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गुजरात के डाकोर जी मंदिर में 250 साल पुरानी अनोखी परंपरा: 3000 किलो प्रसाद 10 मिनट में लुटा

गुजरात के डाकोर जी मंदिर में 250 साल पुरानी अनोखी परंपरा: 3000 किलो प्रसाद 10 मिनट में लुटा

दीवाली की धूम के बाद जब पूरे भारत में सन्नाटा छा जाता है, गुजरात के एक मंदिर में एक अनोखी परंपरा का आगाज होता है। इस दौरान मंदिर में प्रसाद के रूप में 'अन्नकूट' बनाया जाता है, जिसे लेने के लिए हजारों भक्त मंदिर में धावा बोलते हैं।

Dakor Temple: गुजरात के डाकोर जी मंदिर में दीवाली के बाद हर साल एक अनोखी और आकर्षक परंपरा निभाई जाती है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए बड़ा आकर्षण का केंद्र बन जाती है। यहां भगवान कृष्ण के लिए समर्पित 'अन्नकूट' उत्सव मनाया जाता है, जिसमें 3000 किलो से अधिक प्रसाद तैयार किया जाता है। लेकिन इस प्रसाद का वितरण किसी सामान्य तरीके से नहीं होता, बल्कि भक्त इसे लूटने के लिए धावा बोलते हैं।

यह परंपरा लगभग 250 साल पुरानी है और इसे हर साल बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस आयोजन में करीब 80 गांवों के लोग भाग लेते हैं, जो मंदिर के कपाट खुलते ही प्रसाद को पाने के लिए दौड़ लगाते हैं।

अन्नकूट का महत्व

डाकोर मंदिर, जिसे रणछोड़राय डाकोर मंदिर भी कहा जाता है, भगवान कृष्ण को समर्पित है। दीवाली के बाद यहाँ आयोजित अन्नकूट उत्सव में भगवान कृष्ण के सम्मान में विविध प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। अन्नकूट में चावल, बूंदी, मिठाई, फल और अन्य अनाज का प्रयोग किया जाता है। मंदिर के पुजारियों द्वारा भगवान रणछोड़राय को प्रसाद अर्पित करने के बाद दोपहर लगभग 2:30 बजे मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। जैसे ही कपाट खुलते हैं, श्रद्धालु 'जय रणछोड़' के जयकारे के साथ दौड़ लगाते हैं और प्रसाद केवल 10 मिनट में लूट लिया जाता है।

इस अनोखी परंपरा में भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। लगभग 80 गांवों के श्रद्धालु इस अवसर पर मंदिर में आते हैं। भीड़ को नियंत्रित करने और किसी अप्रिय घटना से बचाने के लिए मंदिर परिसर में पुलिस तैनात रहती है।

स्थानीय प्रशासन और मंदिर प्रबंधन का कहना है कि यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि यहाँ के सांस्कृतिक जीवन का अहम हिस्सा भी है। अन्नकूट उत्सव में शामिल होकर श्रद्धालु न केवल भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने का अवसर पाते हैं बल्कि समुदाय में भाईचारे और उत्सव की भावना भी अनुभव करते हैं।

अनोखी परंपरा, अनोखा उत्सव

दूसरे मंदिरों की तरह डाकोर जी मंदिर में प्रसाद को शांतिपूर्वक बांटना नहीं होता। यहाँ प्रसाद को लूटने की परंपरा ने इसे अनोखा बना दिया है। इस प्रक्रिया में श्रद्धालु अपनी गति और उत्साह के बल पर प्रसाद प्राप्त करते हैं। यह नजारा इतना आकर्षक होता है कि दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं। मंदिर प्रशासन ने कहा कि इस उत्सव की खास बात यह है कि यह न केवल धार्मिक श्रद्धा को बढ़ाता है बल्कि स्थानीय समुदाय में उत्सव की ऊर्जा और भागीदारी की भावना को भी प्रोत्साहित करता है।

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