सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन आइडिया की ₹9,450 करोड़ के अतिरिक्त AGR बकाया को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 6 अक्टूबर से टालकर अब 13 अक्टूबर तय की है। सुनवाई टलने की खबर से कंपनी के शेयरों में हल्की रिकवरी देखी गई। वोडाफोन आइडिया ने कहा है कि उसने तय बकाया चुका दिया है और बाकी रकम विवादित है।
Vodafone idea: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वोडाफोन आइडिया की उस याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें कंपनी ने दूरसंचार विभाग द्वारा मांगे गए ₹9,450 करोड़ के अतिरिक्त AGR बकाया को चुनौती दी थी। सुनवाई टलने की खबर से शेयरों में हल्की बढ़त आई और वे ₹8.49 पर पहुंच गए। अब अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को होगी। कंपनी का कहना है कि उसने तय बकाया चुका दिया है, जबकि बाकी रकम अभी विवादित है। वहीं सरकार ने भी माना कि इस विवाद से कंपनी पर भारी आर्थिक दबाव है, जिससे उसके संचालन और करोड़ों ग्राहकों की सेवाओं पर असर पड़ सकता है।
शेयर बाजार में हलचल
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले वोडाफोन आइडिया के शेयरों में करीब 5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। निवेशकों में चिंता थी कि अगर कोर्ट कंपनी के खिलाफ फैसला देता है तो इसका असर शेयरों पर नकारात्मक होगा। लेकिन जैसे ही खबर आई कि सुनवाई टल गई है, शेयरों में हल्की तेजी लौट आई। कंपनी का शेयर करीब 2 प्रतिशत चढ़कर 8.49 रुपये पर ट्रेड करने लगा। निवेशकों को उम्मीद है कि आने वाली सुनवाई में कंपनी को कुछ राहत मिल सकती है।
क्या है AGR विवाद
AGR यानी Adjusted Gross Revenue, यानी टेलीकॉम कंपनियों की कुल कमाई का वह हिस्सा जिस पर सरकार लाइसेंस फीस और अन्य चार्ज लगाती है। टेलीकॉम कंपनियां पहले केवल मोबाइल नेटवर्क से हुई कमाई पर फीस देती थीं। लेकिन साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि कंपनियों को अपनी हर तरह की कमाई, चाहे वह टेलीकॉम सेवाओं से जुड़ी हो या नहीं, उस पर भी सरकार को फीस देनी होगी। इस फैसले के बाद से सरकार और टेलीकॉम कंपनियों के बीच बकाया रकम को लेकर बड़ा विवाद शुरू हो गया।
वोडाफोन आइडिया का पक्ष
वोडाफोन आइडिया का कहना है कि उसने जितना बकाया स्पष्ट रूप से तय था, वह चुका दिया है। कंपनी का तर्क है कि अब जो 9,450 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम मांगी जा रही है, वह विवादित है और अभी तक सरकार ने उसे अंतिम रूप नहीं दिया है। कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि जब तक बकाया की सही रकम तय नहीं होती, तब तक उसे डिफॉल्टर यानी चूक करने वाला न माना जाए और किसी तरह का जुर्माना या ब्याज न लगाया जाए।
कंपनी ने हाल ही में अपनी याचिका में संशोधन करते हुए यह भी मांग की है कि बकाया रकम पर लगने वाला ब्याज और जुर्माना माफ किया जाए। वोडाफोन आइडिया ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया है, जिसमें सरकार को कुछ मामलों में टैक्स से राहत दी गई थी। कंपनी का कहना है कि अगर सरकार को राहत दी जा सकती है तो कंपनियों को भी समान राहत मिलनी चाहिए।
वोडाफोन आइडिया ने यह भी दलील दी है कि सरकार और कंपनी दोनों मान चुके हैं कि बकाया रकम की जांच और मिलान अभी तक पूरी तरह से नहीं हुआ है। ऐसे में जब तक सही आंकड़ा तय नहीं हो जाता, तब तक कंपनी पर कोई अतिरिक्त बोझ डालना अनुचित होगा। कंपनी ने कहा है कि जब तक सटीक हिसाब-किताब साफ नहीं होता, तब तक उसे किसी तरह की सख्त कार्रवाई से बचाया जाए।
सरकार का जवाब
सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अब सरकार खुद वोडाफोन आइडिया में हिस्सेदार है। इसलिए यह मामला केवल एक कंपनी का नहीं बल्कि लाखों ग्राहकों और हजारों कर्मचारियों से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कोर्ट से कहा कि इस मामले की सुनवाई जल्द होनी चाहिए ताकि जल्दी समाधान निकाला जा सके और किसी को नुकसान न हो।
सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि इस विवाद के कारण वोडाफोन आइडिया पर भारी आर्थिक दबाव है। कंपनी ने बताया कि उस पर कुल करीब 83,400 करोड़ रुपये का बकाया है और हर साल उसे लगभग 18,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ता है। यह रकम कंपनी के लिए बहुत बड़ी है और इसे चुकाना अब कठिन हो गया है।
बंद होने का खतरा
वोडाफोन आइडिया ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अगर यह मामला जल्द सुलझा नहीं, तो कंपनी के बंद होने का खतरा है। कंपनी ने कहा कि इससे न केवल उसका व्यापार प्रभावित होगा, बल्कि 18,000 से ज्यादा कर्मचारियों की नौकरियां भी जा सकती हैं। इसके साथ ही देशभर के लगभग 19.8 करोड़ मोबाइल यूजर्स की सेवाएं भी बाधित हो सकती हैं।
दूरसंचार विभाग (DoT) ने कोर्ट को बताया कि अभी तक जो बकाया है, उसमें ब्याज और जुर्माना जोड़ने के बाद रकम करीब 6,800 करोड़ रुपये तक बढ़ सकती है। इस वजह से यह मामला और जटिल हो गया है।
अगली सुनवाई की तारीख तय
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद मामले की सुनवाई 13 अक्टूबर तक के लिए टाल दी। कोर्ट ने कहा कि अगली तारीख पर सरकार और कंपनी दोनों को अपने दस्तावेज और आंकड़े साफ-साफ पेश करने होंगे ताकि विवाद का समाधान निकाला जा सके। अब सभी की निगाहें 13 अक्टूबर की सुनवाई पर टिकी हैं क्योंकि यह फैसला वोडाफोन आइडिया के भविष्य के साथ-साथ टेलीकॉम सेक्टर की दिशा भी तय करेगा।