बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का परिवार दशकों से एक केंद्रीय भूमिका निभाता आया है। लेकिन 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले लालू परिवार के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव फिर से सुर्खियों में हैं।
पटना: बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और लालू प्रसाद यादव का परिवार वर्षों से एक बड़ा नाम रहा है। लेकिन 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले एक बार फिर लालू परिवार के अंदर से संकट के बादल मंडराने लगे हैं। इसकी वजह बने हैं पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव, जिनके हालिया बयानों, पोस्ट्स और निष्कासन ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है।
तेज प्रताप के बागी तेवर और उनकी अस्पष्ट राजनीतिक दिशा RJD की एकजुटता और रणनीति के लिए खतरा बन सकते हैं। यहां हम उन 5 महत्वपूर्ण बिंदुओं की चर्चा कर रहे हैं, जो यह दर्शाते हैं कि तेज प्रताप यादव वाकई RJD और लालू परिवार के लिए सिरदर्द बन सकते हैं।
1. अनुष्का विवाद और पार्टी से निष्कासन
मई 2025 में तेज प्रताप ने अपने सोशल मीडिया पर एक महिला के साथ 12 साल पुराने रिश्ते का दावा करते हुए एक पोस्ट डाली, जिसने राजनीतिक और पारिवारिक भूचाल ला दिया। बाद में उन्होंने इसे हैकिंग बताया, लेकिन बात हाथ से निकल चुकी थी। लालू यादव ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए उन्हें पार्टी और परिवार से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया।
यह पहली बार था जब लालू ने अपने बेटे के खिलाफ सार्वजनिक रूप से इतनी कठोर कार्रवाई की। इस कदम को RJD की नैतिक छवि बनाए रखने की कोशिश बताया गया, लेकिन इससे यह भी उजागर हो गया कि परिवार में दरारें अब सार्वजनिक मंचों पर दिखने लगी हैं।
2. निष्कासन के बाद बगावती बयानबाज़ी
तेज प्रताप ने निष्कासन के बाद चुप्पी साधने के बजाय ट्वीट कर कहा, मेरी खामोशी को कमजोरी मत समझना, शुरुआत तुमने की है, अंत मैं करूंगा।” यह ट्वीट सीधे तौर पर उनके परिवार और पार्टी नेतृत्व की ओर इशारा करता है। यह उनके अंदर पल रही नाराजगी और बगावती तेवर का प्रमाण है। अगर तेज प्रताप चुनावों से पहले कोई बड़ा फैसला लेते हैं—जैसे नई पार्टी बनाना या किसी और दल का साथ देना—तो RJD के लिए यह गहरी चोट बन सकती है।
3. तेजस्वी से पुराना टकराव और 'कृष्ण-अर्जुन' का भाव
तेज प्रताप और तेजस्वी यादव के बीच पहले से ही वर्चस्व की लड़ाई चलती रही है। तेजस्वी को पार्टी का चेहरा बनाए जाने के बाद तेज प्रताप खुद को हाशिए पर महसूस करने लगे थे। उन्होंने कई बार खुद को कृष्ण और तेजस्वी को अर्जुन बताकर सत्ता में अपनी भूमिका को उच्च दिखाने की कोशिश की। लेकिन व्यवहार में उनके तेवर बार-बार पार्टी लाइन से बाहर जाने वाले रहे हैं। तेज प्रताप का असंतुलन न सिर्फ परिवार को, बल्कि पार्टी के कैडर और कार्यकर्ताओं को भी भ्रमित करता है।
4. विपक्षी दलों के लिए बना मौका
तेज प्रताप के विवादों का सबसे बड़ा फायदा विपक्षी दल उठा रहे हैं। JDU और BJP ने RJD की कथनी और करनी पर सवाल खड़े करते हुए इसे “लालू परिवार का पारिवारिक ड्रामा” कहा है। तेज प्रताप की पूर्व पत्नी ऐश्वर्या राय के मामले को भी एक बार फिर से हवा दी जा रही है। यह सब RJD की छवि को कमजोर कर सकता है, खासकर मुस्लिम-यादव वोट बैंक के बीच, जो पार्टी का पारंपरिक समर्थन आधार रहा है।
5. अखिलेश यादव से बातचीत और नई सियासी अटकलें
तेज प्रताप ने हाल ही में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के साथ वीडियो कॉल कर राजनीतिक हलचल तेज कर दी। उन्होंने इस बातचीत को अपने सोशल मीडिया पर साझा करते हुए अखिलेश को दिल के करीब बताया। जब उनसे पूछा गया कि वो कहां से चुनाव लड़ेंगे, तो उन्होंने “लखनऊ आ रहा हूं” कहकर बात को टाल दिया।
यह इशारा करता है कि वो RJD से इतर अपनी नई सियासी राह तलाश सकते हैं। अगर वे निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं या SP या किसी अन्य दल से गठबंधन करते हैं, तो RJD को वोटकटवा प्रभाव झेलना पड़ सकता है, जिससे सीधा फायदा BJP और JDU को मिलेगा।