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तेजस्वी को CM चेहरा मान चुके हैं कन्हैया, फिर भी लालू परिवार में क्यों नहीं बन रही उनकी जगह

तेजस्वी को CM चेहरा मान चुके हैं कन्हैया, फिर भी लालू परिवार में क्यों नहीं बन रही उनकी जगह

बिहार की राजनीति में कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार ने साफ कर दिया है कि महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव को आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद का मुख्य चेहरा माना जा रहा है। उन्होंने कहा है कि गठबंधन में सीएम उम्मीदवार उसी पार्टी का होगा जिसके पास अधिक विधायक हों और जो गठबंधन का नेतृत्व कर रही हो। कन्हैया ने यह भी बताया कि विपक्षी दल इस मुद्दे को भटकाने के लिए उठाते हैं ताकि जनता का ध्यान चुनाव के मुख्य मुद्दों से हट सके।

फिर भी, कन्हैया कुमार को लालू परिवार और आरजेडी के भीतर पूरी तरह अपनाया नहीं गया है। इसका एक ताजा उदाहरण विपक्षी नेताओं के मार्च के दौरान देखने को मिला जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव खुली ट्रक पर सवार थे, लेकिन कन्हैया को नीचे उतार दिया गया। यह घटना महागठबंधन के अंदर मनमुटाव और कन्हैया की सीमित स्वीकार्यता को बयां करती है। बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और महागठबंधन ने एनडीए को शिकस्त देने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। तेजस्वी यादव को सीएम फेस बनाकर आरजेडी प्रचार कर रही है, जबकि कांग्रेस ने सीएम चेहरे को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है। कन्हैया के बयान से साफ है कि सीएम चेहरा तय है, लेकिन गठबंधन के अंदर रिश्तों और राजनीति की जटिलताएं बरकरार हैं।

लालू परिवार में जगह न बन पाने का कारण

बिहार के राजनीतिक माहौल में कन्हैया कुमार ने स्पष्ट कर दिया है कि तेजस्वी यादव ही महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के मुख्य चेहरे हैं। इसके बावजूद लालू परिवार ने कन्हैया को अपने करीब नहीं लिया है। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि लालू प्रसाद यादव शुरू से ही बिहार में कन्हैया की सक्रियता और बढ़ते प्रभाव से सहज नहीं थे। जहां तेजस्वी को सियासी विरासत के रूप में समर्थन मिला है, वहीं कन्हैया ने खुद अपनी मेहनत और काबिलियत से कांग्रेस में एक मजबूत पहचान बनाई है।

जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर ने भी कन्हैया कुमार की प्रतिभा की तारीफ की है। उन्होंने कहा कि बिहार में कांग्रेस के जितने भी नेता हैं, उनमें कन्हैया सबसे प्रभावशाली हैं और कुछ कर सकते हैं। प्रशांत किशोर ने यह भी आरोप लगाया कि अगर कांग्रेस बिहार में कन्हैया का सही इस्तेमाल नहीं कर रही है, तो इसका मतलब है कि वह आरजेडी की पिछलग्गू पार्टी बन गई है। कन्हैया की बढ़ती लोकप्रियता और असर से लालू परिवार में असंतोष बना हुआ है, जो उनकी राजनीतिक राह में बड़ी चुनौती है।

क्या कन्हैया ने हाईजैक किया तेजस्वी का एजेंडा

लगभग चार महीने पहले कन्हैया कुमार ने युवाओं की समस्याओं को लेकर ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ नामक पदयात्रा निकाली थी, जो कांग्रेस का एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गई है। यह मुद्दा तेजस्वी यादव के बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा से जुड़े चुनावी एजेंडे से मेल खाता है और 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद से कन्हैया इसे जोर-शोर से उठा रहे हैं। इस पदयात्रा के दौरान यह भी सवाल उठे कि कहीं कन्हैया ने तेजस्वी के इस एजेंडे को हाईजैक तो नहीं कर लिया है।

नेतृत्व और राजनीतिक समझ के मामले में तेजस्वी आगे

आरजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने साफ कहा है कि तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार की तुलना करना सही नहीं होगा। तेजस्वी यादव एक ऐसे नेता हैं, जो राष्ट्र-विरोधी बयानों के लिए विवादों में नहीं रहे, जबकि कन्हैया की राजनीतिक छवि विवादों से घिरी रही है। जब बिहार और उसके लोगों के लिए गहरी प्रतिबद्धता और अनुभव रखने वाला तेजस्वी यादव मौजूद है, तो कन्हैया को गंभीरता से लेना मुश्किल होता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि नेतृत्व के मामले में तेजस्वी यादव कहीं अधिक अनुभवी हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनावों में यह अनुभव साफ नजर आता है। इसके विपरीत, कन्हैया ने कभी स्वतंत्र रूप से किसी राजनीतिक दल का नेतृत्व नहीं किया है। दोनों नेता अपनी-अपनी क्षेत्रीय ताकत के चलते बड़ी भीड़ जुटाने में माहिर हैं। तेजस्वी यादव मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ के लिए जाने जाते हैं, जबकि जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने बिहार के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों में भी जनसमर्थन हासिल किया है। दोनों प्रभावशाली वक्ता हैं और राजनीतिक विरोधियों पर तीखे हमले करते हैं, लेकिन राजनीतिक अनुभव के मामले में तेजस्वी यादव आगे हैं।

लोकसभा चुनाव में कन्हैया को मिली थी हार

कन्हैया कुमार ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के खिलाफ लड़ते हुए की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बेगूसराय सीट से सीपीआई के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जहां आरजेडी के तनवीर हुसैन भी मैदान में थे। हालांकि, इस चुनाव में उन्हें भाजपा के गिरिराज सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।

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