भारत की सीमाओं को मजबूत करने के लिए ATAGS स्वदेशी टोड आर्टिलरी गन सिस्टम सेना में शामिल किया जा रहा है। इसकी 48 किमी रेंज, स्वचालित तकनीक, और ‘शूट‑एंड‑स्कूट’ क्षमता से तोपखाना आधुनिक बनेगा।
Defence News: भारत की सीमाओं पर खतरों से निपटने के लिए रक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। ATAGS यानी एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम अब भारतीय सेना के तोपखाने का हिस्सा बनने जा रहा है। इसकी खासियतें, तकनीकी मजबूती और भविष्य की रणनीति इसे भारतीय सेना का प्रमुख हथियार बना सकती हैं।
क्या है ATAGS
ATAGS एक 155 मिमी/52 कैलिबर की आधुनिक टोड (खींचकर ले जाई जाने वाली) तोप है, जिसे पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है। इसे DRDO ने भारत फोर्ज और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) के सहयोग से डिजाइन किया है। इस परियोजना की शुरुआत 2013 में की गई थी, जिसका उद्देश्य सेना की पुरानी तोपों को आधुनिक विकल्प से बदलना है।
सेना में शामिल होने की योजना
मार्च 2025 में रक्षा मंत्रालय ने 307 ATAGS और 327 हाई-मोबिलिटी 6x6 गन टोइंग वाहनों की खरीद के लिए 6,900 करोड़ रुपये का सौदा किया। पहला रेजिमेंट फरवरी 2027 तक सेना में शामिल किया जाएगा। भारत फोर्ज 184 और टाटा 123 यूनिट्स का निर्माण करेंगे।
ATAGS की खासियतें
ATAGS को उसकी लंबी मारक क्षमता, तेज फायरिंग रेट और स्वचालित संचालन प्रणाली के लिए जाना जाता है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
लंबी मारक क्षमता
ATAGS की अधिकतम फायरिंग रेंज 48 किलोमीटर तक है। यह रिकॉर्ड साल 2017 में पोखरण परीक्षण के दौरान हासिल किया गया।
तेज फायरिंग क्षमता
यह 85 सेकंड में 6 गोले दाग सकता है। सामान्य मोड में यह एक घंटे में 60 गोले फायर करने में सक्षम है।
इलेक्ट्रिक ड्राइव सिस्टम
ATAGS पारंपरिक हाइड्रोलिक सिस्टम की जगह ऑल-इलेक्ट्रिक ड्राइव से लैस है, जिससे रखरखाव में कमी आती है और विश्वसनीयता बढ़ती है।
स्वचालित संचालन
इसमें गन लेइंग और गोला-बारूद हैंडलिंग सिस्टम पूरी तरह ऑटोमैटिक है। साथ ही इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम, मझल वेलोसिटी रडार और बैलिस्टिक कंप्यूटर की मदद से यह अधिक सटीक निशाना साध सकता है।
सभी वातावरणों में उपयोगी
ATAGS को रेगिस्तानी इलाकों से लेकर पहाड़ी क्षेत्रों तक प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी टेस्टिंग राजस्थान से लेकर सिक्किम और लद्दाख में सफल रही है।
स्वदेशी तकनीक
ATAGS में 65% से अधिक हिस्से भारत में बनाए गए हैं। इसमें बैरल, ब्रीच मैकेनिज्म, फायरिंग सिस्टम, रिकॉइल मैकेनिज्म और गोला-बारूद हैंडलिंग शामिल हैं।
माउंटेड गन सिस्टम वेरिएंट
ATAGS का एक ट्रक-माउंटेड वर्जन भी विकसित किया गया है। यह 8x8 हाई-मोबिलिटी व्हीकल पर आधारित है और इसका वजन लगभग 30 टन है। यह 'शूट-एंड-स्कूट' फॉर्मूले पर काम करता है, यानी फायरिंग के बाद तुरंत अपनी स्थिति बदल सकता है।
विकास और परीक्षण की प्रक्रिया
ATAGS की परीक्षण प्रक्रिया कई चरणों में पूरी की गई। पहला परीक्षण 2016 में ओडिशा के बालासोर में हुआ। 2017 में पोखरण में इसने रिकॉर्ड 48.074 किमी की रेंज हासिल की। 2021-22 में सिक्किम में बर्फीले इलाकों में और 2022 में पोखरण में फाइनल वैलिडेशन ट्रायल हुआ। एक बार 2020 में ट्रायल के दौरान बैरल फटने की घटना हुई थी, जिसकी जांच में पता चला कि यह घटना गोला-बारूद की खराबी से हुई थी, न कि गन की तकनीकी कमी से।
अंतरराष्ट्रीय सफलता
ATAGS की वैश्विक मांग का प्रमाण है कि आर्मेनिया ने इसे खरीदा है। 2023 में 6 यूनिट्स का ऑर्डर मिला और 2024 में 84 और यूनिट्स के लिए बातचीत चल रही है।
भारतीय सेना का तोपखाना: वर्तमान स्थिति
भारतीय सेना ने 1999 में फील्ड आर्टिलरी रेशनलाइजेशन प्लान (FARP) शुरू किया था, जिसका लक्ष्य 2027 तक 2800 से 3600 आधुनिक 155 मिमी तोपों को शामिल करना था। अब यह लक्ष्य 2040 तक बढ़ा दिया गया है।
वर्तमान इन्वेंटरी में शामिल हैं:
K9 वज्र-T: 100 यूनिट्स शामिल, 200 और की योजना
माउंटेड गन सिस्टम: 814 यूनिट्स की योजना
अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर M777: 145 यूनिट्स
पिनाका मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर: 4 रेजिमेंट्स चालू, 6 और प्रस्तावित
ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम: पहले से तैनात
चुनौतियां और सुधार की दिशा
FARP की धीमी प्रगति को लेकर कैग ने आलोचना की है। 25 साल में सिर्फ 8% तोपों को ही शामिल किया जा सका है। ATAGS का वजन 18 टन है जबकि सेना की प्राथमिकता 15 टन से कम वजन वाली गन की थी। इस पर सुधार जारी है। सेना द्वारा इजरायल की ATHOS तोप खरीदने का प्रस्ताव भी था लेकिन सरकार ने स्वदेशी ATAGS को प्राथमिकता दी।