ग्यारहवीं शरीफ 2025 हजरत अब्दुल कादिर जिलानी की पुण्यतिथि पर मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण सूफी पर्व है। 3 नवंबर को पड़ने वाले इस दिन अनुयायी प्रार्थना, फातिहा ख्वानी और पवित्र भोजन का वितरण करते हैं। यह दिन आध्यात्मिक जागरूकता, नैतिक शिक्षा और समाज में सेवा व करुणा की भावना को बढ़ावा देता है।
11th Sharif 2025: इस साल यह महत्वपूर्ण सूफी पर्व 3 नवंबर को मनाया जाएगा, जो हजरत अब्दुल कादिर जिलानी की पुण्यतिथि के अवसर पर आता है। भारत और अन्य देशों में मुस्लिम समुदाय इस दिन प्रार्थना, फातिहा ख्वानी और पवित्र भोजन बांटने जैसी परंपराओं में शामिल होता है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि समाज में करुणा, सेवा और आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने का अवसर भी है। छात्रों और युवा पीढ़ी के लिए यह सूफी शिक्षाओं और नैतिक मूल्यों को सीखने का माध्यम बनता है।
हजरत अब्दुल कादिर जिलानी का योगदान
हजरत अब्दुल कादिर जिलानी को सूफीवाद का संस्थापक और "गौस-ए-आजम" के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनका जीवन और शिक्षाएं आज भी लाखों अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। ग्यारहवीं शरीफ पर उनके जीवन और शिक्षाओं को याद किया जाता है, जिसमें उनके नाम पर फातिहा ख्वानी, प्रार्थना और इसाले-सवाब का महत्व शामिल होता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता और समाज में सद्भाव फैलाना भी है।
ग्यारहवीं शरीफ 2025 कब है?
इस साल 2025 में ग्यारहवीं शरीफ 3 नवंबर को मनाई जाएगी। यह तारीख इस्लामी कैलेंडर के रबी-उस-सानी महीने की 11वीं तारीख से मेल खाती है। इस दिन मुस्लिम समुदाय विशेष प्रार्थना, कुरान पढ़ने, और पवित्र भोजन बांटने जैसी परंपराओं में शामिल होता है। ग्यारहवीं शरीफ हजरत अब्दुल कादिर जिलानी की पुण्यतिथि के रूप में मनाई जाती है और इसे इसाले-सवाब का अवसर माना जाता है।
ग्यारहवीं शरीफ के धार्मिक और आध्यात्मिक पहलू
ग्यारहवीं शरीफ केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह धार्मिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। इस दिन अनुयायी अपने घरों और मस्जिदों में मिलकर फातिहा ख्वानी करते हैं और हजरत जिलानी की शिक्षाओं पर विचार करते हैं।
- इसाले-सवाब: इस दिन की प्रमुख प्रथा इसाले-सवाब है, जिसका अर्थ है किसी मृत व्यक्ति के लिए पुण्य भेंट करना। अनुयायी इस अवसर पर दुआ और फातिहा ख्वानी करके मृतक की आत्मा के लिए लाभ अर्जित करते हैं।
- सूफी परंपरा: यह पर्व सूफी परंपराओं का हिस्सा है, जिसमें संगीत, कव्वाली और धार्मिक भाषण शामिल होते हैं। यह छात्रों और युवा पीढ़ी को सूफी विचारधारा और आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ता है।
- आध्यात्मिक आयोजन: इस दिन पवित्र भोजन का वितरण किया जाता है और प्रार्थनाओं के माध्यम से अल्लाह से जुड़ाव का अनुभव किया जाता है।
वैश्विक स्तर पर ग्यारहवीं शरीफ का महत्व
ग्यारहवीं शरीफ केवल स्थानीय या राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मनाया जाता है। पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, और कई अन्य देशों में सूफी समुदाय इस दिन को बड़े पैमाने पर श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाता है। दुनियाभर के अनुयायी इस पर्व को डिजिटल माध्यम से भी साझा करते हैं, ताकि हजरत अब्दुल कादिर जिलानी की शिक्षाएं अधिक लोगों तक पहुंच सकें।
ग्यारहवीं शरीफ मनाने की प्रमुख परंपराएं
ग्यारहवीं शरीफ के दौरान कई परंपराओं और गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। इनमें प्रमुख हैं:
- फातिहा ख्वानी और दुआ: अनुयायी हजरत जिलानी की पुण्यतिथि पर फातिहा ख्वानी करते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं। यह दिन आध्यात्मिक चिंतन और आत्मनिरीक्षण का समय होता है।
- धार्मिक सभाएं और महफिलें: कई जगहों पर सूफी कलाम और कव्वालियों की महफिलें आयोजित की जाती हैं। ये सभाएं समुदाय को जोड़ने और आध्यात्मिक संदेश देने का माध्यम बनती हैं।
- पवित्र भोजन का वितरण: इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों में पवित्र भोजन बांटा जाता है। यह सेवा और परोपकार की भावना को बढ़ावा देता है।
- शिक्षा और संदेश: अनुयायी हजरत जिलानी की शिक्षाओं को पढ़ते और समझते हैं। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर लोग नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को अपनाते हैं।
- ग्यारहवीं शरीफ के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू
- ग्यारहवीं शरीफ न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। इस दिन मुस्लिम समुदाय अपने पड़ोसियों और समाज के अन्य वर्गों के साथ भी सहयोग और सेवा की भावना दिखाता है। समाज में भाईचारा, साझा करुणा और आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
- सामुदायिक भावना: ग्यारहवीं शरीफ का आयोजन समुदाय में एकजुटता का प्रतीक है। लोग एक साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं और धार्मिक शिक्षाओं का आदान-प्रदान करते हैं।
- सांस्कृतिक पहलू: कव्वालियों, सूफी संगीत और धार्मिक भाषणों के माध्यम से सांस्कृतिक समृद्धि भी इस दिन देखी जाती है। यह न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक परंपराओं को भी जीवित रखता है।
आधुनिक युग में ग्यारहवीं शरीफ
आज डिजिटल युग में ग्यारहवीं शरीफ को ऑनलाइन माध्यमों से भी मनाया जाता है। सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए लोग दूर-दूर तक हजरत अब्दुल कादिर जिलानी की शिक्षाओं और सूफी परंपराओं को साझा कर रहे हैं। इससे युवा पीढ़ी में भी इस पर्व के प्रति जागरूकता बढ़ रही है।
अध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा
ग्यारहवीं शरीफ का मुख्य उद्देश्य लोगों को आध्यात्मिक विकास और नैतिक शिक्षा देना है। इस दिन अनुयायी अपने जीवन में सही और नैतिक मार्ग अपनाने की प्रेरणा लेते हैं। प्रार्थना, फातिहा ख्वानी और सेवा कार्य के माध्यम से व्यक्ति अपने अंदर करुणा, सहानुभूति और ईश्वर के प्रति भक्ति की भावना विकसित करता है।