महाराष्ट्र कांग्रेस ने मराठी भाषा के लिए ‘हम मराठी, हम भारतीय’ अभियान शुरू किया। बीजेपी ने इसे नौटंकी बताया। दोनों दलों में बयानबाज़ी तेज हो गई है।
Political Turmoil in Maharashtra: महाराष्ट्र कांग्रेस ने हाल ही में ‘हम मराठी, हम भारतीय’ नाम से एक विशेष मराठी भाषा कार्यशाला का आयोजन किया। यह कार्यक्रम मीरा रोड इलाके में हुआ, जहां महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने मराठी भाषा को लेकर जनता से संवाद किया। सपकाल ने मंच से कहा कि मराठी केवल भाषा नहीं, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक पहचान और अस्मिता का प्रतीक है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कांग्रेस किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन जब किसी पर जबरन तीसरी भाषा थोपी जाती है, तो उसका विरोध होना चाहिए।
कांग्रेस का रुख- शिक्षा से सम्मान, नहीं जबरन
हर्षवर्धन सपकाल ने यह भी स्पष्ट किया कि कांग्रेस मराठी भाषा को सिखाने और उसका गौरव बढ़ाने में विश्वास रखती है, न कि किसी पर जबरदस्ती थोपने में। उनका कहना था, "हम किसी से लड़ाई नहीं करेंगे, न ही कोई मारपीट करेंगे। हम लोगों को मराठी सिखाएंगे, ताकि सभी को इस भाषा की गरिमा समझ में आए।"
उन्होंने कार्यक्रम में साफ तौर पर कहा कि कांग्रेस का अभियान मराठी भाषा के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से शुरू किया गया है, और इसे किसी राजनीतिक हथकंडे के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब राज्य में विभिन्न भाषाओं के प्रचार-प्रसार को लेकर विवाद गहराता जा रहा है।
बीजेपी का पलटवार- विपक्ष कर रहा नौटंकी
कांग्रेस के इस मराठी अभियान को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने तीखा पलटवार किया है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस यह सब केवल राजनीतिक ध्यान खींचने के लिए कर रही है। उनके अनुसार, मराठी भाषा महाराष्ट्र में पहले से ही मजबूत है और इसे लेकर कांग्रेस का नया अभियान केवल एक 'राजनीतिक नौटंकी' है।
भाजपा का कहना है कि कांग्रेस को मराठी की याद केवल चुनाव से पहले ही आती है। पार्टी नेताओं का यह भी तर्क है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब उसने मराठी भाषा को लेकर कोई ठोस काम नहीं किया।
भाषा की राजनीति या सांस्कृतिक चेतना?
महाराष्ट्र जैसे विविधभाषी राज्य में भाषा हमेशा एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। मराठी बनाम हिंदी, मराठी बनाम अंग्रेजी जैसे बहसों ने समय-समय पर राजनीतिक रंग लिया है। हालांकि, इस बार कांग्रेस ने सधी हुई रणनीति के तहत भाषा की राजनीति से हटकर शिक्षा और सांस्कृतिक गौरव पर जोर देने की कोशिश की है।