इस साल हरियाली अमावस्या का पर्व 24 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा। सावन महीने की अमावस्या तिथि को हरियाली अमावस्या कहा जाता है। यह दिन पवित्रता, प्रकृति, पूर्वजों और पुण्य कर्मों के लिहाज से बेहद खास माना जाता है। इस दिन देशभर में श्रद्धालु गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करके दान करते हैं। साथ ही, पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान का भी विशेष महत्व होता है।
तर्पण से मिलती है पितरों को शांति
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन अमावस्या के दिन जो व्यक्ति अपने पितरों का श्रद्धा भाव से तर्पण और पिंडदान करता है, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भी कहा गया है कि इस दिन का तर्पण तीन पीढ़ियों तक के पितरों को संतोष और शांति देता है। यही कारण है कि हर साल इस अवसर पर बड़ी संख्या में लोग पूर्वजों के लिए धार्मिक क्रियाएं करते हैं।
गंगा स्नान और दान का महत्व
हरियाली अमावस्या पर सुबह सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। विशेषकर गंगा स्नान का इस दिन विशेष महत्व माना गया है। स्नान के बाद दान देना भी शुभ माना जाता है। दान में अन्न, वस्त्र, तांबे के पात्र, काले तिल, दूध, गौदान, और दक्षिणा दी जाती है। मान्यता है कि इस दिन दिया गया दान पितरों को संतुष्ट करता है और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-शांति आती है।
हरियाली से जुड़ता है यह पर्व
यह पर्व सावन के महीने में आता है, जब धरती पर हरियाली अपने पूरे यौवन पर होती है। बारिश से भीगी धरती पर नई कोपलें फूटती हैं और वातावरण हरियाली से भर जाता है। इसी कारण इसे हरियाली अमावस्या कहा जाता है। ग्रामीण इलाकों में इस दिन पेड़ लगाना, पौधारोपण करना और वृक्षों की पूजा करने की भी परंपरा है। कुछ स्थानों पर मेले भी आयोजित होते हैं, जहां महिलाएं झूले झूलती हैं और लोक गीत गाती हैं।
पितृ दोष शांति के लिए पढ़ें यह स्तोत्र
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि तर्पण करते समय पितृ दोष निवारण स्तोत्र का पाठ करना बेहद लाभकारी होता है। यह स्तोत्र पितरों की आत्मा को शांति देने के साथ-साथ घर से पितृ दोष दूर करने में मदद करता है। माना जाता है कि इस स्तोत्र के प्रभाव से परिवार में चल रही पीढ़ी-दर-पीढ़ी की परेशानियां कम होती हैं और वातावरण सकारात्मक बनता है।
पितृ दोष निवारण स्तोत्र का पाठ इस प्रकार है:
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज
ब्राह्मण भोजन और श्राद्ध का भी होता है महत्व
हरियाली अमावस्या पर पितरों को प्रसन्न करने के लिए कुछ लोग ब्राह्मण भोज का भी आयोजन करते हैं। पितरों की पसंद की चीजें जैसे खीर, पूड़ी, हलवा आदि बनाकर ब्राह्मणों को खिलाया जाता है। इसके अलावा कुछ लोग अपने कुल पुरोहित की देखरेख में विधिपूर्वक श्राद्ध भी कराते हैं।
कहां-कहां होता है बड़ा आयोजन
उत्तर भारत में खासकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में हरियाली अमावस्या बड़े उत्साह से मनाई जाती है। उज्जैन, हरिद्वार, प्रयागराज, गया और वाराणसी जैसे तीर्थों में विशेष तर्पण और पिंडदान के कार्यक्रम होते हैं। इन जगहों पर लाखों श्रद्धालु एकत्र होकर स्नान, दान और पितृ कार्यों को संपन्न करते हैं।