हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह की पूर्णिमा तिथि धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत पावन मानी जाती है, लेकिन आषाढ़ माह की पूर्णिमा, जिसे गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है, इसका महत्व विशेष होता है। यह दिन न केवल ऋषि-मुनियों और अध्यात्म से जुड़े साधकों के लिए बल्कि आम भक्तों के लिए भी जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देने वाला पर्व होता है। यह दिन गुरुओं के सम्मान, तप, ध्यान, दान और साधना के लिए बेहद फलदायी माना जाता है।
आषाढ़ पूर्णिमा कब है?
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ पूर्णिमा 2025 की शुरुआत:
- 9 जुलाई 2025, बुधवार को शाम 6:54 बजे से हो रही है
- इसका समापन 10 जुलाई 2025, गुरुवार को शाम 5:47 बजे होगा।
हिंदू धर्म में ‘उदया तिथि’ को प्रधानता दी जाती है, अतः गुरु पूर्णिमा का पर्व 10 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गुरु पूर्णिमा का उत्सव महर्षि वेदव्यास जी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। वेदव्यास जी को वेदों के विभाजन, 18 पुराणों की रचना और महाभारत के लेखन का श्रेय जाता है। उन्हें ही गुरु परंपरा की शुरुआत करने वाला माना जाता है। इसलिए इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है।
शास्त्रों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान दर्जा दिया गया है –
- 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।'
यह मंत्र गुरु के दिव्य स्वरूप को दर्शाता है और बताता है कि गुरु ही वह शक्ति हैं जो अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती हैं।
क्यों विशेष है आषाढ़ पूर्णिमा?
- वेदव्यास जयंती: इस दिन वेदों के व्यास, महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था।
- गुरु भक्ति का प्रतीक: यह दिन शिष्य को अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण दिखाने का अवसर देता है।
- ध्यान व साधना का अवसर: वर्षाकाल के प्रारंभ में मन की एकाग्रता के लिए यह श्रेष्ठ दिन माना जाता है।
इस दिन करें ये धार्मिक कार्य
1. गुरु पूजन और आशीर्वाद प्राप्ति
इस दिन प्रातः स्नान कर अपने गुरु के चरणों में पुष्प अर्पित करें, उन्हें वस्त्र, फल, दक्षिणा आदि भेंट करें और उनका आशीर्वाद लें। यदि गुरु सजीव न हों, तो उनके चित्र के समक्ष दीप जलाकर श्रद्धांजलि अर्पित करें।
2. पवित्र नदियों में स्नान
गंगा, यमुना, नर्मदा या किसी तीर्थ क्षेत्र की पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। स्नान के पश्चात तिल, अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करें।
3. व्रत का पालन करें
गुरु पूर्णिमा के दिन व्रत रखना शुभ माना गया है। दिनभर व्रत रखकर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और अपने गुरु का ध्यान करें। व्रत से आत्मिक शुद्धि और मन की एकाग्रता प्राप्त होती है।
4. ध्यान, साधना और मंत्र जाप
यह दिन आत्म-साक्षात्कार, ध्यान, साधना और मंत्र जाप के लिए श्रेष्ठ होता है। 'ॐ नमः शिवाय', 'ॐ गुरुवे नमः' या 'गायत्री मंत्र' का जप मन को शांति देता है।
दान की परंपरा
शास्त्रों में कहा गया है –
'दानं तपश्च यज्ञश्च न त्याज्यं कार्यमेव तत्।'
यानि, दान, तप और यज्ञ को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इस दिन निम्न वस्तुओं का दान विशेष फल देता है:
- अन्न, तिल और चावल
- वस्त्र और छाता (वर्षाकाल को देखते हुए)
- धातु के पात्र और दक्षिणा
- धार्मिक पुस्तकों और शिक्षा सामग्री का दान
घर में करें ये विशेष उपाय
- घर के मंदिर में गाय के घी का दीपक जलाएं
- पीले पुष्पों से भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा करें
- ब्रह्मण या गुरूजन को भोजन कराएं
- परिवार के सदस्यों के साथ संध्या के समय कथा या सत्संग का आयोजन करें
आषाढ़ पूर्णिमा 2025, केवल एक पर्व नहीं बल्कि आत्मिक विकास, गुरु भक्ति और आत्मनिरीक्षण का शुभ अवसर है। इस दिन गुरु की पूजा, व्रत, दान और ध्यान से जीवन में शुभता और समृद्धि आती है। यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि जीवन में ज्ञान से बड़ा कोई धन नहीं और गुरु से बड़ा कोई मार्गदर्शक नहीं।