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राष्ट्रपति के 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट में 22 जुलाई को अहम सुनवाई: क्या तय होगी डेडलाइन? जानिए पूरा मामला

राष्ट्रपति के 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट में 22 जुलाई को अहम सुनवाई: क्या तय होगी डेडलाइन? जानिए पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट में 22 जुलाई को एक अहम सुनवाई होने जा रही है। इस सुनवाई में यह फैसला किया जा सकता है कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधानसभा से पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए कोई निश्चित समय-सीमा तय की जानी चाहिए या नहीं।

नई दिल्ली: भारत के संविधान और राजनीति के इतिहास में 22 जुलाई 2025 का दिन बेहद अहम साबित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण सुनवाई होने जा रही है, जिसका असर राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों और उनके फैसलों पर समय-सीमा तय करने पर पड़ सकता है। इस सुनवाई में देश की सबसे बड़ी अदालत यह तय करेगी कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधानसभा से पारित विधेयकों पर फैसले के लिए कोई तय समय-सीमा होनी चाहिए या नहीं।

इस सुनवाई की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice D.Y. Chandrachud) के स्थान पर अब चीफ जस्टिस बीआर गवई (Chief Justice B.R. Gavai) की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ करेगी।

तमिलनाडु के मामले से जुड़ा है यह पूरा विवाद

दरअसल, हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा विधानसभा के 10 विधेयकों को रोकने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। कोर्ट ने साफ कहा था कि राज्यपाल का इस तरह विधेयकों को रोककर रखना संविधान के खिलाफ है। कोर्ट के इस फैसले के पांच सप्ताह के भीतर यह सवाल उठा कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल को भी विधेयकों पर फैसला लेने के लिए निश्चित समय-सीमा में बंधा जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के इस रुख के बाद ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 15 मई को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट के सामने 14 बड़े सवाल रखे, जिनका जवाब भारत के कानून और लोकतंत्र के भविष्य को गहराई से प्रभावित कर सकता है।

क्या है अनुच्छेद 143 और क्यों उठे सवाल?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 143 (Article 143) राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि यदि कोई महत्वपूर्ण संवैधानिक या कानूनी प्रश्न हो, तो वे उस पर सुप्रीम कोर्ट से राय ले सकते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के लिए इन सवालों का जवाब देना अनिवार्य नहीं होता। इतिहास में इससे पहले भी दो बार सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति के ऐसे सवालों का जवाब देने से इनकार कर चुका है।

1993 में, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर राष्ट्रपति ने पूछा था कि क्या वहां कभी मंदिर था। सुप्रीम कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया था, क्योंकि मामला पहले से अदालत में लंबित था।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के 14 बड़े सवाल 

  1. क्या राज्यपाल को विधेयक पर फैसला लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह माननी ही होगी?
  2. विधेयक आने पर राज्यपाल के पास कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं?
  3. जब संविधान में कोई समय-सीमा नहीं है, तो क्या सुप्रीम कोर्ट उसे तय कर सकता है?
  4. क्या राष्ट्रपति के फैसलों को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?
  5. क्या राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से राय लेना अनिवार्य है?
  6. क्या राज्यपाल के फैसलों को अदालत में चुनौती मिल सकती है?
  7. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसलों को पलट सकता है?
  8. क्या अदालत राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसले से पहले ही कोई आदेश दे सकती है?
  9. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसा आदेश दे सकता है जो वर्तमान कानून में न हो?
  10. केंद्र और राज्य सरकार के विवादों को क्या केवल सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?
  11. अगर संविधान में कोई समयसीमा नहीं है तो क्या सुप्रीम कोर्ट समय-सीमा तय कर सकता है?
  12. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह रोक सकता है?
  13. क्या संविधान से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पास भेजना अनिवार्य है?
  14. क्या विधानसभा द्वारा पारित कोई कानून राज्यपाल की मंजूरी के बिना लागू हो सकता है?

सुप्रीम कोर्ट क्या कर सकता है?

संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट इन सवालों पर स्पष्ट राय दे सकता है लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 143(1) के तहत चाहें तो जवाब देने से मना भी कर सकता है। यदि सुप्रीम कोर्ट जवाब देता है तो यह भविष्य में केंद्र और राज्यों के बीच टकराव के मामलों में दिशानिर्देशक (precedent) बन जाएगा।

बीते वर्षों में कई राज्यपालों ने विधेयकों को महीनों और सालों तक बिना मंजूरी के रोके रखा है। तमिलनाडु, केरल, पंजाब, तेलंगाना जैसे राज्यों में यह मुद्दा विवाद का कारण रहा। इससे राज्यों के लोकतांत्रिक ढांचे और विधायी प्रक्रिया पर असर पड़ता है। इस वजह से मांग उठी है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए निर्धारित समयसीमा तय होनी चाहिए।

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