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बिहार चुनाव में बसपा का बड़ा दांव, आकाश आनंद की यात्रा से दलित वोटों पर फोकस

बिहार चुनाव में बसपा का बड़ा दांव, आकाश आनंद की यात्रा से दलित वोटों पर फोकस

बसपा नेता आकाश आनंद ने बिहार में ‘सर्वजन हिताय यात्रा’ शुरू कर दलित वोटबैंक साधने की कोशिश की। चुनावी रण में बसपा अकेले उतरी है। सवाल है कि क्या बसपा इस बार सियासी जमीन बचा पाएगी।

Bihar Election 2025: उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने बिहार की सियासत में पूरी तरह एंट्री ले ली है। उन्होंने कैमूर जिले से बसपा की ‘सर्वजन हिताय जागरूक यात्रा’ की शुरुआत की है। यह यात्रा 11 दिनों तक चलेगी और 13 जिलों से होकर गुजरेगी। चुनावी ऐलान से पहले की गई यह यात्रा बसपा के लिए बेहद अहम मानी जा रही है। सवाल यही है कि क्या आकाश आनंद इस यात्रा से बसपा का कमजोर पड़ा सियासी आधार बचा पाएंगे।

मायावती का बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला

बसपा प्रमुख मायावती ने इस बार बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया है। पार्टी सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। मायावती ने चुनाव की जिम्मेदारी राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर रामजी गौतम और केंद्रीय प्रदेश प्रभारी अनिल कुमार को दी है। आकाश आनंद की इस यात्रा को बसपा की चुनावी रणनीति का पहला बड़ा कदम माना जा रहा है।

बिहार के 13 जिलों में निकलेगी बसपा की यात्रा

‘सर्वजन हिताय यात्रा’ कैमूर से शुरू होकर बक्सर, रोहतास, अरवल, जहानाबाद, छपरा, सीवान, गोपालगंज, बेतिया, मोतिहारी और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों से होकर गुजरेगी और वैशाली में खत्म होगी। यह सभी इलाके दलित बहुल माने जाते हैं और यूपी की सीमा से सटे हुए हैं। बसपा ने हमेशा इन्हीं इलाकों से अपनी चुनावी मौजूदगी दर्ज कराई है। पार्टी का मकसद दलित समुदाय को एकजुट करना और डॉ. भीमराव आंबेडकर की सोच को लोगों तक पहुंचाना है।

बिहार में बसपा की फसल क्यों काट ले जाती है सरकार

बसपा भले ही बिहार में यूपी जैसी पकड़ नहीं बना सकी हो, लेकिन उसका खाता लगातार खुलता रहा है। यहां बसपा की सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि जब-जब उसने विधायक बनाए, वे दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए। 1995 में बसपा के दो विधायक बने, लेकिन दोनों लालू यादव की आरजेडी में शामिल हो गए। 2000 में पांच विधायक चुने गए, लेकिन सभी बाद में बसपा छोड़कर अलग-अलग दलों में चले गए।

फरवरी 2005 और अक्टूबर 2005 के चुनावों में भी यही हुआ। 2010 और 2015 में बसपा का खाता तक नहीं खुला और वोट प्रतिशत घटकर 2 फीसदी तक रह गया। 2020 में बसपा ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ा। सिर्फ चैनपुर से जमा खान जीत पाए, लेकिन बाद में वे जेडीयू में शामिल हो गए और नीतीश सरकार में मंत्री बन गए। यानी हर बार बसपा जमीन तैयार करती है और अंत में फायदा दूसरी पार्टियां उठा ले जाती हैं।

आकाश आनंद की चुनौतियां

आकाश आनंद बसपा की ‘मिशन बिहार’ योजना को लेकर सामने आए हैं। यह उनका दूसरा बिहार दौरा है। इससे पहले वे पटना में छत्रपति शाहूजी महाराज की जयंती पर पहुंचे थे। लेकिन उनके सामने चुनौती बहुत बड़ी है। बिहार की सियासी लड़ाई इस समय एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सिमटती दिख रही है। ऐसे में बसपा का अकेले मैदान में उतरना आसान नहीं होगा।

बिहार में दलित राजनीति की तस्वीर

बिहार में दलित समुदाय की आबादी करीब 18 फीसदी है। 2005 में नीतीश कुमार सरकार ने 22 दलित जातियों को महादलित घोषित किया था। 2018 में पासवान समाज भी महादलित वर्ग में शामिल हो गया। अब प्रदेश में सबसे ज्यादा जनसंख्या मुसहर, रविदास और पासवान समाज की है। मुसहर करीब 5.5 फीसदी, रविदास 4 फीसदी और पासवान करीब 3.5 फीसदी हैं।

बसपा का आधार अब तक मुख्य रूप से रविदास समाज में रहा है। लेकिन कांग्रेस ने इसी समुदाय को साधने के लिए अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। राहुल गांधी भी लगातार दलित समाज को साधने में जुटे हुए हैं। ऐसे में बसपा के सामने चुनौती और कठिन हो गई है।

यूपी में आंदोलन, बिहार में खामोशी

उत्तर प्रदेश में कांशीराम ने दलित राजनीति के लिए मजबूत आंदोलन खड़ा किया था। मायावती ने उसे आगे बढ़ाया और बसपा को सत्ता तक पहुंचाया। लेकिन बिहार में ऐसा कोई आंदोलन खड़ा नहीं हो सका। बसपा चुनाव लड़ती रही, लेकिन संगठन खड़ा नहीं कर सकी। न ही कोई ऐसा नेता सामने आया, जिसने दलित समुदाय को पार्टी के साथ मजबूती से जोड़े रखा हो। इसी वजह से बसपा बिहार में कभी स्थायी आधार नहीं बना पाई।

बिहार की दलित सियासत और बसपा की मुश्किलें

बिहार में दलित समुदाय का वोट हर बार अलग-अलग पार्टियों में बंटता रहा है। कांग्रेस के बाबू जगजीवन राम और उनकी बेटी मीरा कुमार इस वोटबैंक के बड़े चेहरे रहे। लेकिन बाद में रामविलास पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेता अपनी-अपनी जातियों तक सीमित रह गए। यही वजह है कि दलित समुदाय ने कभी बसपा को स्थायी विकल्प नहीं माना।

इस बार सभी दलों की नजर दलित वोटों पर

बिहार चुनाव में इस बार दलित वोट सबसे अहम माने जा रहे हैं। बीजेपी चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के जरिए दलित समाज को साधने में जुटी है। नीतीश कुमार भी अलग-अलग दलित जातियों पर ध्यान दे रहे हैं। आरजेडी और कांग्रेस भी रणनीति बना रही हैं। ऐसे में आकाश आनंद के सामने दलित वोटबैंक को अपने पक्ष में लाने की सबसे बड़ी चुनौती है।

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