यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से सस्ता कच्चा तेल आयात कर अरबों डॉलर की बचत की है। लेकिन अब अमेरिका को यह रणनीति रास नहीं आ रही है। अमेरिका, यूक्रेन युद्ध का हवाला देते हुए चाहता है कि भारत रूस से तेल खरीद बंद करे।
अमेरिका एक नया बिल लाने की तैयारी में है जिसके ज़रिए वह रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर भारी टैरिफ लगा सकता है। इस प्रस्तावित कानून का सबसे बड़ा असर भारत और चीन पर पड़ सकता है। बिल के तहत अमेरिका रूस से व्यापार करने वाले देशों पर 500 फीसदी तक का आयात शुल्क लगाने का अधिकार हासिल करना चाहता है।
भारत बना है रूस का प्रमुख तेल खरीदार
भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस से भारी मात्रा में सस्ता कच्चा तेल आयात किया है। 24 फरवरी 2022 से लेकर 2 मार्च 2025 तक भारत ने करीब 112.5 अरब यूरो मूल्य का तेल रूस से खरीदा। इससे भारत को करीब 25 अरब डॉलर की बचत हुई।
रूस से तेल आयात की हिस्सेदारी जो युद्ध से पहले 1 फीसदी से भी कम थी, वह अब बढ़कर 35 से 45 फीसदी के बीच पहुंच चुकी है। यह डेटा सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की रिपोर्ट में सामने आया है।
सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने इसकी पुष्टि की
इस बिल को रिपब्लिकन पार्टी के प्रभावशाली सीनेटर लिंडसे ग्राहम और डेमोक्रेटिक सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल ने मिलकर तैयार किया है। ग्राहम ने एबीसी न्यूज को दिए इंटरव्यू में बताया कि भारत और चीन रूस से कच्चा तेल खरीदकर पुतिन की युद्ध अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं। उनका कहना था कि जो देश रूस से खरीदारी कर रहे हैं और यूक्रेन की मदद नहीं कर रहे, उन पर 500 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा।
डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन
इस बिल को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भी समर्थन हासिल है। ग्राहम ने बताया कि जब वह ट्रंप के साथ गोल्फ खेल रहे थे, तब ट्रंप ने इस बिल को आगे बढ़ाने की सहमति दी। इससे पहले मार्च 2025 में इस बिल को पेश किया गया था, लेकिन व्हाइट हाउस के विरोध के कारण मामला ठंडे बस्ते में चला गया था।
अगस्त में सीनेट में पेश होने की संभावना
जानकारी के अनुसार यह विधेयक अगस्त महीने में अमेरिकी सीनेट में पेश किया जा सकता है। इसे अमेरिकी संसद के कुल 84 सीनेटरों का समर्थन प्राप्त है, जिससे इसके पास होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
भारत को हो सकता है बड़ा नुकसान
अगर यह बिल पास होता है तो भारत के लिए बड़ा आर्थिक झटका हो सकता है। अमेरिका भारत के लिए एक प्रमुख निर्यात बाजार है। फार्मा, टेक्सटाइल और ऑटोमोबाइल सेक्टर से जुड़ी भारतीय कंपनियों के लिए यह टैरिफ काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है।
500 फीसदी टैरिफ लागू होने पर भारतीय सामान की कीमत अमेरिकी बाजार में बहुत अधिक हो जाएगी, जिससे भारतीय उत्पाद प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं।
तेल से मिली भारत को राहत
रूस से सस्ते तेल की वजह से भारत को न सिर्फ ऊर्जा सुरक्षा मिली, बल्कि आयात खर्च भी कम हुआ। भारत ने इस तेल का उपयोग रिफाइन करके अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात बढ़ाया, जिससे डॉलर की आमद हुई।
यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व संकट के दौर में भारत ने घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल की कीमतों को स्थिर बनाए रखा, जिसका श्रेय सस्ते रूसी तेल को जाता है।
अमेरिका को पसंद नहीं आ रही भारत की रणनीति
भारत का रूस से तेल खरीदना अमेरिका को खटक रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से तेल न खरीदे और यूक्रेन के पक्ष में खड़ा हो। इसीलिए अब टैरिफ का हथियार उठाया जा रहा है।
इस कदम से साफ है कि अमेरिका रूस पर आर्थिक दबाव बनाना चाहता है और उसके साथ व्यापार करने वाले देशों पर सख्ती दिखाने की तैयारी कर रहा है।
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर भी असर
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता लगभग अंतिम चरण में है। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने हाल ही में कहा कि ट्रेड डील "बहुत करीब" है। वहीं भारतीय प्रतिनिधिमंडल वॉशिंगटन में लगातार अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात कर रहा है।
लेकिन कृषि उत्पादों को लेकर दोनों पक्षों के बीच मतभेद अब भी बने हुए हैं। ऐसे में रूस से तेल खरीदने पर टैरिफ का खतरा व्यापार समझौते की राह में और मुश्किलें पैदा कर सकता है।
ट्रंप की भूमिका फिर बनी निर्णायक
इस पूरे घटनाक्रम में डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका भी दिलचस्प रही है। पहले उन्होंने बिल के कड़े शब्दों को बदलने के लिए दवाब बनाया था, लेकिन अब उन्होंने इसे हरी झंडी दे दी है।
ग्राहम ने बताया कि ट्रंप अब मानते हैं कि इस बिल के ज़रिए रूस पर दबाव बनाया जा सकता है और अमेरिका को वैश्विक स्तर पर मजबूत स्थिति में लाया जा सकता है।
यूरोपीय देशों को अलग रखने की कोशिश
ग्राहम ने यह भी कहा कि उन्होंने अमेरिका के यूरोपीय सहयोगियों की चिंताओं को दूर करने के लिए यूक्रेन की मदद करने वाले देशों को इस बिल के प्रभाव से बाहर रखने का प्रस्ताव रखा है। यानी यूरोप पर यह टैरिफ लागू नहीं होगा, लेकिन भारत और चीन जैसे देशों को इसका सामना करना पड़ सकता है।