आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी पर कहा कि भारत को वैश्विक दबाव, पड़ोसी अस्थिरता और टैरिफ युद्ध के बीच स्वदेशी अपनाकर आत्मनिर्भर बनना होगा। उन्होंने युवा पीढ़ी को देशभक्ति और स्वावलंबन अपनाने के लिए प्रेरित किया।
Maharashtra: डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ युद्ध छेड़े जाने के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी के मौके पर नागपुर से संबोधन देते हुए स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को अपनाने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि यह भारत के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। भागवत ने जोर देकर कहा कि आपस में जुड़ी दुनिया में व्यापारिक साझेदारों पर निर्भरता लाचारी में बदलना ठीक नहीं है और देश को स्वदेशी उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
उन्होंने कहा, "हमारा देश आर्थिक क्षेत्र में आगे बढ़े इसीलिए युवा उद्योजक उत्साहित हैं। अमेरिका ने टैरिफ नीति अपनाई होगी, उनके हित के लिए। विश्व का जीवन निर्भरता से चलता है। अकेला राष्ट्र आइसोलेशन में नहीं जी सकता। यह निर्भरता मजबूरी में नहीं बदले। हमें स्वदेशी और स्वावलंबन अपनाना पड़ेगा, इसका कोई विकल्प नहीं है।"
पड़ोसी देशों की अस्थिरता पर चिंता
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि अमेरिकी टैरिफ नीति का प्रभाव हम सभी पर पड़ता है। इसलिए भारत को अपने आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्रों में स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देना होगा ताकि निर्भरता मजबूरी में ना बदले। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे पड़ोसी देशों में अस्थिरता और उथल-पुथल की स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय है। भागवत ने यह संकेत दिया कि भारत को अपने आर्थिक और सामाजिक ढांचे को मजबूत करना होगा ताकि वैश्विक दबावों और बाहरी संकटों से सामना किया जा सके।
युवा पीढ़ी में देशभक्ति
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि भारत में युवा पीढ़ी में देशभक्ति के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि अगर दुनिया का जीवन वही विकसित माना जाए जो अमेरिका में है, तो हमें पांच पृथ्वी चाहिए होंगी। इसके साथ ही उन्होंने दुनिया में आर्थिक गतिविधियों की गति और संसाधनों की बढ़ती मांग का उल्लेख किया। भागवत ने कहा कि व्यवस्था बनाने वाला मनुष्य होता है और जैसा समाज है, वैसी व्यवस्थाएं चलेंगी। समाज के आचरण में परिवर्तन लाना जरूरी है और इसके लिए व्यक्ति को अपने आप को नए आचरण में ढालना होगा। उन्होंने कहा, "हम उस परिवर्तन का उदाहरण बनकर जीएं।"
भागवत ने कहा कि संघ का अनुभव यह है कि व्यक्ति परिवर्तन से समाज परिवर्तन और समाज परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तन आता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आदतें बदले बिना कोई वास्तविक परिवर्तन संभव नहीं है। उन्होंने कहा, "जैसा आपको देश चाहिए, वैसा आपको होना है। संघ की शाखा आदत बदलने की व्यवस्था है।" भागवत ने यह भी बताया कि संघ को लालच और राजनीति में आने का निमंत्रण मिला, लेकिन संघ ने इसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक 50 साल से शाखाओं में आते रहे हैं और आज भी आ रहे हैं। इसका उद्देश्य केवल आदत को बनाए रखना और व्यक्तित्व और राष्ट्रभक्ति का निर्माण करना है।
एकता और राष्ट्रभक्ति पर जोर
आरएसएस प्रमुख ने अपने संबोधन के दौरान देश में एकता और स्वदेशी उत्पादों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि व्यक्ति और समाज के स्तर पर आदत और अनुशासन का पालन करने से ही राष्ट्रभक्ति और स्वावलंबन मजबूत होता है। भागवत ने स्पष्ट किया कि भारत को वैश्विक दबावों, टैरिफ युद्ध और पड़ोसी देशों की अस्थिरता के बीच आर्थिक और सामाजिक मजबूती बनाए रखनी होगी। स्वदेशी अपनाने, युवा पीढ़ी को प्रेरित करने और समाज में बदलाव लाने के माध्यम से ही देश आगे बढ़ सकता है।