सपा ने तीन बागी विधायकों अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज पांडेय को पार्टी से बाहर किया। अखिलेश यादव ने अनुशासन कायम रखा और दलित‑ओबीसी‑अल्पसंख्यक (पीडीए) समीकरण को भी मजबूती दी।
UP Politics: समाजवादी पार्टी ने तीन बागी विधायकों अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज पांडेय को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। इन विधायकों पर बीजेपी के साथ जाने और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। इस फैसले से सपा ने न सिर्फ अनुशासन का संदेश दिया, बल्कि अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) वोटबैंक को भी साधने की कोशिश की है।
तीन विधायकों पर बड़ी कार्रवाई
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल तीन विधायकों को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। ये तीनों विधायक अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज पांडेय बीजेपी के समर्थन में खुलकर सामने आ चुके थे। सपा के अनुसार, इन नेताओं ने सपा की विचारधारा के खिलाफ जाकर भाजपा की सांप्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति का समर्थन किया था।
पार्टी ने स्पष्ट किया कि यह फैसला 'अनुशासन' को प्राथमिकता देने और सपा की मूल विचारधारा को बचाने के लिए लिया गया है। यह कदम उस वक्त उठाया गया है जब इन विधायकों को पहले ही चेतावनी दी जा चुकी थी और हृदय परिवर्तन के लिए 'अनुग्रह अवधि' भी दी गई थी।
राज्यसभा चुनाव से जुड़ा है बगावत का मामला
साल 2024 के राज्यसभा चुनाव के दौरान सपा के सात विधायकों ने पार्टी लाइन से अलग हटकर बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया था। इन बागी विधायकों में अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज पांडेय के अलावा राकेश पांडेय, पूजा पाल, विनोद चतुर्वेदी और आशुतोष मौर्य भी शामिल थे। हालांकि, पार्टी ने फिलहाल सिर्फ तीन विधायकों को निष्कासित किया है और बाकी चार को कुछ समय की मोहलत दी गई है।
मुखर बयानबाजी बनी सजा की वजह
जिन तीन विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है, वे लंबे समय से पार्टी के खिलाफ मुखर बयानबाजी कर रहे थे। अभय सिंह और मनोज पांडेय सपा को हिंदू विरोधी तक बता चुके हैं। वहीं, राकेश प्रताप सिंह ने हाल ही में एक इंटरव्यू में अखिलेश यादव को 'छोटे दिल का इंसान' बताया था। इन बयानों और बीजेपी नेताओं से मुलाकातों ने पार्टी को यह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।
जातिगत समीकरण को भी साधने की रणनीति
निष्कासित किए गए तीनों विधायक सामान्य वर्ग से आते हैं। अभय सिंह और राकेश प्रताप सिंह ठाकुर जाति से हैं जबकि मनोज पांडेय ब्राह्मण हैं। सपा की वर्तमान रणनीति पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग को केंद्र में रखकर बनाई गई है। ऐसे में इन तीन नेताओं को बाहर करना पार्टी की सियासी गणित को नुकसान नहीं पहुंचाता।
उल्टा, इससे यह संदेश भी जाता है कि पार्टी अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करेगी, चाहे वह किसी भी जाति या क्षेत्र के नेता हों। वहीं, चार अन्य विधायक—पूजा पाल, राकेश पांडेय, विनोद चतुर्वेदी और आशुतोष मौर्य, को फिलहाल पार्टी से नहीं निकाला गया है। इन नेताओं ने पार्टी प्रमुख पर व्यक्तिगत हमले नहीं किए और भविष्य में सुधार की उम्मीद जताई गई है।
चार बागी क्यों बचे, क्या है कारण
पूजा पाल और आशुतोष मौर्य पिछड़ी जातियों से हैं। वहीं राकेश पांडेय और विनोद चतुर्वेदी ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। सपा इन चारों नेताओं पर फिलहाल नरम रुख अपनाए हुए है। पार्टी का मानना है कि इनका व्यवहार बाकी तीनों की तरह 'जनविरोधी' नहीं रहा है। सपा ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि भविष्य में इन विधायकों का व्यवहार भी अनुशासनहीन पाया गया तो उन पर भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
पार्टी लाइन पर लौटने की आखिरी मोहलत
सपा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि चार बागियों को अब भी 'अच्छे व्यवहार' के आधार पर समय दिया गया है। पार्टी चाहती है कि वे वापस लाइन में लौटें और सपा की विचारधारा का समर्थन करें। पार्टी यह भी स्पष्ट कर चुकी है कि जनविरोधी या भाजपा समर्थक गतिविधियों के लिए कोई स्थान नहीं है। जहां रहें, वहां विश्वसनीय रहें, यह संदेश साफ तौर पर दिया गया है।
व्यक्तिगत हमलों ने बिगाड़ा समीकरण
तीनों निष्कासित विधायकों ने सिर्फ पार्टी लाइन तोड़ी ही नहीं, बल्कि पार्टी प्रमुख पर सीधा हमला भी किया। इससे सपा नेतृत्व की साख को भी चुनौती मिली थी। मनोज पांडेय और अभय सिंह जहां अखिलेश यादव को 'हिंदू विरोधी' बताते आए, वहीं राकेश प्रताप सिंह ने निजी टिप्पणी तक कर डाली। यही आक्रामक रुख उनकी बर्खास्तगी की मुख्य वजह बना।