ब्लैक बॉक्स, जिसे तकनीकी रूप से फ्लाइट रिकॉर्डर कहा जाता है, विमान की सुरक्षा और दुर्घटनाओं की जांच में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Black Box: अहमदाबाद में हुए हालिया एयर इंडिया विमान हादसे के बाद एक बार फिर चर्चा में आया है 'ब्लैक बॉक्स'। हालांकि नाम 'ब्लैक' है, लेकिन वास्तव में इसका रंग चमकदार नारंगी होता है ताकि यह मलबे में आसानी से दिखाई दे सके। यह उपकरण विमान में होने वाली हर गतिविधि को रिकॉर्ड करता है और विमान हादसों के कारणों की तह तक पहुंचने में मदद करता है। आइए विस्तार से समझते हैं कि ब्लैक बॉक्स क्या होता है, यह कैसे काम करता है और क्यों यह विमानन सुरक्षा के लिए इतना अहम है।
क्या होता है ब्लैक बॉक्स?

ब्लैक बॉक्स दरअसल एक फ्लाइट रिकॉर्डर होता है, जिसमें दो मुख्य हिस्से होते हैं:कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR) यह पायलट और को-पायलट की बातचीत, रेडियो संचार और कॉकपिट के भीतर की ध्वनियों को रिकॉर्ड करता है।
फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) यह विमान की ऊंचाई, गति, दिशा, इंजन की स्थिति, ऑटो-पायलट की जानकारी सहित सैकड़ों तकनीकी पैरामीटर रिकॉर्ड करता है।
इन दोनों उपकरणों को अत्यधिक तापमान, दबाव, आग और पानी में डूबने के बावजूद सुरक्षित रहने के लिए डिजाइन किया जाता है। यह आमतौर पर विमान की पूंछ के हिस्से में लगाया जाता है, क्योंकि हादसे की स्थिति में यह हिस्सा अपेक्षाकृत कम क्षतिग्रस्त होता है।
ब्लैक बॉक्स का इतिहास
ब्लैक बॉक्स की अवधारणा सबसे पहले 1930 के दशक में फ्रांसीसी इंजीनियर फ्रांकोइस हुसेनोट ने विकसित की थी। उन्होंने एक ऐसा उपकरण तैयार किया जो उड़ान के दौरान विभिन्न डेटा को एक फिल्म पर रिकॉर्ड करता था। इसे 'ब्लैक बॉक्स' नाम इसलिए मिला क्योंकि यह एक लाइट-टाइट बॉक्स में रखा जाता था, जो काले रंग का प्रतीत होता था।
1958 के बाद, सिविल एरोनॉटिक्स बोर्ड ने यह अनिवार्य कर दिया कि हर व्यावसायिक विमान में ब्लैक बॉक्स लगाया जाए। इसके बाद से यह तकनीक लगातार विकसित होती रही और आज के आधुनिक ब्लैक बॉक्स कई घंटे की आवाज और डेटा को रिकॉर्ड करने में सक्षम हैं।
ब्लैक बॉक्स का रंग नारंगी क्यों होता है?
भले ही इसका नाम ब्लैक बॉक्स हो, लेकिन यह हमेशा चमकदार नारंगी रंग में होता है ताकि दुर्घटना स्थल पर मलबे में इसे आसानी से पहचाना जा सके। इसकी सतह पर रिफ्लेक्टिव टेप भी लगाया जाता है। इसके निर्माण में बेहद मजबूत धातु का इस्तेमाल होता है, और यह अत्यधिक तापमान (1100 डिग्री सेल्सियस तक) सह सकता है।
कैसे काम करता है ब्लैक बॉक्स?

ब्लैक बॉक्स विमान के उड़ान शुरू करने के साथ ही डेटा रिकॉर्ड करना शुरू कर देता है। यह हर सेकंड दर्जनों पैरामीटर रिकॉर्ड करता है, जैसे:
- इंजन की शक्ति
- विमान की गति और ऊंचाई
- गियर और फ्लैप की स्थिति
- पायलट द्वारा दिए गए कमांड
- ऑटो-पायलट की गतिविधियां
CVR हिस्से में पिछले दो घंटे की बातचीत रिकॉर्ड रहती है, जबकि FDR में पिछले 25 घंटे की तकनीकी जानकारी होती है। दुर्घटना के बाद इन्हीं सूचनाओं के आधार पर जांचकर्ता घटना के क्रम को समझते हैं।
ब्लैक बॉक्स की खोज कैसे होती है?
जब विमान समुद्र में दुर्घटनाग्रस्त होता है, तब ब्लैक बॉक्स से अल्ट्रासोनिक बीकन (pinger) सिग्नल निकलते हैं, जिन्हें विशेष उपकरणों की मदद से ढूंढा जाता है। यह बीकन 90 दिनों तक सक्रिय रहता है और हर एक सेकंड में 37.5 kHz की आवृत्ति पर सिग्नल भेजता है।
ब्लैक बॉक्स क्यों है जरूरी?
ब्लैक बॉक्स किसी भी विमान हादसे के बाद उसके कारणों को जानने का सबसे अहम जरिया होता है। इससे यह पता चलता है कि हादसे के समय विमान के सिस्टम और पायलट की गतिविधियां कैसी थीं। इसके जरिए संभावित तकनीकी खामियों या मानवीय त्रुटियों को चिन्हित किया जा सकता है, जिससे भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकें।
क्या ब्लैक बॉक्स अटूट होता है?
ब्लैक बॉक्स को बहुत ही कठोर मानकों पर टेस्ट किया जाता है। इसे ग्रेनाइट दीवार पर 3400 G फोर्स से टकराने, 1100°C तापमान पर आग में रखने, 6,000 मीटर समुद्र की गहराई में दबाव सहने और केरोसीन में 60 घंटे तक डूबे रहने जैसे कई कठोर टेस्ट पास करने होते हैं। फिर भी, कुछ दुर्लभ मामलों में यह भी क्षतिग्रस्त हो सकता है।
भविष्य में ब्लैक बॉक्स का क्या रूप होगा?
टेक्नोलॉजी के विकास के साथ अब वर्चुअल ब्लैक बॉक्स की भी चर्चा है, जिसमें विमान के डेटा को रीयल-टाइम में क्लाउड पर स्टोर किया जा सकता है। इससे दुर्घटना के बाद डेटा की उपलब्धता और तेज हो सकेगी और ब्लैक बॉक्स की निर्भरता घटेगी। हालांकि इसकी लागत और साइबर सुरक्षा की चुनौतियां अभी भी विचाराधीन हैं।












