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संकट में वोडाफोन आइडिया, भविष्य पर मंडरा रहा खतरा

संकट में वोडाफोन आइडिया, भविष्य पर मंडरा रहा खतरा

देश की तीसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया (Vi) की वित्तीय स्थिति लगातार खराब होती जा रही है।

नई दिल्ली: भारत की टेलीकॉम इंडस्ट्री एक बार फिर संकट के मुहाने पर खड़ी है और इस बार निशाने पर है देश की तीसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया। लंबे समय से घाटे में चल रही कंपनी की हालत अब इतनी नाजुक हो चुकी है कि उसके अस्तित्व पर सवाल खड़े हो गए हैं। हालांकि सरकार कंपनी को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रही है, फिर भी संकट टलता नजर नहीं आ रहा।

सरकार ने संभाली कमान लेकिन हल नहीं निकला

मार्च 2025 में सरकार ने वोडाफोन आइडिया के 36,950 करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम बकाया को इक्विटी में बदल दिया था। इसके बाद सरकार कंपनी की सबसे बड़ी शेयरधारक बन गई और उसकी हिस्सेदारी 48.99 प्रतिशत तक पहुंच गई। यह कदम इसलिए उठाया गया था ताकि कंपनी को फंडिंग में आसानी हो और बाजार में उसका भरोसा बना रहे। लेकिन इससे भी कंपनी की स्थिति में सुधार नहीं हुआ।

एजीआर बकाया बना सबसे बड़ा संकट

वोडाफोन आइडिया की सबसे बड़ी मुश्किल उसका एजीआर यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू बकाया है, जो अब भी चुकाया जाना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कंपनी को इस बकाया को छह साल में चुकाना था। लेकिन कंपनी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इस भुगतान योजना को पूरा करने में असमर्थ है। इस स्थिति को देखते हुए टेलीकॉम विभाग अब इस समयसीमा को 20 साल तक बढ़ाने पर विचार कर रहा है।

हालांकि अगर भुगतान की अवधि 20 साल तक बढ़ा दी जाती है, तब भी कंपनी की दीर्घकालिक स्थिरता को लेकर गंभीर संदेह बना हुआ है। टेलीकॉम विभाग के एक अधिकारी के अनुसार अगर कंपनी को हर साल 6,000 करोड़ से 8,500 करोड़ रुपये की किस्त चुकानी पड़ी, तो वित्त वर्ष 2029 तक उसके पास नकदी खत्म हो सकती है।

सबसे खराब स्थिति में क्या होगा

अगर सरकार और कंपनी के बीच बनी सहमति नहीं होती या अगर राहत पैकेज पर स्पष्टता नहीं आती, तो कंपनी के पास दिवालिया घोषित होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा नकदी प्रवाह और कर्ज के स्तर को देखते हुए वोडाफोन आइडिया वित्त वर्ष 2027 से आगे नहीं चल पाएगी, जब तक कि वह नई फंडिंग का प्रबंध न कर ले।

ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी को हर साल करीब 20,000 करोड़ रुपये की नकदी की जरूरत होगी, जिसे जुटा पाना मौजूदा परिस्थिति में लगभग असंभव है। अगर एजीआर बकाया पर कोई राहत नहीं मिली और कर्ज लेने के प्रयास विफल रहे, तो वोडाफोन आइडिया के लिए भविष्य बहुत अंधकारमय हो सकता है।

क्यों नहीं हो पा रही फंडिंग

वोडाफोन आइडिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों का भरोसा कंपनी से उठ गया है। पहले ही कंपनी हजारों करोड़ के कर्ज में डूबी है और उसके पास निवेशकों को आश्वस्त करने के लिए ठोस व्यवसायिक योजना नहीं है। टेलीकॉम इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि जब तक कंपनी अपना बुनियादी ढांचा नहीं सुधारेगी और 5जी सेवाओं को तेज नहीं करेगी, तब तक निवेश आकर्षित कर पाना बेहद मुश्किल होगा।

बाजार में घटती हिस्सेदारी

कंपनी की बाजार हिस्सेदारी में भी लगातार गिरावट देखी जा रही है। रिलायंस जियो और एयरटेल की आक्रामक रणनीतियों के सामने वोडाफोन आइडिया टिक नहीं पा रही है। जहां एयरटेल और जियो तेजी से 5जी नेटवर्क का विस्तार कर रहे हैं, वहीं वोडाफोन आइडिया अब तक सीमित क्षेत्रों में ही 5जी सेवाएं शुरू कर पाई है। इससे ग्राहकों का भरोसा लगातार कमजोर होता जा रहा है।

ट्राई के आंकड़ों के अनुसार, कंपनी के ग्राहक लगातार कम हो रहे हैं और उसके नेटवर्क छोड़कर बड़ी संख्या में ग्राहक प्रतिद्वंदी कंपनियों की ओर रुख कर रहे हैं। यह गिरती ग्राहक संख्या कंपनी की आय पर सीधा असर डाल रही है और कर्ज चुकाने की उसकी क्षमता को और कमजोर कर रही है।

क्या कंपनी को बंद होना पड़ेगा

हालांकि अभी तक वोडाफोन आइडिया की ओर से यह स्पष्ट संकेत नहीं दिया गया है कि कंपनी बंद होगी, लेकिन उद्योग जगत के संकेत और विश्लेषण इसे संभावित मान रहे हैं। अगर सरकार और कंपनी के बीच जल्द समाधान नहीं निकला और कोई मजबूत निवेशक सामने नहीं आया, तो वोडाफोन आइडिया को अपना संचालन बंद करने पर मजबूर होना पड़ सकता है।

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