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AI और सोशल मीडिया से बढ़ रहा है ‘ब्रेन रॉट’ का खतरा, जाने कैसे घट रही है सोचने की क्षमता

AI और सोशल मीडिया से बढ़ रहा है ‘ब्रेन रॉट’ का खतरा, जाने कैसे घट रही है सोचने की क्षमता

नई रिसर्च बताती है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और सोशल मीडिया का अत्यधिक इस्तेमाल इंसान की सोचने और समझने की क्षमता को कमजोर कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदत ब्रेन रॉट की स्थिति पैदा कर रही है, जिसमें दिमाग धीरे-धीरे सतही और निष्क्रिय होता जाता है।

AI And Social Media Impact: पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी, MIT और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के हालिया अध्ययनों में पाया गया कि एआई टूल्स और सोशल मीडिया पर निर्भर लोग कम गहराई से सोचते हैं और याददाश्त पर भी इसका असर पड़ता है। विशेषज्ञों के मुताबिक TikTok, Instagram और ChatGPT जैसी तकनीकें दिमाग को तुरंत जानकारी देने की आदत में ढाल रही हैं, जिससे लोगों की विश्लेषण करने और समझने की क्षमता घट रही है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो आने वाली पीढ़ी ब्रेन रॉट की गंभीर समस्या का सामना कर सकती है।

एआई और सोशल मीडिया से घट रही है सोचने की क्षमता

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और सोशल मीडिया पर बढ़ती निर्भरता अब दिमाग पर गहरा असर डाल रही है। पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी की व्हार्टन प्रोफेसर शिरी मेलुमैड के अध्ययन में सामने आया कि एआई की मदद से काम करने वाले लोग कम गहराई से सोचते हैं और उनकी सलाह या विचार अधिक सतही होते हैं। पारंपरिक खोज करने वालों की तुलना में उनका विश्लेषण कमजोर और सीमित पाया गया। मेलुमैड का कहना है कि AI ने खोजने और समझने की प्रक्रिया को एक निष्क्रिय आदत बना दिया है।

‘ब्रेन रॉट’ का बढ़ा खतरा 

‘ब्रेन रॉट’ यानी दिमाग का सुन्न होना अब डिजिटल युग की एक सच्चाई बन गया है। द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, TikTok और Instagram जैसी ऐप्स के छोटे, हल्के कंटेंट से लोग लगातार कम गुणवत्ता वाली जानकारी में उलझे रहते हैं। 2024 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने Brain Rot को साल का शब्द घोषित किया था। यह उस स्थिति को दर्शाता है जब व्यक्ति की सोचने, याद रखने और गहराई से समझने की क्षमता धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है।

बच्चों की पढ़ाई और मेमोरी पर भी असर

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सैन फ्रांसिस्को की एक रिपोर्ट बताती है कि जो बच्चे रोजाना तीन घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, उनकी मेमोरी और शब्दावली पर नकारात्मक असर पड़ता है। हर अतिरिक्त घंटे की स्क्रॉलिंग उन्हें किताबों, नींद और रचनात्मकता से दूर ले जा रही है। अमेरिका के कई राज्यों ने इसी वजह से स्कूलों में मोबाइल फोन बैन करने की नीति अपनाई है।

एआई से काम करने पर क्यों घटता है दिमागी एक्टिवेशन

MIT की एक स्टडी में पाया गया कि जो छात्र ChatGPT की मदद से लेखन कर रहे थे, उनके ब्रेन एक्टिविटी लेवल सबसे कम थे। 83% छात्रों को एक मिनट बाद अपने ही लिखे वाक्य याद नहीं रहे, जबकि जिन्होंने खुद लिखा या Google पर सर्च की मदद ली, उन्हें अपने लेख के हिस्से याद रहे। MIT की शोधकर्ता नतालिया कोस्माइना का कहना है, अगर आप वो याद ही नहीं रख पा रहे जो आपने लिखा है, तो क्या सच में आप उसे समझ रहे हैं?

तकनीक का संतुलित इस्तेमाल ही कुंजी

विशेषज्ञ मानते हैं कि तकनीक से दूरी नहीं, बल्कि संतुलित उपयोग ही सही रास्ता है। बच्चों के लिए स्क्रीन-फ्री ज़ोन बनाना, सोशल मीडिया का समय सीमित रखना और एआई को सहायक उपकरण की तरह इस्तेमाल करना जरूरी है। मेलुमैड का कहना है कि पहले खुद सोचें, फिर एआई से सुधार करें जैसे कोई छात्र गणित का हल पहले खुद निकालता है और बाद में कैलकुलेटर से जांचता है।

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