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तीस हजारी कोर्ट का बड़ा फैसला, लॉ ग्रैजुएट महिला को नहीं मिलेगा पति से गुजारा भत्ता

तीस हजारी कोर्ट का बड़ा फैसला, लॉ ग्रैजुएट महिला को नहीं मिलेगा पति से गुजारा भत्ता

दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने एक लॉ ग्रेजुएट महिला को पति से गुज़ाराभत्ता देने से इनकार किया। अदालत ने कहा कि शिक्षित और सक्षम महिला के बेरोजगार होने के दावे पर विश्वास नहीं किया जा सकता, वह स्वयं अपना जीवनयापन करने में सक्षम है।

दिल्ली की तीस हजारी फैमिली कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए एक लॉ ग्रैजुएट महिला की गुजारा भत्ता (मेंटेनेंस) की याचिका खारिज कर दी है। महिला ने अपने अलग रह रहे पति से मासिक खर्च दिलाने के लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 23 के तहत अर्जी दाखिल की थी। अदालत ने माना कि महिला शिक्षित, सक्षम और कार्य करने में पूरी तरह समर्थ है, इसलिए उसे पति से आर्थिक सहायता की आवश्यकता नहीं है।

महिला ने पति और ससुराल वालों पर लगाए उत्पीड़न के आरोप

मामले में महिला ने अपने पति और ससुराल पक्ष पर शारीरिक, मौखिक और भावनात्मक प्रताड़ना के आरोप लगाए। उसने दावा किया कि शादी के बाद उसे दहेज के नाम पर कई बार परेशान किया गया और परिवार ने उसे मानसिक उत्पीड़न का शिकार बनाया।

महिला ने अपनी अर्जी में कहा कि वह वर्तमान में बेरोजगार है और आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति में है। इसलिए अदालत से गुजाराभत्ता के रूप में हर महीने आर्थिक सहायता दिलाने की मांग की गई थी।

पति की ओर से आया कड़ा विरोध

प्रतिवादी पति की ओर से एडवोकेट के.के. शर्मा ने अदालत में तर्क दिया कि याचिकाकर्ता स्वयं बीकॉम और एलएलबी (कानून स्नातक) है तथा बार काउंसिल से लाइसेंस प्राप्त लीगल प्रैक्टिशनर है। ऐसे में वह खुद अपनी जीविका चला सकती है और उसे किसी प्रकार की वित्तीय सहायता की आवश्यकता नहीं है।

पति की ओर से यह भी कहा गया कि महिला की आर्थिक स्थिति स्थिर है और वह जानबूझकर अपने पेशे से दूरी बना रही है ताकि पति पर आर्थिक बोझ डाला जा सके। वहीं पति ने अदालत को अपनी आय और संपत्ति से संबंधित सभी दस्तावेज प्रस्तुत किए।

अदालत ने कहा शिक्षित महिला को आत्मनिर्भर बनना चाहिए

फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें और बैंक स्टेटमेंट सहित प्रमाणों का अध्ययन करने के बाद कहा कि महिला के पास पर्याप्त योग्यता और अनुभव है। अदालत ने माना कि ऐसी महिला, जो कानून की पढ़ाई कर चुकी है और पेशेवर रूप से सक्षम है, उसे आत्मनिर्भर होने से कोई नहीं रोक सकता।

अदालत ने यह भी कहा कि केवल वैवाहिक मतभेद या अलग रहना किसी महिला को स्वतः गुजारा भत्ता का हकदार नहीं बनाता। जब तक यह साबित न हो कि वह असमर्थ है या जीवन-यापन के लिए किसी आय का स्रोत नहीं है, तब तक गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता।

कोर्ट ने जांच के बाद सुनाया फैसला

न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि शिक्षित महिलाओं को अपने अधिकारों के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियों का भी एहसास होना चाहिए। आज के समय में जब महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के समान कार्य कर रही हैं, तो उन्हें आत्मनिर्भर बनने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

अदालत के इस फैसले को महिला सशक्तिकरण के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण निर्णय माना जा रहा है, जो यह संदेश देता है कि समानता का अर्थ केवल अधिकार प्राप्त करना नहीं, बल्कि जिम्मेदारी निभाना भी है।

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