संयुक्त अरब अमीरात (UAE) आज जिस आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ऊँचाई पर खड़ा है, उसकी नींव एक ऐसे व्यक्तित्व ने रखी थी, जिसने रेत से सोने जैसी संपन्नता की नींव रखी। वह थे — शेख जायद बिन सुल्तान अल नाहयान। उन्हें 'राष्ट्रपिता' (Father of the Nation) कहा जाता है और यह कोई औपचारिक उपाधि नहीं, बल्कि उनके त्याग, दृष्टिकोण और कर्मठता का प्रमाण है।
प्रारंभिक जीवन: एक सादगीपूर्ण बचपन
शेख ज़ायद का जन्म 6 मई 1918 को अबू धाबी के क़सर अल-होसन में हुआ। वे अबू धाबी के तत्कालीन शासक शेख सुल्तान बिन खलीफा अल नाहयान के सबसे छोटे बेटे थे। उनके नाम का अर्थ है 'उदारता' और यह नाम उनके दादा 'ज़ायद द ग्रेट' के नाम पर रखा गया था। बाल्यकाल में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया और शिक्षा की कोई आधुनिक सुविधा न होने के कारण उन्होंने इस्लामी मूल्यों की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। वह रेगिस्तान में बेदुइनों के साथ रहते हुए परंपरागत ज्ञान, कौशल और जीवटता को आत्मसात करते गए।
प्रशासनिक शुरुआत: अल ऐन से अबू धाबी तक
शेख ज़ायद का जन्म 6 मई 1918 को अबू धाबी के क़सर अल-होसन में हुआ था। वे अबू धाबी के शासक शेख सुल्तान बिन खलीफा अल नाहयान के सबसे छोटे बेटे थे। उनके नाम का मतलब 'उदारता' होता है और यह नाम उनके दादा 'ज़ायद द ग्रेट' से लिया गया था। बचपन से ही शेख ज़ायद में गहरी सोच, नेतृत्व की झलक और लोगों की मदद करने की भावना दिखने लगी थी। बहुत छोटी उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। उस समय न तो आधुनिक स्कूल थे और न ही किताबें आसानी से मिलती थीं, इसलिए उन्होंने इस्लाम और नैतिकता की शिक्षा मौलवियों से प्राप्त की। वे रेगिस्तान में बेदुइन कबीले के लोगों के साथ रहते थे, जहां उन्होंने प्रकृति के साथ जीने की कला, ऊंटों की देखभाल, शिकार, और जनजीवन के कठिन अनुभवों से व्यवहारिक ज्ञान सीखा। इसी ने उनके जीवन को मजबूत आधार दिया।
सत्ता में बदलाव: एक शांत तख्तापलट
साल 1966 में अबू धाबी में बड़ा बदलाव हुआ। शेख ज़ायद के बड़े भाई शेख शखबूत को शासक पद से हटाया गया और शेख ज़ायद को अबू धाबी का नया शासक बनाया गया। यह सत्ता परिवर्तन बिना किसी हिंसा के हुआ, इसलिए इसे 'शांत तख्तापलट' कहा गया। ब्रिटिश सरकार ने भी इस बदलाव में समर्थन दिया। शेख ज़ायद के नेतृत्व में एक नई सोच और तरक्की की शुरुआत हुई। शेख ज़ायद ने अबू धाबी के तेल से मिलने वाले पैसे का बुद्धिमानी से इस्तेमाल किया। उन्होंने स्कूल, अस्पताल, सड़कें और घर बनाने के काम शुरू किए। उनके फैसलों से आम लोगों की ज़िंदगी बेहतर होने लगी। शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के क्षेत्र में उनका योगदान बहुत बड़ा था। यही वह दौर था जब अबू धाबी तेजी से आगे बढ़ने लगा।
यूएई की नींव: संघ की कल्पना
2 दिसंबर 1971 को ब्रिटेन ने ट्रूशियल स्टेट्स से हटने का फैसला किया। इसी समय शेख ज़ायेद ने दुबई के शासक शेख राशिद बिन सईद अल मकतूम के साथ मिलकर एक नया देश बनाने की योजना बनाई। उन्होंने छह और अमीरातों को एक साथ जोड़कर 'संयुक्त अरब अमीरात' यानी यूएई की नींव रखी। सभी ने मिलकर शेख ज़ायेद को इस नए देश का पहला राष्ट्रपति चुना। यह केवल अलग-अलग राज्यों का एक होना नहीं था, बल्कि एक बड़ा सपना था। शेख ज़ायेद चाहते थे कि रेगिस्तान में भी तरक्की और खुशहाली आए। उन्होंने यूएई को एक आधुनिक और मजबूत देश बनाने की दिशा में काम शुरू किया। उनके इस कदम से देश को एक नई पहचान और दिशा मिली।
