है और भक्तजन इस दिन मां से विशेष आशीर्वाद लेने के लिए तैयार रहते हैं।
दशमी तिथि (2 अक्टूबर 2025)
दशमी तिथि को दुर्गा विसर्जन और सिंदूर खेला का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं पूजा पंडाल में जाकर सिंदूर अर्पित करती हैं और मां के चरणों में प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करती हैं। इसके बाद मां दुर्गा का विसर्जन किया जाता है और रावण दहन जैसी सांस्कृतिक परंपराओं का आयोजन होता है। दशमी तिथि के अनुष्ठान में भक्तों की आस्था और उत्सव का भाव सबसे उच्चतम स्तर पर होता है।
पूजा अनुष्ठान का महत्व
दुर्गा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक अनुशासन और मानसिक शांति का माध्यम भी है। प्रत्येक तिथि का विशेष महत्व है और पूजा विधि का पालन श्रद्धा और भक्ति भाव से करने पर मां कालरात्रि और अन्य देवी स्वरूपों की कृपा प्राप्त होती है। आरती, मंत्र और भोग के माध्यम से घर और समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
भक्तों की तैयारी और पूजा सामग्री
पूजा की तैयारी में पूजा स्थल को साफ-सुथरा करना, गंगाजल से शुद्धिकरण, काली चुन्नी, रोली, अक्षत, लाल फूल और दीपक का प्रयोग शामिल है। भोग में हलवा, खीर, मालपुआ, उड़द की दाल और चावल अर्पित किए जाते हैं। मंत्र जाप में "या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:" और बीज मंत्र "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:" का प्रयोग किया जाता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
पांच दिवसीय दुर्गा पूजा का उत्सव केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह उत्सव परिवारों और समुदायों को एकजुट करता है, महिलाओं और बच्चों को धार्मिक शिक्षा प्रदान करता है और समाज में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने में मदद करता है।