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बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा आदेश, अवैध घर खरीदारों का महाराष्ट्र सरकार नहीं करेगी पुनर्वास

बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा आदेश, अवैध घर खरीदारों का महाराष्ट्र सरकार नहीं करेगी पुनर्वास

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अवैध बिल्डिंगों के खरीदारों के पुनर्वास के मामले में स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र सरकार उन्हें बसाने की जिम्मेदार नहीं है। अदालत ने डिवेलपर पर सख्त रुख अपनाने और नियमों का पालन न करने पर कार्रवाई के आदेश दिए हैं।

मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने अवैध इमारतों और उनके खरीदारों के मामले में अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अवैध बिल्डिंगों को गिराया जा सकता है, लेकिन ऐसे घर खरीदारों का पुनर्वास महाराष्ट्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सरकार पर वित्तीय भार डालना न्यायसंगत नहीं होगा। यह फैसला राज्य में बढ़ती अवैध निर्माण गतिविधियों और सरकारी खजाने पर संभावित दबाव को देखते हुए आया है।

नालासोपारा की 41 अवैध बिल्डिंगों का मामला

बॉम्बे हाई कोर्ट ने नालासोपारा में स्थित 41 अवैध बिल्डिंगों के घर खरीदारों द्वारा की गई पुनर्वास की मांग को खारिज कर दिया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि सिर्फ इसलिए कि लोगों ने इन इमारतों में निवेश किया है, सरकार को उनका पुनर्वास करना आवश्यक नहीं है।

साथ ही अदालत ने वसई विरार महानगर पालिका (VVMC) को निर्देश दिया कि अवैध बिल्डिंगों को गिराने के बाद खाली हुई जगह पर डिवेलपर को किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य करने की अनुमति नहीं दी जाए। अदालत का रुख यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य में इस तरह के निर्माण से उत्पन्न होने वाले विवाद और वित्तीय बोझ को रोका जा सके।

डिवेलपर के खिलाफ सख्त रुख अपनाया

कोर्ट ने कहा कि डिवेलपर और मकान मालिक किसी अन्य बिल्डर के साथ मिलकर कोई व्यवसायिक लेन-देन न करें, ताकि ऐसे अवैध निर्माण फिर से न हो सकें। इससे यह स्पष्ट संदेश गया कि निजी बिल्डरों और उनके सहयोगियों की जिम्मेदारी कानून के तहत तय होगी।

सरकारी वकील ने कोर्ट में कहा कि इन अवैध बिल्डिंगों में घरों का सौदा करने वाले लोग और निजी व्यक्तियों ने बिना अनुमति बिल्डर के साथ मिलकर काम किया, इसलिए उनका पुनर्वास सरकारी खजाने से नहीं कराया जाएगा। कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करते हुए घर खरीदारों की “चतुराई” पर नाराजगी जताई।

घर खरीदारों के पुनर्वास पर डिवेलपर जिम्मेदार

याचिकाकर्ताओं ने जय अंबे वेलफेयर सोसायटी के जरिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। बेंच ने डिवेलपर को प्रतिवादी के तौर पर याचिका में शामिल करने का निर्देश दिया। इससे यह सुनिश्चित होगा कि घर खरीदारों का पुनर्वास निजी बिल्डर के खर्च पर किया जाए, न कि सरकारी खजाने पर।

कोर्ट ने यह भी कहा कि डिवेलपर के खिलाफ मुकदमा करने की छूट दी जाएगी, ताकि प्रभावित घर खरीदार पुनर्वास के लिए वैधानिक रास्ता अपना सकें।

अवैध निर्माण पर सरकारी अनुमति जरूरी

जस्टिस रविन्द्र घुघे और जस्टिस अश्विन भोभे की बेंच ने इस मामले को अनोखा बताया। उन्होंने कहा कि कई ऊंची इमारतें VVMC की अनुमति के बिना खड़ी की गई थीं, जिन्हें अदालत के आदेश पर गिराया गया।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अवैध बिल्डिंगों के मामले में केवल सरकारी अनुमति और नियमों का पालन ही कानूनी सुरक्षा प्रदान कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति या बिल्डर नियमों को ताक पर रखकर कार्य करता है, तो वह कानून के दायरे में आ जाएगा।

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