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यमुना जल को घर में रखना वर्जित क्यों? जानिए पवित्र जल का रहस्य

यमुना जल को घर में रखना वर्जित क्यों? जानिए पवित्र जल का रहस्य

हिंदू धर्म में गंगा और यमुना, दोनों नदियों को अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना गया है. गंगाजल को तो घर में रखने, पूजन में इस्तेमाल करने और रोजमर्रा के उपयोग में लाने की परंपरा है, लेकिन यमुना जल के साथ ऐसा नहीं है. लोग यमुना नदी में स्नान तो करते हैं, तर्पण या व्रत में उसका उपयोग भी करते हैं, लेकिन यमुना जल को घर में संग्रह कर रखना वर्जित माना गया है. इस मान्यता के पीछे धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक कारण छिपे हुए हैं, जो आज भी लोकमानस में गहराई से रचे-बसे हैं.

यमुना जल और यमराज का संबंध

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, यमुना देवी सूर्य देव की पुत्री और यमराज की बहन हैं. इसी वजह से यमुनाजी को 'यमदुही' भी कहा जाता है. भाई दूज के दिन यमराज, अपनी बहन यमुना के घर जाते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं कि जो भाई इस दिन यमुना जल से स्नान करेगा, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी.

इससे यह भी संकेत मिलता है कि यमुनाजल का संबंध मृत्यु और यमलोक से है. इसी वजह से इसे घर में रखने से परहेज किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि घर में यमुनाजल रखने से घर का वातावरण स्थिर नहीं रहता और यह जल नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है.

गंगाजल और यमुना जल में अंतर

जहां गंगाजल को अमृत तुल्य माना गया है, वहीं यमुना जल को केवल विशेष अवसरों तक ही सीमित रखने की बात कही गई है. गंगाजल को घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, जबकि यमुना जल को घर में रखने से मानसिक अशांति, दरिद्रता और रोग के योग बन सकते हैं.

शास्त्रों में गंगा को मोक्षदायिनी बताया गया है और यमुना को पापों का नाश करने वाली, लेकिन दोनों की प्रकृति अलग मानी गई है. गंगा जल को जहां दिनचर्या में शामिल किया गया है, वहीं यमुना जल को कर्मकांड और धार्मिक अनुष्ठानों तक ही सीमित रखा गया है.

गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में उल्लेख

गरुड़ पुराण में साफ कहा गया है कि यमुना का जल अत्यंत शक्तिशाली है और इसका उपयोग केवल तीर्थ स्नान या प्रायश्चित्त कर्मों के समय ही किया जाना चाहिए. इसी प्रकार पद्म पुराण में भी यह उल्लेख है कि यमुनाजल को घर में रखने से यमलोक की शक्तियां आकर्षित होती हैं, जिससे घर का वातावरण प्रभावित हो सकता है.

इस जल को केवल तात्कालिक उपयोग के लिए उचित बताया गया है. इसे घर में लंबे समय तक रखना शुभ नहीं माना गया है. प्राचीन ऋषियों और विद्वानों ने भी इसे स्पष्ट किया है कि यमुना जल की ऊर्जा अत्यंत तेज होती है, जो घर की सामान्य ऊर्जा व्यवस्था को बिगाड़ सकती है.

वास्तु शास्त्र में भी यमुना जल वर्जित

वास्तु शास्त्र में यमुना जल को घर में रखने के लिए अनुपयुक्त बताया गया है. वास्तु के अनुसार, यमुना जल कालेपन, अस्थिरता और अप्रत्याशित परिवर्तनों का संकेत देता है. इससे घर में मानसिक तनाव, अस्थिरता और दरिद्रता बढ़ सकती है.

इसके विपरीत गंगाजल को शुद्धि और संतुलन का प्रतीक माना गया है. वास्तु में यह भी कहा गया है कि जिन चीजों का संबंध यम या मृत्यु से होता है, उन्हें घर में स्थायी रूप से रखना उचित नहीं होता. यमुना जल भी इसी श्रेणी में आता है.

लोक परंपराओं और ग्रामीण संस्कृति में मान्यता

ग्रामीण भारत में आज भी यह मान्यता प्रचलित है कि यमुना जल को केवल व्रत, पर्व, श्राद्ध और तीर्थ यात्रा में ही उपयोग करना चाहिए. वहां के लोग यमुना से स्नान कर लौटते हैं, लेकिन जल को घर नहीं लाते. ऐसा माना जाता है कि इससे घर में क्लेश, रोग और आकस्मिक घटनाएं घट सकती हैं.

कुछ स्थानों पर यह भी प्रचलन है कि यमुना जल केवल तब लाया जाता है जब कोई विशेष तर्पण या मृत आत्मा की शांति का अनुष्ठान किया जाता है. इससे साफ है कि लोक परंपरा में भी यमुना जल को सहज उपयोग की वस्तु नहीं माना गया.

यमुना जल की पवित्रता और शक्ति

यमुना जल जितना पवित्र है, उतना ही उसकी ऊर्जा भी तीव्र मानी गई है. यही वजह है कि इसे सिर्फ सीमित समय और विशेष उद्देश्य के लिए प्रयोग करने की बात कही गई है. यह जल पापों का नाश तो करता है, लेकिन इसकी शक्ति को नियंत्रित करना आमजन के बस की बात नहीं मानी गई है.

धार्मिक ग्रंथों में छिपा है रहस्य

शास्त्रों में अनेक बार इस बात की ओर संकेत किया गया है कि यमुना जल का प्रयोग सिर्फ तीर्थ कर्म, स्नान और श्राद्ध के अवसरों पर करना चाहिए. इसकी तुलना गंगा जल से नहीं की जा सकती, क्योंकि दोनों की धार्मिक उपयोगिता भिन्न है.

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