उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के बेनीगंज क्षेत्र में स्थित हत्या हरण तीर्थ पितरों की शांति और मोक्ष के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि पितृपक्ष में यहां किए गए श्राद्ध और तर्पण से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। रामायण और महाभारत काल से जुड़ी परंपराओं और नैमिषारण्य की नजदीकी से इसका महत्व और बढ़ जाता है।
Hatya Haran Teerth Hardoi: उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के बेनीगंज क्षेत्र में स्थित हत्या हरण तीर्थ पितृपक्ष के दौरान विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने यहां पितरों का तर्पण किया था और भगवान राम ने भी ब्रह्महत्या से मुक्ति पाने के लिए यहीं स्नान किया था। पवित्र कुंड और नैमिषारण्य की नजदीकी इस स्थल की धार्मिक गरिमा को और गहरा बनाती है। आज भी पितृपक्ष में हजारों श्रद्धालु यहां श्राद्ध और तर्पण के लिए जुटते हैं।
पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित तीर्थ
हरदोई जिले के बेनीगंज क्षेत्र में बसा हत्या हरण तीर्थ को पृथ्वी के मध्य भाग में माना जाता है। मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान यह स्थल लोक और परलोक की दूरी को समाप्त कर देता है। यहां किए गए पूजा-पाठ और कर्मकांड सीधे पितरों तक पहुंचते हैं। इसी कारण पितृपक्ष में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
शिव और पार्वती से जुड़ी कथा
वेदों और पुराणों में इस स्थल का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि यह स्थान कभी भगवान शिव की तपोस्थली रहा है। शिव पुराण में वर्णन है कि एक बार माता पार्वती को प्यास लगी तो भगवान शिव ने सूर्य देव से जल प्राप्त कर इस भूमि पर गिराया। इससे एक पवित्र कुंड बना, जिससे माता पार्वती ने जलपान किया। यह वही कुंड है जो आज भी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
पांडवों और राम का संबंध
महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों ने अपने परिजनों और रिश्तेदारों की हत्या का बोझ महसूस किया तो वे इसी स्थान पर आए। यहीं पर उन्होंने अपने पितरों का तर्पण किया और मोक्ष की कामना की। मान्यता है कि पांडवों द्वारा किया गया श्राद्ध इस तीर्थ के महत्व को और बढ़ा गया।
इसी तरह, रामायण काल में भगवान श्रीराम भी अयोध्या लौटते समय इस तीर्थ पर आए थे। उन्होंने ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए इस कुंड में स्नान किया। तभी से यह स्थल मोक्ष प्रदान करने वाले तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
नैमिषारण्य से जुड़ा महत्व
हत्या हरण तीर्थ नैमिषारण्य के नजदीक स्थित है। नैमिषारण्य को 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि कहा जाता है। वेदों और पुराणों में इसे ज्ञान और तपस्या का केंद्र माना गया है। नैमिषारण्य की निकटता हत्या हरण को और भी महत्वपूर्ण बना देती है। यही कारण है कि यहां आने वाले श्रद्धालु अक्सर नैमिषारण्य की यात्रा भी करते हैं।
पितृपक्ष में खास आयोजन
पितृपक्ष में हत्या हरण तीर्थ का दृश्य बेहद अद्भुत होता है। देश-विदेश से लोग यहां अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने पहुंचते हैं। यहां किया गया दान-पुण्य पितरों को तृप्त करता है और आशीर्वाद स्वरूप परिवार पर कृपा बरसती है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस समय यहां मेले जैसा माहौल रहता है। कुंड के चारों ओर श्रद्धालु पूजा-पाठ करते नजर आते हैं।
प्राचीनता का प्रमाण
हत्या हरण तीर्थ की प्राचीनता आज भी आसपास के वृक्षों और पत्थरों में देखी जा सकती है। ये पुरातन वृक्ष और शिलाएं इस स्थल की ऐतिहासिकता का साक्ष्य हैं। यहां का वातावरण शांत और आध्यात्मिक अनुभूति कराता है। यही कारण है कि पीढ़ी दर पीढ़ी लोग यहां आते रहे हैं और अपने पितरों को तर्पण कर मोक्ष की कामना करते हैं।