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मुसलमानों का भरोसा दोबारा जीत पाएंगी मायावती? यूपी की सियासत में नया समीकरण

मुसलमानों का भरोसा दोबारा जीत पाएंगी मायावती? यूपी की सियासत में नया समीकरण

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने एक बार फिर मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश तेज कर दी है। 29 अक्टूबर को लखनऊ में हुई दलित-मुस्लिम भाईचारा कमेटी की बैठक में उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे मुसलमानों के बीच जाकर पार्टी की नीतियों को प्रचारित करें।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर बड़ा समीकरण बनने के संकेत मिल रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती ने मुसलमानों का भरोसा जीतने के लिए अभियान तेज कर दिया है। उन्होंने लखनऊ में आयोजित दलित-मुस्लिम भाईचारा कमेटी की बैठक में कार्यकर्ताओं से कहा कि वे मुस्लिम समाज के बीच जाकर संवाद बढ़ाएं और उन्हें यह भरोसा दिलाएं कि “उनका भविष्य बसपा शासन में ही सुरक्षित है।

मायावती की यह कोशिश ऐसे समय में हो रही है जब 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों और दलितों के एकजुट समर्थन से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) को बड़ी राजनीतिक ताकत मिली थी। अब सवाल यह है कि क्या मायावती एक बार फिर 2007 जैसा दलित-मुस्लिम गठजोड़ बना पाएंगी, जब बसपा ने अकेले दम पर बहुमत हासिल किया था?

यूपी में मुसलमानों की निर्णायक भूमिका

उत्तर प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी करीब 19.26 प्रतिशत है। खासकर पश्चिमी यूपी, मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ, अमरोहा और बिजनौर जैसे जिलों में मुस्लिम मतदाता सत्ता के समीकरण को तय करते हैं। इन इलाकों में दलितों और मुसलमानों की संयुक्त भागीदारी किसी भी राजनीतिक दल के लिए निर्णायक साबित हो सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि मायावती मुस्लिम समुदाय को अपने पक्ष में लाने में सफल होती हैं, तो इससे सपा और कांग्रेस दोनों के वोट बैंक पर गहरा असर पड़ सकता है।

मायावती का नया संदेश: ‘बिना बुलडोजर की सरकार’

लखनऊ बैठक में मायावती ने कहा कि बसपा शासन के दौरान “कानून व्यवस्था” कायम रही थी और “बिना बुलडोजर चलाए” भी अपराध पर नियंत्रण किया गया था। उन्होंने वादा किया कि सत्ता में आने पर न तो किसी समुदाय के साथ भेदभाव होगा, न ही राजनीतिक प्रतिशोध। बसपा के लखनऊ मंडल प्रभारी फैजान खान ने कहा —

'मायावती का शासन यूपी के इतिहास में सबसे संतुलित रहा। उन्होंने किसी भी धर्म या जाति के साथ भेदभाव नहीं किया। आज की सरकारें बुलडोजर के नाम पर अपनी असफलता छिपा रही हैं।'

उन्होंने सपा और भाजपा दोनों पर आरोप लगाया कि ये दल सत्ता में आने पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ाने का काम करते हैं, जबकि बसपा “समानता और सामाजिक न्याय” की राजनीति करती है।

कांग्रेस बोली—हम ही हैं अत्याचार के खिलाफ सबसे मुखर आवाज

कांग्रेस ने मायावती के अभियान पर सवाल उठाते हुए खुद को मुसलमानों और दलितों की “वास्तविक आवाज” बताया। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष विश्व विजय सिंह ने कहा, सीएए-एनआरसी हो या अन्य कोई मुद्दा, कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने सड़कों पर उतरकर इसका विरोध किया। कांग्रेस ही वह पार्टी है जिसने हमेशा गरीबों, दलितों और मुसलमानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी है।

उनके मुताबिक, मुसलमान और दलित अब कांग्रेस की विचारधारा को समझ चुके हैं और वापस बसपा या सपा की ओर लौटने की संभावना कम है। समाजवादी पार्टी ने मायावती पर भाजपा को अप्रत्यक्ष मदद देने का आरोप लगाया। पार्टी के प्रवक्ता मोहम्मद आज़म खान ने कहा, मायावती जब भी बोलती हैं, भाजपा को फायदा होता है। वे मुसलमानों को बरगलाने का काम कर रही हैं। जब-जब मुसलमानों पर अत्याचार हुआ, मायावती चुप रहीं।”

आजम खान का कहना है कि आज का मुसलमान अब “तरक्की और शिक्षा” की राजनीति चाहता है। उन्होंने दावा किया कि अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा सरकार ने मुसलमानों को सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत किया था और 2027 के विधानसभा चुनाव में सपा फिर भाजपा को कड़ी चुनौती देगी।

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