एचडीएफसी के पूर्व चेयरमैन दीपक पारेख ने हाल ही में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है, जिसमें उन्होंने बताया कि आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रमुख चंदा कोचर ने कभी एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक के बीच विलय का प्रस्ताव दिया था।
भारतीय बैंकिंग इतिहास के दो दिग्गजों, ICICI और HDFC के बीच कभी एक ऐसा प्रस्ताव रखा गया था, जिसे अगर स्वीकार कर लिया जाता तो देश के वित्तीय परिदृश्य की तस्वीर कुछ और होती। HDFC लिमिटेड के पूर्व चेयरमैन दीपक पारेख ने हाल ही में एक अहम खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि कभी ICICI बैंक ने HDFC लिमिटेड के अधिग्रहण का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। यह घटना उस समय की है जब ICICI बैंक की कमान चंदा कोचर के हाथों में थी और HDFC का रिवर्स मर्जर अपने बैंकिंग सहयोगी से होना बाकी था।
विलय से पहले का प्रस्ताव: चंदा कोचर की पहल
दीपक पारेख ने हाल ही में एक सार्वजनिक बातचीत में यह बात साझा की कि ICICI बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर ने उनसे एक बार विलय का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने कहा, "चंदा कोचर ने मुझसे कहा था कि ICICI ने HDFC को जन्म दिया है, इसलिए अब वापस घर क्यों नहीं आते?" यह बातचीत पारेख और कोचर के बीच निजी रूप से हुई थी और इसे बाद में यूट्यूब पर साझा किया गया।
HDFC लिमिटेड का इतिहास ICICI के समर्थन से शुरू हुआ था। उस समय ICICI लिमिटेड एक विकास वित्तीय संस्था (DFI) थी और उसने HDFC को शुरुआती वित्तीय सहायता प्रदान की थी। इसलिए ICICI के लिए यह दावा करना कि HDFC उसकी ही उपज है, पूरी तरह गलत नहीं था।
क्यों ठुकराया गया प्रस्ताव?
दीपक पारेख ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह HDFC के मूल्यों, ब्रांड नाम और स्वतंत्र पहचान के खिलाफ होगा। उन्होंने कहा कि HDFC हमेशा से एक स्वतंत्र संस्था रही है और उसका अपना बैंकिंग मॉडल, संस्कृति और व्यवसायिक सिद्धांत रहे हैं।
पारेख ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर यह प्रस्ताव स्वीकार किया जाता, तो HDFC की स्वायत्तता और नाम खत्म हो जाते, और यह न तो ग्राहकों के लिए उचित होता, न ही कर्मचारियों या शेयरधारकों के लिए।
HDFC और HDFC बैंक का ऐतिहासिक रिवर्स मर्जर
1 जुलाई 2023 को HDFC लिमिटेड और HDFC बैंक का रिवर्स मर्जर हुआ, जिससे देश का सबसे बड़ा प्राइवेट सेक्टर बैंक अस्तित्व में आया। इस विलय के साथ ही HDFC लिमिटेड, जो 44 वर्षों तक स्वतंत्र रही, इतिहास का हिस्सा बन गई। यह विलय केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि नियामकीय दबावों का भी परिणाम था।
आरबीआई की भूमिका: धक्का भी, सहारा भी
इस विलय के पीछे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। पारेख ने खुलासा किया कि RBI ने उन्हें विलय के लिए किसी तरह की विशेष छूट या राहत नहीं दी, लेकिन पूरी प्रक्रिया में सहयोग अवश्य किया। पारेख ने कहा, "RBI ने हमें धक्का भी दिया और रास्ता भी दिखाया।"
RBI की लगातार यह कोशिश रही है कि भारत में बड़े बैंक तैयार हों जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें। HDFC और HDFC बैंक का विलय इसी दिशा में एक अहम कदम था। इस विलय से बैंकिंग नेटवर्क, ग्राहक आधार और पूंजी तक पहुंच में बड़ा विस्तार हुआ।
बड़े बैंकों की जरूरत और भविष्य की दिशा
दीपक पारेख ने यह भी कहा कि भारत जैसे विशाल देश के लिए बड़े बैंक होना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि वित्तीय स्थिरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए मजबूत बैंकिंग संस्थानों की आवश्यकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आने वाले वर्षों में भारतीय बैंक अधिग्रहण के माध्यम से ही अपनी ताकत बढ़ा सकते हैं।
उनके अनुसार, बड़े बैंक बेहतर क्रेडिट प्रोफाइल, ज्यादा कैपिटल बेस और व्यापक नेटवर्क के जरिए ग्राहकों को बेहतर सेवाएं दे सकते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में लचीलापन और वित्तीय पहुंच भी बढ़ती है।
HDFC की पहचान: स्वतंत्रता और विश्वसनीयता
HDFC लिमिटेड हमेशा से एक भरोसेमंद नाम रहा है, जिसने मध्यम वर्ग को घर दिलाने में अहम भूमिका निभाई। पारेख ने कहा कि HDFC का बिजनेस मॉडल बहुत मजबूत था और उसकी ब्रांड वैल्यू ग्राहकों के दिल में बसी थी। ICICI के प्रस्ताव को न मानने के पीछे यही भावनात्मक और संस्थागत पहलू भी था।
एक दौर का अंत, लेकिन नई शुरुआत
2023 का रिवर्स मर्जर जहां HDFC लिमिटेड के एक युग का अंत था, वहीं यह HDFC बैंक के लिए नए युग की शुरुआत भी थी। मर्जर के बाद बैंकिंग संरचना में बदलाव आया, HDFC बैंक को हाउसिंग फाइनेंस का बड़ा पोर्टफोलियो मिला और कस्टमर बेस में भारी इजाफा हुआ।
वित्तीय विश्लेषकों का मानना है कि यह मर्जर भारतीय बैंकिंग सिस्टम के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है। इससे बैंकिंग सेवाएं अधिक व्यापक, सशक्त और प्रतिस्पर्धात्मक बनी हैं।