परोपकार और दूरदर्शिता: एक सच्चा इंसानियत का सेवक
शेख ज़ायेद ने सिर्फ अपने देश की नहीं, बल्कि पूरे इस्लामी जगत और अफ्रीकी व एशियाई देशों की भी मदद की। उन्होंने अरब विकास कोष, शिक्षा संस्थान, अस्पताल और मस्जिदें बनवाने में भारी योगदान दिया। 1984 में उन्होंने यमन के ऐतिहासिक मारिब बांध के पुनर्निर्माण के लिए धन मुहैया कराया, यह स्थान उनके पूर्वजों का मूल माना जाता है। उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास में समानता की वकालत की और महिलाओं को शिक्षा व श्रम अधिकार दिलाने के पक्षधर थे।
धर्म और राजनीति में संतुलन: इस्लामी नेतृत्व का आदर्श
शेख ज़ायेद का शासन इस्लाम के सिद्धांतों पर आधारित था, लेकिन वह केवल धार्मिक नहीं थे—वह एक समझदार और दयालु नेता भी थे। उनका मानना था कि हर इंसान को आज़ादी और सम्मान मिलना चाहिए। वे कहते थे, 'हम ऐसी व्यवस्था क्यों अपनाएं जो लोगों में विवाद पैदा करे? हमारा धर्म तो हमें सिखाता है कि नेता को दया और समझदारी से काम लेना चाहिए।' शेख ज़ायेद ने न सिर्फ मस्जिदें बनवाईं, बल्कि चर्च और मंदिर जैसी दूसरी धार्मिक जगहों को भी बनाने की अनुमति दी। उनका यह रवैया दिखाता है कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे। इसी सोच के कारण वे एक सहिष्णु और उदार मुस्लिम नेता के रूप में दुनिया भर में पहचाने जाने लगे।
आर्थिक क्रांति: तेल से समृद्धि तक
शेख ज़ायेद ने 1976 में अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (ADIA) की शुरुआत की। यह संस्था आज दुनिया के सबसे बड़े धन को संभालने वाले संस्थानों में से एक मानी जाती है। उनका सपना था कि सिर्फ आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी धन और तरक्की सुनिश्चित की जाए। तेल से मिले पैसे को उन्होंने समझदारी से लोगों की भलाई के लिए लगाया। उन्होंने कहा कि यह पैसा शिक्षा, इलाज, सड़क, पानी और घर जैसी जरूरी चीजों में लगना चाहिए, ताकि हर नागरिक का जीवन बेहतर हो सके।
मृत्यु और विरासत: मिट्टी में मिलकर अमर होना
2 नवंबर 2004 को 86 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। उनका अंतिम विश्राम स्थान अबू धाबी की भव्य ग्रैंड मस्जिद के प्रांगण में है, जिसे अब "शेख ज़ायेद ग्रैंड मस्जिद" के नाम से जाना जाता है। उनके पुत्र, शेख खलीफा बिन ज़ायेद अल नाहयान ने उनके पद को संभाला और पिता की नीतियों को आगे बढ़ाया।
शेख ज़ायेद बिन सुल्तान अल नाहयान एक ऐसे नेता थे जिन्होंने केवल एक राष्ट्र की स्थापना नहीं की, बल्कि उसकी आत्मा को भी आकार दिया। उनकी दूरदृष्टि, सहिष्णुता और जनसेवा की भावना ने संयुक्त अरब अमीरात को रेगिस्तान से उठाकर दुनिया के सबसे विकसित और समृद्ध देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। उन्होंने धर्म, राजनीति और अर्थव्यवस्था के बीच अद्भुत संतुलन स्थापित कर एक आदर्श नेतृत्व प्रस्तुत किया। आज भी उनका जीवन और सिद्धांत एक प्रेरणास्त्रोत हैं, जो बताता है कि नेतृत्व में करुणा और विकास दोनों संभव हैं।