जापान की दूसरी सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी मित्सुई ओएसके लाइन्स ने भारत में टैंकर निर्माण के लिए साझेदारी का प्रस्ताव दिया है। भारत सरकार जहाज निर्माण और शिपयार्ड सेक्टर में विदेशी निवेश को बढ़ावा दे रही है, ताकि 2047 तक विदेशी शिप पर निर्भरता घटाई जा सके और लागत में कमी लाई जा सके।
Shipbuilding in India: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा के बाद भारत और जापान के कारोबारी रिश्तों को नया आयाम मिला है। इसी कड़ी में जापान की शिपिंग कंपनी मित्सुई ओएसके लाइन्स ने भारत में टैंकर निर्माण में साझेदारी की पेशकश की है। कंपनी के सीईओ ताकेशी हाशिमोतो ने सिंगापुर में आयोजित एपीपीईसी सम्मेलन में कहा कि भारत अपने समुद्री कानूनों को मॉर्डन कर विदेशी भागीदारी बढ़ाना चाहता है। बढ़ते कच्चे तेल आयात और रिफाइंड उत्पादों के निर्यात को देखते हुए भारत को जहाजों की बड़ी जरूरत है। सरकार ने इस दिशा में 250 अरब रुपये का समुद्री विकास फंड भी घोषित किया है।
भारत का ध्यान जहाज निर्माण पर

भारत इन दिनों अपने समुद्री कानूनों को आधुनिक बना रहा है। सरकार चाहती है कि जहाज निर्माण, बंदरगाह और शिपयार्ड जैसे क्षेत्रों में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिले। इस बदलाव का मकसद है कि 2047 तक विदेशी कंपनियों पर माल ढुलाई का बोझ एक तिहाई तक कम किया जा सके। अभी भारत विदेशी जहाजों के भरोसे कच्चे तेल और रिफाइंड उत्पादों के आयात-निर्यात का काम करता है। इसकी वजह से देश को अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है।
जापानी कंपनी का प्रस्ताव
जापान की दूसरी सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी मित्सुई ओएसके लाइन्स के सीईओ ताकेशी हाशिमोतो ने साफ कहा है कि अगर भारत में कोई कंपनी उनके साथ साझेदारी करती है, तो इससे भारतीय शिपयार्ड को मजबूती मिलेगी और स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा। हाशिमोतो ने सिंगापुर में आयोजित एपीपीईसी सम्मेलन में कहा कि भारत सरकार चाहती है कि नए जहाज भारत में ही तैयार हों। इस दिशा में मित्सुई ओएसके लाइन्स भी शामिल होने की इच्छा रखती है।
बढ़ती जरूरतें और भारत की चुनौतियां
भारत का शिपिंग फ्लीट देश की बढ़ती जरूरतों के हिसाब से अब तक पर्याप्त नहीं है। भारत बड़ी मात्रा में कच्चा तेल आयात करता है और साथ ही रिफाइंड ऑयल प्रोडक्ट्स का निर्यात भी बढ़ रहा है। इसके बावजूद देश के पास जहाजों की संख्या और क्षमता दोनों ही कम हैं। इस कमी की वजह से भारत को विदेशी जहाजों पर निर्भर रहना पड़ता है। यही कारण है कि सरकार जहाज निर्माण को लेकर गंभीर है और इस सेक्टर में विदेशी कंपनियों को साझेदारी के लिए आमंत्रित कर रही है।
सरकार का बड़ा कदम

भारत सरकार ने फरवरी में पेश किए गए बजट में जहाज निर्माण और मरम्मत उद्योग को मजबूत करने के लिए 250 अरब रुपए का समुद्री विकास फंड बनाने का ऐलान किया था। यह फंड लंबे समय तक वित्तीय मदद देने का काम करेगा। सरकार चाहती है कि भारत जहाज निर्माण के क्षेत्र में भी एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरे।
ताकेशी हाशिमोतो ने यह भी कहा कि भारत में कामयाबी तभी संभव है जब स्थानीय कंपनियों और भारतीय शिपयार्डों के साथ मजबूत साझेदारी की जाए। उन्होंने साफ किया कि मित्सुई ओएसके लाइन्स इस क्षेत्र में सहयोग करने के लिए तैयार है, लेकिन इसके लिए भारतीय साझेदारों की सक्रिय भूमिका जरूरी है।
कारोबार में नए अवसर
हाल के वर्षों में भारत के निर्यात में लगातार इजाफा हुआ है। इसी कारण जहाजों की मांग भी बढ़ी है। अगर भारत में जहाज निर्माण तेज होता है, तो इससे न केवल माल ढुलाई की लागत कम होगी, बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। यही वजह है कि सरकार और विदेशी कंपनियां मिलकर इस क्षेत्र में कदम बढ़ा रही हैं।













