बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर मचा राजनीतिक बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा। इस बीच भारत निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर विपक्ष के तमाम आरोपों को खारिज करते हुए पूरी स्थिति स्पष्ट की है। आयोग ने कहा कि कुछ राजनीतिक दल जानबूझकर भ्रम फैला रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि वे खुद इस प्रक्रिया का हिस्सा हैं और अपने बूथ लेवल एजेंट्स (BLO) के जरिए इसमें सक्रिय रूप से सहयोग भी कर रहे हैं।
विपक्ष के आरोपों में सच्चाई नहीं
चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा है कि विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ जो याचिकाएं दायर की गई हैं, वे समय से पहले दाखिल की गई हैं और इस स्तर पर उन पर विचार करने की जरूरत नहीं है। आयोग के मुताबिक यह एक सामान्य और नियमित प्रक्रिया है, जो हर चुनाव से पहले होती है ताकि मतदाता सूची को अद्यतन किया जा सके और उसमें फर्जी, मृत या डुप्लिकेट नामों को हटाया जा सके।
आयोग ने यह भी बताया कि बिहार में इस प्रक्रिया की शुरुआत 25 जून को की गई थी और यह 26 जुलाई तक चलेगी। इसके तहत राज्य भर में BLO घर-घर जाकर मतदाताओं को Enumeration Form वितरित कर रहे हैं। लोगों को 11 में से किसी एक दस्तावेज की प्रति जमा करनी होती है, जिससे उनकी पहचान और नागरिकता की पुष्टि हो सके।
आधार कार्ड जरूरी नहीं
हलफनामे में आयोग ने आधार कार्ड को लेकर भी स्थिति साफ की है। आयोग ने कहा कि आधार उन 11 जरूरी दस्तावेजों में शामिल नहीं है जो मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए अनिवार्य हैं। हालांकि, इसे अन्य दस्तावेजों के साथ एक सपोर्टिंग डॉक्युमेंट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसके साथ ही आयोग ने जानकारी दी कि अब तक 90 फीसदी से ज्यादा नागरिकों ने आवश्यक फॉर्म भरकर जमा कर दिए हैं। वहीं 18 जुलाई तक केवल 5 फीसदी ऐसे लोग थे जिन्होंने अभी तक फॉर्म नहीं भरे थे। इसका मतलब है कि लोग इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं और यह पूरी तरह पारदर्शी ढंग से चल रही है।
पिछड़े वर्गों को टारगेट करने की साजिश
वहीं दूसरी ओर, विपक्षी दलों—खासकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों—ने इस पूरी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि यह कदम ठीक चुनाव से पहले उठाया गया है, जिससे दलित, पिछड़े, अति-पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों को टारगेट किया जा सके।
विपक्ष ने इसे सुनियोजित साजिश बताते हुए कहा है कि सरकार वोटर लिस्ट से इन वर्गों के मतदाताओं के नाम हटाकर चुनावी समीकरण बदलना चाहती है। इस मुद्दे को लेकर राज्य विधानसभा में भी जबरदस्त हंगामा देखा गया है।
पारदर्शिता बनाम राजनीतिक घमासान
चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध और अद्यतन बनाना है, ताकि फर्जी या गैर-योग्य मतदाता लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल न हो सकें। दूसरी ओर, विपक्ष इसे राजनीतिक हथकंडा बताकर जनता को सतर्क कर रहा है।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है और आयोग ने स्पष्ट कहा है कि इस स्तर पर याचिकाओं पर विचार करना उचित नहीं होगा। ऐसे में अब सबकी निगाहें कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि मतदाता सूची की यह विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष और कानूनी है।