राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) ने महाराष्ट्र में संगठन को नया नेतृत्व सौंपते हुए बड़ा दांव चला है। पूर्व मंत्री और मौजूदा विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) शशिकांत शिंदे को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। उन्होंने जयंत पाटिल की जगह ली है, जो पिछले आठ सालों से इस पद पर थे। नई जिम्मेदारी मिलते ही शिंदे ने स्पष्ट कर दिया कि उनका मिशन महाराष्ट्र में पार्टी को फिर से सत्ता तक पहुंचाना है।
दिन-रात मेहनत करूंगा
पदभार संभालते ही शशिकांत शिंदे ने मीडिया से बातचीत में बड़ा बयान देते हुए कहा कि वे जल्द ही पूरे राज्य का दौरा करेंगे और सरकार की नीतियों को जनता के सामने लाएंगे। उन्होंने कहा, हमारा लक्ष्य पार्टी को फिर से सत्ता में लाना है। इसके लिए मैं दिन-रात मेहनत करूंगा। शिंदे ने यह भी साफ किया कि वे संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने पर फोकस करेंगे और युवाओं को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे।
उन्होंने आगे कहा, अगर जरूरत पड़ी तो हम सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतरने से भी पीछे नहीं हटेंगे। इस मौके पर उन्होंने दिवंगत नेता और पूर्व गृह मंत्री आर.आर. पाटील को याद करते हुए कहा कि वे उन्हीं की तरह जनसंपर्क और जमीन से जुड़कर राजनीति करेंगे।
कई वरिष्ठों के बीच मुझे मौका मिला
शशिकांत शिंदे ने अपनी नियुक्ति को लेकर कहा कि कई अनुभवी नेताओं के बीच उन्हें यह जिम्मेदारी मिलना गर्व की बात है। मैं इसका न्याय करने की पूरी कोशिश करूंगा। आर.आर. पाटील ने दिखाया था कि एक साधारण नेता भी बड़े काम कर सकता है, मैं भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चलूंगा, उन्होंने कहा।
वर्तमान राजनीतिक हालात पर प्रतिक्रिया देते हुए शिंदे ने कहा कि आज राजनीति में पैसे और सत्ता के लालच से लोगों को प्रभावित किया जा रहा है। लेकिन उनकी पार्टी ऐसी प्रथाओं के खिलाफ डटी रहेगी और एक वैकल्पिक राजनीतिक संस्कृति को आगे बढ़ाएगी।
संगठन को फिर से खड़ा करने की चुनौती
शशिकांत शिंदे पश्चिमी महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता हैं और NCP के गठन से ही शरद पवार के करीबी माने जाते रहे हैं। पार्टी के विभाजन के बाद भी उन्होंने पवार गुट का साथ नहीं छोड़ा। अपने संगठनात्मक कौशल और कार्यकर्ताओं के बीच मजबूत पकड़ के लिए पहचाने जाने वाले शिंदे से पार्टी को आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है।
बीते लोकसभा चुनावों में जहां पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया था, वहीं उसके कुछ ही महीनों बाद हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को केवल 10 सीटों से संतोष करना पड़ा। ऐसे में शिंदे के सामने एक बार फिर संगठन को मजबूत करने और पार्टी को राज्य की राजनीति में प्रभावी विकल्प के तौर पर खड़ा करने की बड़ी चुनौती है।