दिल्ली हाई कोर्ट ने आर्थिक शोषण की शिकार एक महिला को राहत दी है। कोर्ट ने कहा कि यातना की सही तारीख न बता पाने के बावजूद महिला मुआवजा पाने की हकदार है।
Delhi HC: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि यदि किसी महिला का आर्थिक शोषण हुआ है, तो वह मुआवजे की हकदार है। कोर्ट ने पारिवारिक अदालत द्वारा महिला को भरण-पोषण (maintenance) न दिए जाने के निर्णय को पलटते हुए यह आदेश दिया। यह फैसला महिलाओं के कानूनी अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उदाहरण के तौर पर देखा जा रहा है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक महिला द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दर्ज याचिका से जुड़ा था। महिला ने कोर्ट में दावा किया था कि शादी के बाद से उसे मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया गया। आरोपों में कहा गया कि उसके पति ने पर्याप्त दहेज मिलने के बावजूद मोटरसाइकिल की मांग की और जब वह यह मांग पूरी नहीं कर पाई, तो उसके साथ मारपीट की गई और ससुराल से निकाल दिया गया।
पारिवारिक अदालत ने किया था भरण-पोषण से इनकार
पारिवारिक अदालत ने पहले महिला की याचिका खारिज कर दी थी, यह कहते हुए कि महिला यह साबित नहीं कर पाई कि उसके साथ प्रताड़ना कब और कैसे हुई। कोर्ट ने यह माना कि जब तक यातना की तारीखें स्पष्ट रूप से नहीं बताई जातीं, तब तक मामला विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस फैसले को अस्वीकार करते हुए कहा कि केवल इसलिए कि महिला प्रताड़ना की सटीक तारीख और समय नहीं बता पाई, इसका अर्थ यह नहीं कि उसका मामला झूठा है। कोर्ट ने साफ किया कि घरेलू हिंसा जैसे मामलों में महिलाएं अक्सर मानसिक आघात के कारण हर घटना की तारीख याद नहीं रख पातीं, और इसे उनके खिलाफ नहीं गिना जा सकता।
आर्थिक शोषण भी घरेलू हिंसा के दायरे में
न्यायमूर्ति अमित महाजन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आर्थिक शोषण भी आता है। यदि कोई महिला मानसिक और आर्थिक दबाव के तहत जीवन जी रही है, तो वह कानूनी संरक्षण और मुआवजे की हकदार है।
पति ने नहीं दी स्पष्ट सफाई
महिला के पति की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया कि पत्नी ने क्यों घर छोड़ा या उसने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कोई याचिका क्यों नहीं लगाई।
महिला द्वारा पति और ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज की गई सीएडब्ल्यू (Crime Against Women) शिकायत को अदालत ने एक वैध साक्ष्य माना। कोर्ट ने कहा कि शिकायत से यह स्पष्ट होता है कि महिला को प्रताड़ना का सामना करना पड़ा और ऐसे में उसका मामला कमजोर नहीं कहा जा सकता।