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सुंदरकांड: रामायण का वह अध्याय जिसे 'सुंदरकांड' नाम यूं ही नहीं मिला, जानिए इसका दिव्य रहस्य

सुंदरकांड: रामायण का वह अध्याय जिसे 'सुंदरकांड' नाम यूं ही नहीं मिला, जानिए इसका दिव्य रहस्य

रामचरितमानस हिंदू धर्म का वह अमूल्य ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीराम के जीवन, आदर्श, संघर्ष और विजय की गाथा विस्तारपूर्वक वर्णित है। इस ग्रंथ में कुल सात कांड हैं: बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड। इन सभी कांडों में से सुंदरकांड को विशेष महत्व प्राप्त है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका पाठ मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से भी अद्भुत प्रभाव डालता है।

परंतु एक सवाल अक्सर मन में आता है — इसी अध्याय को सुंदरकांड क्यों कहा गया? आखिर क्या कारण है कि हनुमानजी के पराक्रमों से भरे इस अध्याय को 'सुंदर' कहा गया जबकि इसमें युद्ध, विनाश और उथल-पुथल के अनेक दृश्य भी हैं? आइए इस लेख के माध्यम से सुंदरकांड के नाम, महत्व और लाभों को गहराई से समझें।

सुंदरकांड नाम क्यों?

‘सुंदरकांड’ नाम सुनते ही मन में एक सकारात्मक और मधुर भाव उत्पन्न होता है। लेकिन इसका नाम सिर्फ उसकी भाषा या कथानक के कारण सुंदर नहीं है, इसके पीछे अनेक आध्यात्मिक, प्रतीकात्मक और ऐतिहासिक कारण हैं:

1. सुंदर पर्वत से संबंध

वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि जिस पर्वत से हनुमानजी ने लंका की ओर छलांग लगाई थी उसका नाम 'सुंदर पर्वत' था। उसी सुंदर स्थान से हनुमानजी का यह दिव्य मिशन आरंभ हुआ, इसलिए इस अध्याय को 'सुंदरकांड' कहा गया।

2. हनुमानजी का स्वरूप

हनुमानजी का चरित्र इस अध्याय में सबसे अधिक प्रकट होता है — उनकी भक्ति, बुद्धि, बल, विनम्रता, पराक्रम और विवेक का जो सुंदर संगम इस कांड में देखने को मिलता है, वह उन्हें 'सुंदर' बनाता है। तुलसीदासजी स्वयं हनुमानजी को 'सुंदर रूप' कहते हैं —

'सिंहिकाके प्राण हरे, लंकिनी मारी बाज।
सुंदर रूप धरि लंका माहीं, करि विचरण अति आज।'

3. सीताजी को मिला 'सुंदर' संदेश

रावण द्वारा अपहरण के बाद यह पहला अवसर था जब माता सीता को श्रीराम का संदेश मिला। यह संदेश, हनुमानजी द्वारा दी गई अंगूठी और सांत्वना, उनके लिए आशा की पहली किरण बनी। इसलिए इस प्रसंग को 'सुंदर समाचार' से जोड़कर देखा जाता है।

4. 'सुंदर' शब्द की आवृत्ति

सुंदरकांड में 'सुंदर' शब्द का प्रयोग कुल 8 बार किया गया है। कहीं हनुमानजी की उड़ान को सुंदर कहा गया है, कहीं अशोक वाटिका को, कहीं हनुमान के संवाद को और कहीं लंका के वर्णन को। इस बार-बार प्रयोग से भी इस अध्याय को 'सुंदरकांड' नाम दिया गया।

5. अशोक वाटिका — सौंदर्य का प्रतीक

लंका में स्थित अशोक वाटिका, जहां सीताजी रहती थीं, वह अपने आप में सुंदरता, हरियाली और सौम्यता का प्रतीक थी। वहीं हनुमानजी और सीता माता की भेंट हुई। यह स्थल और यह क्षण इस कांड को 'सुंदर' की उपमा देता है।

सुंदरकांड का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

1. हनुमानजी की भक्ति और शक्ति का केंद्रबिंदु

सुंदरकांड हनुमानजी की पराक्रम यात्रा है — समुद्र पार करना, राक्षसों का संहार, लंका में प्रवेश, सीताजी से भेंट, रावण को चेतावनी और फिर लंका जलाना। इन सभी कार्यों को उन्होंने एक सेवक की निष्ठा से किया, जिससे यह कांड भक्ति और शक्ति दोनों का संदेश देता है।

2. भय, संकट और बाधाओं का विनाश

मान्यता है कि सुंदरकांड का पाठ नकारात्मक शक्तियों और विघ्नों को दूर करता है। यह संकट मोचन की तरह कार्य करता है और जीवन में साहस भरता है।

3. रामभक्तों के लिए वरदान

जो व्यक्ति नियमित रूप से सुंदरकांड का पाठ करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं हनुमानजी पूरी करते हैं। यह पाठ मन और मस्तिष्क को शांत करता है और आत्मिक संतुलन प्रदान करता है।

सुंदरकांड पढ़ने के लाभ

1. संकटों से मुक्ति

जीवन में आर्थिक, मानसिक या शारीरिक कोई भी संकट हो, सुंदरकांड का पाठ करने से राहत मिलती है।

2. नकारात्मकता दूर होती है

यह पाठ वातावरण को शुद्ध और ऊर्जावान बना देता है। इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

3. आत्मविश्वास में वृद्धि

हनुमानजी के पराक्रम से प्रेरणा लेकर व्यक्ति में साहस और दृढ़ निश्चय की भावना उत्पन्न होती है।

4. भक्ति और सेवा का मार्ग

यह कांड हमें यह सिखाता है कि सच्ची सेवा, निष्ठा और समर्पण से किसी भी असंभव कार्य को संभव बनाया जा सकता है।

सुंदरकांड – एक प्रेरणा स्रोत

सुंदरकांड में न केवल हनुमान जी के पराक्रम का वर्णन है, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आने वाली चुनौतियों से लड़ने की प्रेरणा देता है। यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति, निस्वार्थ सेवा और साहस से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है।

हनुमान जी का यह रूप दर्शाता है कि जब कार्य धर्म से जुड़ा हो, जब लक्ष्य सेवा हो, और जब मन में विश्वास हो – तो कोई बाधा बड़ी नहीं होती।

सुंदरकांड केवल एक अध्याय नहीं, बल्कि रामभक्ति, साहस और सेवा का प्रतीक है। इसमें छिपे सौंदर्य का अर्थ केवल दृश्य सौंदर्य नहीं, बल्कि आंतरिक दिव्यता, त्याग, निष्ठा और भक्ति का सौंदर्य है। हनुमानजी की लंका यात्रा केवल एक मिशन नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के रिश्ते की अमर कहानी है।

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