फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी भारत के सबसे लोकप्रिय निवेश विकल्पों में से एक है। यह निवेश का वो जरिया है, जिसमें पैसा सुरक्षित रहने के साथ तय रिटर्न भी मिलता है। लेकिन अब निवेशकों के पास पारंपरिक बैंक एफडी के अलावा कॉर्पोरेट एफडी का भी विकल्प है। ऐसे में सवाल उठता है कि बैंक एफडी और कॉर्पोरेट एफडी में क्या फर्क है, और किसमें रिटर्न ज्यादा मिलता है।
क्या होती है बैंक एफडी और कैसे काम करती है
बैंक एफडी यानी बैंक द्वारा दी जाने वाली सावधि जमा योजना। इसमें निवेशक एक निश्चित रकम एक तय समय के लिए जमा करता है और उस पर बैंक एक निश्चित ब्याज देता है। ये एफडी पूरी तरह सुरक्षित मानी जाती हैं क्योंकि इनमें मूलधन के साथ ब्याज की गारंटी होती है।
बैंकों में जमा की गई रकम ₹5 लाख तक डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) के तहत बीमित होती है। यानी इस सीमा तक जमा पर अगर बैंक डिफॉल्ट भी करता है तो निवेशक को नुकसान नहीं होता।
कॉर्पोरेट एफडी क्या होती है और कैसे अलग है
कॉर्पोरेट एफडी कंपनियों द्वारा जारी की जाती हैं। कंपनियां जब बैंकों से कर्ज लेने के बजाय सीधे जनता से पैसा जुटाना चाहती हैं, तो वे फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में पैसा लेती हैं।
इनमें भी निवेशक एक तय रकम एक निश्चित अवधि के लिए जमा करते हैं और कंपनी उन्हें एक निश्चित ब्याज देती है। हालांकि, यहां बैंक जैसी गारंटी नहीं होती, न ही DICGC का कोई कवर होता है। यानी पैसा कंपनी की वित्तीय स्थिति पर निर्भर करता है।
ब्याज दर में कितना फर्क
बैंक एफडी में ब्याज दर आमतौर पर 6 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत के बीच होती है। सीनियर सिटीजन को इसमें अतिरिक्त 0.25 से 0.50 प्रतिशत तक का लाभ मिलता है।
वहीं कॉर्पोरेट एफडी की बात करें तो यहां ब्याज दर 8 प्रतिशत से 10 प्रतिशत या उससे अधिक भी हो सकती है। खासकर जब किसी कंपनी की क्रेडिट रेटिंग थोड़ी कम होती है तो वह निवेशकों को आकर्षित करने के लिए ज्यादा ब्याज ऑफर करती है।
निवेश अवधि की तुलना
बैंक एफडी में निवेश अवधि 7 दिन से लेकर 10 साल तक होती है। यानी निवेशक अपनी सुविधा के अनुसार अल्पकालिक या दीर्घकालिक एफडी चुन सकता है।
कॉर्पोरेट एफडी आमतौर पर 6 महीने से 5 साल तक के लिए उपलब्ध होती है। कुछ कंपनियां इससे ज्यादा अवधि के लिए भी एफडी देती हैं, लेकिन उनमें जोखिम भी ज्यादा होता है।
ब्याज भुगतान का तरीका
बैंक एफडी में निवेशक को मासिक, तिमाही, अर्धवार्षिक, वार्षिक या मैच्योरिटी पर ब्याज पाने का विकल्प मिलता है।
कॉर्पोरेट एफडी में भी आम तौर पर यही विकल्प मिलते हैं, लेकिन कुछ कंपनियां केवल मैच्योरिटी पर ही ब्याज देने की सुविधा देती हैं।
सुरक्षा और जोखिम में अंतर
बैंक एफडी को सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है। आरबीआई के नियंत्रण में काम करने वाले बैंक न केवल भरोसेमंद होते हैं, बल्कि इन पर सरकार का अप्रत्यक्ष संरक्षण भी होता है।
कॉर्पोरेट एफडी में जोखिम का स्तर अधिक होता है। निवेश की सुरक्षा पूरी तरह कंपनी की क्रेडिट रेटिंग और बैलेंस शीट पर निर्भर करती है। अगर कंपनी घाटे में चली गई या डिफॉल्ट किया, तो निवेशकों का पैसा फंस सकता है।
टैक्स में क्या फर्क
बैंक एफडी में निवेश पर कुछ कर लाभ मिल सकता है। विशेष रूप से पांच साल की टैक्स-सेविंग एफडी में निवेश करने पर आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत ₹1.5 लाख तक की कटौती का लाभ मिलता है।
कॉर्पोरेट एफडी में ऐसा कोई कर लाभ नहीं मिलता। हालांकि दोनों ही प्रकार की एफडी से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स देना होता है, अगर सालाना ब्याज ₹40,000 (सीनियर सिटीजन के लिए ₹50,000) से ज्यादा हो जाता है।
कौन दे रहा ज्यादा रिटर्न इस समय
वर्तमान में टाटा कैपिटल, एचडीएफसी लिमिटेड, श्रिराम फाइनेंस, महिंद्रा फाइनेंस जैसी कंपनियां 8 प्रतिशत से अधिक की दर पर कॉर्पोरेट एफडी ऑफर कर रही हैं। वहीं बैंक एफडी में सार्वजनिक बैंक जैसे एसबीआई, पीएनबी और केनरा बैंक 6.5 से 7.25 प्रतिशत तक की ब्याज दर दे रहे हैं। कुछ प्राइवेट बैंक जैसे आरबीएल और यस बैंक ज्यादा रिटर्न ऑफर कर रहे हैं लेकिन रिस्क थोड़ा बढ़ जाता है।