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मोहन भागवत का बयान: 'धर्म की रक्षा से ही सबकी रक्षा होती है', RSS प्रमुख ने साझा किए दिशा-निर्देश

मोहन भागवत का बयान: 'धर्म की रक्षा से ही सबकी रक्षा होती है', RSS प्रमुख ने साझा किए दिशा-निर्देश

दिल्ली में आयोजित आरएसएस के कार्यक्रम ‘100 वर्ष की संघ यात्रा- नए क्षितिज’ में बोलते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सामाजिक समरसता का कार्य कठिन जरूर है, लेकिन इसे करना अनिवार्य है, इसका कोई विकल्प नहीं है।

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में RSS के कार्यक्रम ‘100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज’ में अपने विचार साझा करते हुए कहा कि धर्म की रक्षा करना समाज और देश की रक्षा के लिए आवश्यक है। उन्होंने अपने संबोधन में सामाजिक समरसता, आत्मनिर्भरता और स्वदेशी के महत्व पर जोर दिया।

भागवत ने कहा कि आज संघ के प्रति समाज में अनुकूलता बढ़ी है और विरोध बहुत कम हो गया है। “जो विरोध है, उसकी धार कम हो गई है। इसमें संघ की यही सोच है कि अनुकूलता मिली है तो सुविधा भोगना या आराम करना नहीं है। हमें संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करने का कार्य लगातार करना होगा,” उन्होंने कहा।

मोहन भागवत ने सामाजिक समरसता और धर्म के महत्व पर दिया जोर

मोहन भागवत ने सामाजिक समरसता को सुनिश्चित करने के लिए सुझाव दिए कि वंचित वर्ग के लोगों के साथ मित्रता बढ़ाई जाए। उन्होंने कहा कि मंदिर, पानी और श्मशान में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। उनका कहना था कि धर्म केवल किसी धार्मिक प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में संतुलन और मध्यम मार्ग का मार्गदर्शन करता है।

उन्होंने आगे कहा, मनुष्य को धर्म को रखना पड़ता है, इसके लिए त्याग आवश्यक है। धर्म की रक्षा करने से ही सभी की रक्षा होती है। दुनिया में कलह और कट्टरपन बढ़ रहा है, लेकिन धर्म हमें बैलेंस और मध्यम मार्ग दिखाता है।

RSS प्रमुख ने बताया आत्मनिर्भरता का अर्थ 

RSS प्रमुख ने आत्मनिर्भरता को सभी क्षेत्रों में सफलता की कुंजी बताया। उन्होंने कहा कि देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए और इसके लिए स्वदेशी उत्पादों और सेवाओं का उपयोग प्राथमिकता से करना चाहिए। उन्होंने अपने संबोधन में कहा:अपना देश आत्मनिर्भर होना चाहिए। आत्मनिर्भरता का अर्थ यह नहीं है कि बाहर की चीजों को पूरी तरह बंद कर दें, बल्कि यह कि जो हमारे देश में बनता है, उसे प्राथमिकता दें। 

देशभक्ति और समाजसेवा की भावना को परिवार और समाज के स्तर पर बढ़ाना जरूरी है। भागवत ने छोटे-छोटे कार्यों जैसे पौधा लगाना, वंचित बच्चों को पढ़ाना, या समाज के लिए कोई भी सेवा करना, देश और समाज के साथ जुड़ाव बढ़ाने का माध्यम बताया।

संघ का दृष्टिकोण

उन्होंने हिंदुत्व और हिंदू विचारधारा की मूल भावना पर भी प्रकाश डाला। भागवत ने कहा, “संक्षेप में हिंदुत्व दो शब्दों में है – सत्य और प्रेम। दुनिया इस पर चलती है, न कि सौदों या अनुबंधों पर।” उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत की ज्ञान परंपरा का उद्देश्य हर व्यक्ति को जीवन की विद्या सिखाना और सर्वत्र सुख और भलाई सुनिश्चित करना है।

RSS प्रमुख ने सामाजिक और राष्ट्रीय समन्वय के लिए पड़ोसी देशों के साथ संवाद को भी जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि भौगोलिक सीमाएं बदल गई हैं, लेकिन सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध अभी भी मौजूद हैं। भागवत ने आर्थिक असमानता और पर्यावरणीय संकट पर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि आर्थिक उन्नति कभी-कभी पर्यावरण के लिए हानिकारक साबित हो रही है और अमीर और गरीब के बीच की दूरी बढ़ रही है। उन्होंने इस पर जागरूकता बढ़ाने और समाधान खोजने का आग्रह किया।

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