भारतीय बैंकिंग इतिहास में 1 अगस्त 2025 से एक नया अध्याय जुड़ गया है। देश में बैंकिंग लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के तहत किए गए बड़े बदलाव अब से लागू हो गए हैं। इस अधिनियम के जरिए सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र की पारदर्शिता, जवाबदेही और निवेशकों की सुरक्षा को लेकर कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को प्रभावी किया है। सबसे अहम बात यह है कि ‘सब्स्टेंशियल इंटरेस्ट’ की सीमा ₹5 लाख से बढ़ाकर सीधे ₹2 करोड़ कर दी गई है, जो 1968 के बाद पहली बार बदली गई है।
कौन-कौन से कानूनों में हुए बदलाव
बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 15 अप्रैल को अधिसूचित किया गया था, लेकिन इसके कुछ अहम प्रावधानों को 1 अगस्त से लागू करने का ऐलान हाल ही में 29 जुलाई को किया गया।
इन संशोधनों के तहत पांच प्रमुख बैंकिंग कानूनों में कुल 19 बदलाव किए गए हैं। इसमें शामिल हैं:
- भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1955
- बैंकिंग कंपनियां (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970
- बैंकिंग कंपनियां (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1980
1 अगस्त से लागू हुईं ये धाराएं
सरकार की ओर से 29 जुलाई को जारी अधिसूचना में बताया गया कि अधिनियम की धारा 3, 4, 5, 15, 16, 17, 18, 19 और 20 को 1 अगस्त 2025 से लागू कर दिया गया है। ये धाराएं बैंकिंग संचालन, प्रबंधन, ऑडिट व्यवस्था और निवेशकों की सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों से जुड़ी हुई हैं।
सबसे बड़ा बदलाव: अब ₹2 करोड़ तक ‘सब्स्टेंशियल इंटरेस्ट’
अब तक ‘सब्स्टेंशियल इंटरेस्ट’ की परिभाषा के तहत बैंकिंग कंपनियों के मामले में ₹5 लाख की सीमा तय थी, जिसे 57 साल बाद बदलते हुए ₹2 करोड़ कर दिया गया है। यह बदलाव बैंकिंग कंपनियों के प्रबंधन और हिस्सेदारी के मामलों में पारदर्शिता लाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
इस बदलाव का असर उन सभी मामलों पर पड़ेगा जहां किसी व्यक्ति या संस्था की किसी बैंक में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी को लेकर नियमों की जांच होती है।
सहकारी बैंकों के डायरेक्टर्स का कार्यकाल बढ़ा
सहकारी बैंकों में भी बड़ा सुधार किया गया है। अब चेयरपर्सन और फुल टाइम डायरेक्टर को छोड़कर अन्य निदेशकों का कार्यकाल 8 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। यह प्रावधान संविधान के 97वें संशोधन के अनुरूप किया गया है, ताकि सहकारी संस्थानों में स्थायित्व और संचालन में निरंतरता बनी रह सके।
इस बदलाव से यह उम्मीद की जा रही है कि सहकारी बैंकिंग प्रणाली में अनुभव और नेतृत्व का लाभ लंबे समय तक मिल सकेगा।
IEPF में फंसी रकम ट्रांसफर करने की अनुमति
एक और बड़ा फैसला यह लिया गया है कि अब पब्लिक सेक्टर बैंकों को अनक्लेम्ड शेयर, ब्याज और बॉन्ड रिडेम्पशन की रकम को सीधे इन्वेस्टर एजुकेशन एंड प्रोटेक्शन फंड (IEPF) में ट्रांसफर करने की अनुमति मिल गई है।
पहले यह सुविधा केवल कुछ निजी और म्यूचुअल फंड कंपनियों तक सीमित थी, लेकिन अब सरकार ने इसे सभी सार्वजनिक बैंकों तक विस्तार देने का फैसला किया है। इससे निवेशकों की अनक्लेम्ड रकम को सरकार निवेश शिक्षा और सुरक्षा के लिए इस्तेमाल कर सकेगी।
गवर्नेंस स्ट्रक्चर को मजबूती मिलेगी
इन तमाम बदलावों का केंद्र बिंदु भारतीय बैंकिंग ढांचे को और अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और निवेशकों के हित में बनाना है। चाहे बात गवर्नेंस की हो, निवेशकों की सुरक्षा की या फिर बैंक प्रबंधन की जवाबदेही की ये सभी प्रावधान सीधे-सीधे इन क्षेत्रों को प्रभावित करेंगे।
इससे पहले लंबे समय से बैंकिंग सेक्टर में यह मांग उठ रही थी कि कुछ पुराने कानूनों और परिभाषाओं को बदलने की जरूरत है, जो अब जाकर सरकार ने पूरा किया है।
बैंकिंग सेक्टर में कानूनी मजबूती की ओर कदम
सरकार के इस कदम को बैंकिंग विशेषज्ञ लंबे समय से जरूरी बता रहे थे। मौजूदा वैश्विक आर्थिक हालात और तकनीकी बदलावों के बीच भारतीय बैंकिंग सिस्टम को मजबूत करना जरूरी हो गया था।
इस संशोधित कानून के लागू होने के बाद अब बैंकों के संचालन में नियमों की स्पष्टता आएगी, निवेशकों और जमाकर्ताओं को बेहतर सुरक्षा मिलेगी और बैंकों को काम करने की ज्यादा स्वतंत्रता भी मिलेगी।