मिर्गी हमेशा जेनेटिक नहीं होती, लेकिन अगर माता-पिता को यह बीमारी है तो बच्चों में इसका खतरा थोड़ा बढ़ जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, एक पैरेंट को मिर्गी होने पर बच्चों में 5-10% रिस्क रहता है, जबकि सामान्य परिवारों में यह केवल 1% या उससे कम होता है। सही इलाज और समय पर जांच से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
Epilepsy: मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसमें दिमाग की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी असामान्य हो जाती है और मरीज को दौरे पड़ते हैं। इसे लेकर आम धारणा है कि यह माता-पिता से बच्चों में जरूर ट्रांसफर होती है, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि ऐसा हमेशा नहीं होता। यदि मां या पिता को मिर्गी है तो बच्चों में इसका रिस्क 5-10% तक बढ़ सकता है, जबकि दोनों पैरेंट्स में होने पर खतरा और ज्यादा हो जाता है। वहीं, जिन परिवारों में मिर्गी का इतिहास नहीं है, उनमें यह रिस्क 1% से भी कम होता है। समय पर इलाज और डॉक्टर की सलाह से इस बीमारी को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
मिर्गी होती क्यों है
मिर्गी असल में दिमाग से जुड़ी एक समस्या है। इसमें दिमाग की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी अचानक असामान्य हो जाती है। जब ऐसा होता है तो मरीज को दौरे यानी सीजर्स आने लगते हैं। ये दौरे कई सेकंड से लेकर कई मिनट तक चल सकते हैं। मरीज अचानक से बेहोश हो सकता है या उसके शरीर में झटके लग सकते हैं। मिर्गी कई कारणों से हो सकती है, जिनमें जेनेटिक फैक्टर भी शामिल हैं।
क्या मिर्गी जेनेटिक है
लोगों के मन में यह सवाल सबसे ज्यादा होता है कि क्या मिर्गी सीधे माता-पिता से बच्चों में जाती है। न्यूरोसर्जन डॉ. दलजीत सिंह बताते हैं कि हमेशा ऐसा जरूरी नहीं है। अगर परिवार में किसी को मिर्गी है तो बच्चों में इसके होने का रिस्क थोड़ा बढ़ सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर बच्चे को मिर्गी होगी।
बच्चों में कितना होता है खतरा
अगर मां या पिता में से किसी एक को मिर्गी की समस्या है तो बच्चे में इसका खतरा 5 से 10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। वहीं अगर दोनों ही पैरेंट्स को मिर्गी रही है तो बच्चे में रिस्क और ज्यादा बढ़ सकता है। दूसरी ओर, जिन परिवारों में यह बीमारी नहीं है वहां बच्चों में मिर्गी होने का रिस्क केवल 1 प्रतिशत या उससे भी कम होता है। यानी यह कहना सही नहीं होगा कि अगर माता-पिता को मिर्गी है तो बच्चे को भी यह बीमारी जरूर होगी।
कितनी गंभीर हो सकती है मिर्गी
मिर्गी का इलाज संभव है लेकिन कई बार मरीज या परिवार वाले बीच में इलाज छोड़ देते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह होती है कि इसका इलाज लंबे समय तक चलता है। जब मरीज दवाएं बीच में बंद कर देता है तो बीमारी गंभीर हो सकती है। ऐसे मरीजों को अचानक बेहोशी, भूलने की समस्या और लगातार दौरे आने जैसी परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जैसे ही मिर्गी के लक्षण दिखें, मरीज को तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
मिर्गी के जेनेटिक न होने वाले कारण
कई बार मिर्गी केवल जेनेटिक वजह से नहीं बल्कि अन्य कारणों से भी हो सकती है। इसमें शामिल हैं।
- जन्म के समय दिमाग को चोट लगना।
- इंफेक्शन जैसे मेनिनजाइटिस।
- दिमाग में ट्यूमर।
- स्ट्रोक या सिर पर गंभीर चोट लगना।
- दिमाग की नसों का असामान्य विकास।
इन कारणों से भी मरीज को मिर्गी की समस्या हो सकती है, चाहे परिवार में पहले कभी किसी को यह बीमारी न रही हो।
इलाज और जागरूकता जरूरी
मिर्गी को लेकर समाज में अभी भी कई गलतफहमियां मौजूद हैं। कई लोग इसे भूत-प्रेत या टोने-टोटके से जोड़ते हैं और मरीज को झाड़-फूंक कराने ले जाते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसा करने से मरीज का समय बर्बाद होता है और बीमारी गंभीर हो सकती है। मिर्गी का सही और नियमित इलाज करने पर मरीज सामान्य जीवन जी सकता है।
बच्चों में बढ़ते रिस्क पर क्या करें
अगर परिवार में पहले से मिर्गी के मामले हैं तो माता-पिता अक्सर बच्चों की सेहत को लेकर चिंतित रहते हैं। ऐसे मामलों में विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह लेना सबसे बेहतर होता है। जरूरत पड़ने पर जेनेटिक काउंसलिंग भी कराई जा सकती है। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि आने वाली पीढ़ी में बीमारी का रिस्क कितना है और इसे कैसे मैनेज किया जा सकता है।