ज्योतिषाचार्य डॉ. बसवराज गुरुजी का कहना है कि ब्याज का धंधा आम लोगों के लिए शुभ नहीं माना जाता, खासकर गरीबों और मजदूरों से ब्याज लेना नकारात्मक फल देता है। धर्मशास्त्रों में इसे शोषण माना गया है, जबकि कमजोर, विकलांग और सहारा विहीन महिलाओं के लिए यह अपवाद स्वरूप स्वीकार्य है।
ब्याज का धंधा शुभ या अशुभ: ज्योतिषाचार्य डॉ. बसवराज गुरुजी ने हाल ही में बताया कि सामान्य परिस्थितियों में ब्याज का लेन-देन शुभ नहीं माना जाता, खासकर तब जब यह गरीब या कमजोर वर्ग से लिया जाए। उनके अनुसार प्राचीन काल से ब्याज का प्रचलन रहा है, लेकिन मंदिरों और धर्मशास्त्रों में जरूरतमंद पर ब्याज लगाना निषिद्ध माना गया है। गुरुजी का कहना है कि शोषण आधारित ब्याज से परिवार में तनाव, स्वास्थ्य समस्याएं और आर्थिक अस्थिरता आ सकती है, जबकि विकलांग और सहारा विहीन महिलाओं के लिए यह जीविका का स्वीकार्य साधन है।
ब्याज लेना-देना हर किसी के लिए नहीं माना शुभ
डॉ. गुरुजी के अनुसार ब्याज का धंधा धर्मशास्त्रों में सामान्य परिस्थितियों में शुभ नहीं माना गया है। खासकर गरीब, दिहाड़ी मजदूर और कमजोर वर्ग से ब्याज लेना उनकी मेहनत का शोषण माना गया है। उनका कहना है कि यह कर्म नकारात्मक फल देता है और व्यक्ति की सुख-समृद्धि में बाधा बन सकता है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सूदखोरी से प्राप्त धन अक्सर परिवार में कलह, पति-पत्नी के बीच तनाव और अचानक स्वास्थ्य समस्याओं जैसी स्थितियां पैदा कर सकता है। यही कारण है कि धार्मिक ग्रंथों में कमजोर तबके से ब्याज लेने पर आपत्ति जताई गई है।

प्राचीन काल में भी था ब्याज का प्रचलन
डॉ. बसवराज गुरुजी बताते हैं कि ब्याज कोई नया तरीका नहीं है। त्रेता और द्वापर युग में भी ब्याज देने-लेने की व्यवस्था थी। फर्क सिर्फ इतना था कि उस समय पैसे नहीं, बल्कि अनाज या अन्य वस्तुएं ब्याज के रूप में दी जाती थीं। उदाहरण के तौर पर दस किलो अनाज देना और कुछ महीनों बाद पंद्रह किलो अनाज वापस लेना आम परंपरा थी।
समय बदलने के साथ यह व्यवस्था अनाज से मुद्रा आधारित हो गई और आज गांवों-शहरों में कई लोग इसे अतिरिक्त आय के साधन के रूप में अपनाते हैं।
किन लोगों के लिए ब्याज का धंधा माना गया अपवाद
धर्मशास्त्रों में ब्याज से कमाई के कुछ अपवाद भी बताए गए हैं। डॉ. गुरुजी कहते हैं कि शारीरिक रूप से कमजोर, विकलांग और ऐसे लोग जो श्रम करने में सक्षम नहीं हैं, उनके लिए यह काम स्वीकार्य है।
इसी तरह से ऐसी महिलाएं जिनके पास परिवार का सहारा नहीं है और जो बाहर जाकर काम करने में सक्षम नहीं हैं, वे जीविका के लिए सीमित रूप में ब्याज आधारित लेन-देन कर सकती हैं। इन परिस्थितियों को समाज और धर्म दोनों ही संवेदनशीलता से स्वीकार करते हैं।
नैतिकता और संवेदना को बनाया जाए आधार
डॉ. बसवराज गुरुजी कहते हैं कि धनवान लोगों को जरूरतमंदों की मदद बिना ब्याज के करनी चाहिए। यह भाव न सिर्फ शुभ फल देता है, बल्कि सामाजिक सद्भाव भी बढ़ाता है। उनका मानना है कि जरूरतमंद की मदद करके भूल जाना सर्वोच्च पुण्य कर्मों में से एक है।
ब्याज का व्यापार यदि अत्यधिक, कठोर या शोषण आधारित हो जाए, तो उसके परिणाम मानसिक तनाव से लेकर आर्थिक अस्थिरता तक पहुँच सकते हैं।













