बिहार में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर विवाद के बीच चुनाव आयोग ने अनुच्छेद 326 का हवाला देकर वयस्क मताधिकार की अहमियत बताई। आयोग ने 2003 की सूची को आधार बनाकर पारदर्शी प्रक्रिया का भरोसा दिलाया है।
Bihar: बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है, लेकिन मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर राजनीतिक बवाल तेज़ हो गया है। विपक्ष जहां इस प्रक्रिया को लेकर सरकार पर जनसंख्या आधारित भेदभाव का आरोप लगा रहा है, वहीं चुनाव आयोग ने इस विवाद के बीच संविधान के अनुच्छेद 326 को सोशल मीडिया पर साझा कर सबको याद दिलाया है कि भारत में मतदान का अधिकार वयस्क मताधिकार के आधार पर है—न कि धर्म, जाति या जन्मस्थान के आधार पर।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने साफ किया है कि यह पुनरीक्षण प्रक्रिया सभी योग्य नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करने के लिए है, ना कि किसी को बाहर करने के लिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 2003 की मतदाता सूची आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक की जाएगी, जिससे पुराने रिकॉर्ड तक पहुंचना आसान होगा।
बिहार में बढ़ता राजनीतिक तापमान
राज्य में विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में संभावित हैं और इसी बीच चुनाव आयोग द्वारा वोटर लिस्ट की पुनः समीक्षा की घोषणा विपक्ष के निशाने पर आ गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे 'जनगणना के नाम पर जनता को बांटने की साजिश' करार दिया है। विपक्षी दलों ने इसे लेकर बिहार बंद भी बुलाया, जिसमें कई जिलों में विरोध प्रदर्शन और रैलियां देखी गईं।
चुनाव आयोग की सफाई
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा, 'हमारा उद्देश्य किसी को बाहर करना नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति को शामिल करना है जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक है।' उन्होंने यह भी जोड़ा कि 2003 की वोटर लिस्ट एक भरोसेमंद आधार मानी जाएगी। जिन लोगों के नाम उस सूची में हैं या जिनके माता-पिता के नाम उसमें दर्ज हैं, वे प्राथमिक तौर पर योग्य मतदाता माने जाएंगे।
क्या है अनुच्छेद 326?
चुनाव आयोग द्वारा साझा किए गए पोस्ट में अनुच्छेद 326 की पूरी व्याख्या दी गई है। इस अनुच्छेद के अनुसार: 'लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे। यानी ऐसा हर नागरिक, जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है और जो अन्यथा अपात्र नहीं है (जैसे पागलपन, आपराधिक रिकॉर्ड या भ्रष्ट आचरण के कारण), उसे वोट देने का अधिकार प्राप्त है।' यह अनुच्छेद भारतीय लोकतंत्र की आत्मा है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि धर्म, जाति, लिंग, भाषा, क्षेत्र जैसे आधारों पर किसी से मताधिकार नहीं छीना जा सकता।
क्यों खास है 2003 की सूची?
चुनाव आयोग ने बताया कि 2003 की मतदाता सूची को डिजिटली स्कैन कर वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। इस सूची में करीब 4.96 करोड़ लोगों के नाम शामिल हैं। आयोग का कहना है कि यह सूची उन लोगों के लिए भी प्रमाण का कार्य करेगी जिनके माता-पिता का नाम इसमें दर्ज है। ऐसे लोगों को सिर्फ अपना जन्म स्थान और तिथि प्रमाणित करने वाले दस्तावेज जमा करने होंगे। इससे यह प्रक्रिया पारदर्शी और सरल बनेगी।
विपक्ष के आरोप और आशंका
विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के माध्यम से सरकार खास समुदायों के लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने की योजना बना रही है। तेजस्वी यादव ने कहा, 'चुनाव आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है। यह मतदाता सूची पुनरीक्षण नहीं, बल्कि चुनिंदा वर्गों को वोट देने से वंचित करने का षड्यंत्र है।' वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह सवाल उठाया कि 2003 को ही आधार वर्ष क्यों चुना गया? उन्होंने कहा कि यह वर्ष बीजेपी के सत्ता में आने के बाद का है और इसका चयन पूर्व-निश्चित राजनीतिक मंशा को दर्शाता है।
चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर ज़ोर
चुनाव आयोग ने विपक्ष के आरोपों को नकारते हुए कहा है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और जनता की भागीदारी के साथ होगी। मतदाता सूची को अपडेट करने की यह प्रक्रिया कोई नई बात नहीं है। हर चुनाव से पहले मतदाता सूची का संशोधन और पुनरीक्षण एक नियमित अभ्यास होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी नागरिक से नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं मांगा जाएगा, सिर्फ जन्म तिथि और माता-पिता की पहचान संबंधी दस्तावेज पर्याप्त होंगे।