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Bihar Election 2025: पश्चिम चंपारण में चुनावी सरगर्मी! राजद और कांग्रेस ने जिले की 9 सीटों पर बढ़ाई गतिविधियां

Bihar Election 2025: पश्चिम चंपारण में चुनावी सरगर्मी! राजद और कांग्रेस ने जिले की 9 सीटों पर बढ़ाई गतिविधियां

पश्चिम चंपारण में बिहार चुनाव 2025 की तैयारियां तेज हैं। राजद के 57 और कांग्रेस के 95 दावेदार मैदान में हैं। नौटन और लौरिया जैसी सीटों पर जातीय समीकरण निर्णायक हैं। उम्मीदवारों की सक्रियता से चुनावी सरगर्मी बढ़ गई है।

Bihar Election 2025: पश्चिम चंपारण में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं। जिले की नौ विधानसभा सीटों पर पार्टियों ने अपने दावेदारों की सूची तैयार करना शुरू कर दिया है। इस बार राजद पूरे जिले में चुनाव मैदान में उतरेगी। वहीं कांग्रेस भी अपनी ताकत दिखाने के लिए तैयारी कर रही है। स्थानीय स्तर पर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है।

राजद ने सभी नौ सीटों पर दावेदारी की शुरू 

पश्चिम चंपारण में राजद ने पिछली बार केवल एक सीट से चुनाव लड़ा था। लेकिन इस बार पार्टी ने रणनीति बदलते हुए सभी नौ सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। अब तक 57 उम्मीदवारों ने पार्टी हाईकमान में अपने बायोडाटा जमा किए हैं।

नौटन से सबसे ज्यादा 11 दावेदार हैं। लौरिया से नौ उम्मीदवारों ने दावेदारी की है। वाल्मीकिनगर और नरकटियागंज से सात-एक उम्मीदवार खड़े हैं। चनपटिया, बगहा और बेतिया से पांच-पांच, रामनगर और सिकटा से चार-चार उम्मीदवारों ने आवेदन किया है। सिकटा सीट पर भाकपा माले का प्रभाव रहा है और राजद इसे चुनौती देने की कोशिश में है।

राजद सूत्रों के अनुसार, पार्टी की नजर जिले की प्रमुख पांच सीटों लौरिया, नरकटियागंज, रामनगर, वाल्मीकिनगर और नौतन पर विशेष रूप से है। राजद इन सीटों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है और इन पर पूरी ताकत लगाएगी।

कांग्रेस में भी दावेदारों की संख्या ज्यादा

इसी तरह कांग्रेस ने भी पश्चिम चंपारण में अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। अब तक 95 दावेदारों ने पार्टी हाईकमान में अपनी उम्मीदवारी जताई है। कांग्रेस के सबसे ज्यादा 18 दावेदार नौतन सीट से हैं। नरकटियागंज में 17, चनपटिया में 14, बगहा में 12 और रामनगर में 10 उम्मीदवारों ने आवेदन किया है।

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सात सीटों पर चुनाव लड़ी थी और दूसरे नंबर पर रही थी। इस बार पार्टी की कोशिश है कि वह अधिक से अधिक सीटों पर अपना प्रभाव बढ़ाए। जिलाध्यक्ष प्रमोद सिंह पटेल के अनुसार, प्रत्याशी का अंतिम चुनाव प्रदेश संगठन के माध्यम से किया जाएगा।

भाजपा और जदयू की स्थिति

वहीं भाजपा और जदयू में भी हर सीट पर उम्मीदवारों की दावेदारी तेज है। भाजपा के लगभग दो-तीन लोग हर विधानसभा क्षेत्र में टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। जिले की नौ सीटों पर लगभग तीन दर्जन उम्मीदवारों ने आवेदन किया है। जदयू में भी स्थिति लगभग यही है, हर सीट पर तीन-चार दावेदार हैं।

2020 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम चंपारण की आठ सीटों पर एनडीए ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था। भाजपा ने सात और जदयू ने एक सीट जीती थी। भाकपा माले ने एक सीट पर कब्जा जमाया था। इस बार स्थिति बदलने की कोशिश सभी पार्टियां कर रही हैं।

जातीय समीकरण का असर

पश्चिम चंपारण की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। नौतन और लौरिया जैसी सीटों पर यादव, कुशवाहा और मुस्लिम वोटरों का बड़ा प्रभाव है। राजद इस आधार पर इन सीटों पर अपनी रणनीति बनाने की कोशिश कर रही है।

वाल्मीकिनगर में कुशवाहा और महतो समुदाय, नरकटियागंज में अंसारी और अति पिछड़ा वर्ग तथा रामनगर में अनुसूचित जाति के मतदाताओं का गणित टिकट बंटवारे और चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है। पार्टियां इन जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों का चयन कर रही हैं।

स्थानीय स्तर पर चुनावी सरगर्मी

राजद और कांग्रेस के दावेदारों की लंबी सूची ने स्थानीय स्तर पर चुनावी गतिविधियों को तेज कर दिया है। उम्मीदवारों और उनके समर्थकों ने गांव-गांव में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। नेता अपने क्षेत्र में जनता से मिलकर समर्थन जुटा रहे हैं।

राजद कार्यकर्ताओं को यह संदेश दिया गया है कि इस बार पार्टी जिले की खोई हुई जमीन वापस पाने की पूरी कोशिश करेगी। कांग्रेस में भी दावेदार सक्रिय हो गए हैं और अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए स्थानीय नेताओं और मतदाताओं से संपर्क कर रहे हैं।

सीट बंटवारे और हाई कमान की भूमिका

राजद जिलाध्यक्ष साहेब हुसैन अंसारी का कहना है कि सीट बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन पर किसी भी तरह की चर्चा अभी जल्दबाजी होगी। यह निर्णय पार्टी हाई कमान के मार्गदर्शन में लिया जाएगा।

कांग्रेस जिलाध्यक्ष प्रमोद सिंह पटेल ने भी स्पष्ट किया कि उम्मीदवार का चयन प्रदेश संगठन और पार्टी हाई कमान के निर्देशों के अनुसार किया जाएगा। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि चुनाव में दावेदारों की संख्या और उनके जातीय समीकरण से पार्टी की जीत की संभावना अधिक बनी रहे।

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