एनएलसी इंडिया लिमिटेड, जो एक सरकारी स्वामित्व वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है, अब देश की लिथियम आपूर्ति को स्थिर और भरोसेमंद बनाने के प्रयास में जुट गई है। सूत्रों के मुताबिक, कंपनी अफ्रीकी देश माली में स्थित एक लिथियम ब्लॉक में साझेदारी के लिए रूस की एक सार्वजनिक कंपनी के साथ उन्नत स्तर की बातचीत कर रही है।
यह बातचीत ऐसे समय में हो रही है जब भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों, बैटरियों और रिन्युएबल एनर्जी स्टोरेज से जुड़ी परियोजनाओं की मांग में तेजी देखी जा रही है। लिथियम, इन सभी तकनीकों के लिए एक प्रमुख और अनिवार्य धातु मानी जाती है।
एनएलसी की वर्तमान भूमिका और विस्तार की दिशा
एनएलसी इंडिया लिमिटेड मुख्य रूप से कोयला और लिग्नाइट खनन तथा बिजली उत्पादन के क्षेत्र में सक्रिय रही है। हालांकि बीते वर्षों में कंपनी ने अक्षय ऊर्जा, विदेशी खनिज संसाधन और घरेलू माइनिंग सेक्टर में भी अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है।
हाल ही में कंपनी ने भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में फॉस्फोराइट और चूना पत्थर के दो रणनीतिक खनिज ब्लॉक हासिल किए हैं। ये ब्लॉक कंपनी को पांचवें चरण की खनिज नीलामी के दौरान प्राप्त हुए। इससे यह साफ है कि कंपनी अब पारंपरिक ऊर्जा के साथ-साथ रणनीतिक धातुओं पर भी अपना फोकस बढ़ा रही है।
माली स्थित लिथियम खदान में मिलेगी हिस्सेदारी
जानकारी के अनुसार, एनएलसी इंडिया की योजना रूस की एक सरकारी कंपनी के साथ मिलकर माली स्थित लिथियम खदान में भागीदारी करने की है। यह साझेदारी भारत के लिए बेहद रणनीतिक मानी जा रही है क्योंकि इससे देश को एक स्थिर स्रोत से लिथियम की सप्लाई मिल सकती है।
माली पश्चिम अफ्रीका का एक देश है, जहां कई खनिज संसाधनों की भरमार है। हाल के वर्षों में माली में लिथियम की खोज और दोहन पर कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने ध्यान केंद्रित किया है।
एनएलसी का यह कदम भारत की खनिज कूटनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके तहत सरकार और सार्वजनिक कंपनियां विदेशों में खनिज स्रोतों की तलाश कर रही हैं।
लिथियम की वैश्विक मांग और भारत की स्थिति
दुनिया भर में लिथियम की मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर ईवी यानी इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और एनर्जी स्टोरेज सिस्टम्स के कारण। लिथियम-आयन बैटरियों के बिना इन क्षेत्रों में विकास संभव नहीं है।
भारत भी धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर बढ़ रहा है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की योजनाओं के चलते ईवी सेगमेंट में उत्पादन और बिक्री में इजाफा देखा गया है। मगर देश में लिथियम संसाधनों की कमी को देखते हुए भारत को बाहर से इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करनी पड़ती है।
भारत ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर में लिथियम के भंडार की खोज जरूर की है, लेकिन वहां से वाणिज्यिक उत्पादन में अभी समय लगेगा। ऐसे में विदेशों से लिथियम सप्लाई पर फोकस करना फिलहाल एक जरूरी रणनीति बन गया है।
वित्तीय रूप से भी मजबूत हो रही है एनएलसी इंडिया
एनएलसी इंडिया का हालिया तिमाही प्रदर्शन भी काफी मजबूत रहा है। मार्च 2025 में समाप्त तिमाही के आंकड़ों के अनुसार, कंपनी का समेकित मुनाफा ₹468.46 करोड़ रहा, जो पिछले साल की तुलना में चार गुना से ज्यादा की बढ़त को दर्शाता है।
वित्त वर्ष 2024-25 की शुरुआत कंपनी के लिए सकारात्मक रही है और यही वजह है कि अब वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने ऑपरेशन को बढ़ाने की स्थिति में है। माली जैसी खदान में निवेश करने के लिए जिस वित्तीय ताकत की जरूरत होती है, वह अब एनएलसी के पास दिखाई दे रही है।
स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य की दिशा में अहम कदम
भारत का लक्ष्य है कि वह आने वाले वर्षों में अपनी ऊर्जा जरूरतों का बड़ा हिस्सा स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करे। इसके लिए जरूरी है कि सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों को स्टोर करने के लिए बड़ी मात्रा में बैटरियों की आवश्यकता हो, जिनमें लिथियम एक मुख्य तत्व है।
एनएलसी इंडिया का यह कदम सरकार की उस नीति के अनुरूप है जिसके तहत देश को रणनीतिक धातुओं के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जा रही है।
स्वदेशी लिथियम संसाधनों के विकास में समय लग सकता है, इसलिए विदेशों में मौजूद संसाधनों पर फोकस करके एनएलसी इंडिया और अन्य कंपनियां आपूर्ति शृंखला को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही हैं।
आगे बढ़ते कदमों पर रहेगी नजर
अभी यह बातचीत अंतिम चरण में बताई जा रही है। अगर यह डील फाइनल होती है, तो एनएलसी इंडिया को माली की लिथियम खदान में न केवल हिस्सेदारी मिलेगी, बल्कि वहां से सीधे भारत में लिथियम की सप्लाई भी शुरू हो सकती है।
इस तरह की रणनीतिक साझेदारियां भविष्य में भारत की खनिज सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा नीतियों को मजबूती प्रदान करेंगी। आने वाले महीनों में इस डील से जुड़े औपचारिक ऐलान और साझेदारी के मॉडल पर उद्योग जगत की नजर बनी रहेगी।